ऑफिस में SC/ST द्वारा ‘अत्याचार के झूठे केस’ का मुकाबला कैसे करें?

ऑफिस में SC/ST द्वारा 'अत्याचार के झूठे केस' का मुकाबला कैसे करें?

SC/ST प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटी एक्ट 1989:

SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम को सामाजिक अक्षमताओं से SC/ST समुदाय के लोगों को सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से लागू किया गया था। क्योंकि उनके साथ काफी समय से भेद-भाव किया जा रहा था। जैसे – धार्मिक स्थलों पर उन्हें जाने से मना करना, उनके साथ अछूत व्यवहार करना, व्यक्तिगत अत्याचार करना जैसे कि ना खाने लायक भोजन उपलब्ध कराना, दुर्भावनापूर्ण अभियोजन, आदि।

अत्याचार के फर्जी केस का मुकाबला करने का तरीका: 

जैसा कि हम जानते हैं कि एट्रोसिटी एक्ट को लागू करने का उद्देश्य उन व्यक्तियों की रक्षा करना था, जो एससी और एसटी समुदायों से थे और जाति व्यवस्था के भेद-भेव की वजह से किसी भी प्रकार के शोषण का शिकार थे। साथ ही, वही प्रावधान जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय के अत्याचारों को दूर करने के लिए बनाये गए हैं, उनका दुरूपयोग अन्य समुदायों के व्यक्तियों को परेशान करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत झूठे अत्याचार का केस करने की धमकी मिलने पर व्यक्ति निम्नलिखित सहायता ले सकता है।

भारतीय संविधान द्वारा अपने सभी नागरिकों को प्रदान किये गए कुछ अधिकार और कर्तव्य हैं। भारतीय संविधान के आर्टिकल 14, 20, 21 और 32 नागरिकों के अधिकारों और उन अधिकारों के उल्लंघन के मामले में कोर्ट में जाने का अधिकार प्रदान किया गया हैं।

भारतीय संविधान का आर्टिकल 14 जाति, जन्म स्थान, लिंग और धर्म के बावजूद कानून के तहत सभी को समानता का अधिकार प्रदान करता है। इस आर्टिकल के तहत कानून प्रत्येक व्यक्ति के साथ समान व्यवहार करेगा। साथ ही, कानून इस बात का भी ध्यान रखेगा कि झूठे केस की धमकी देकर अधिनियम के उद्देश्य का गलत फायदा ना उठाया जाये। 

इसी तरह, संविधान का प्रावधान है कि किसी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए दो बार मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है और ना ही उसे निर्धारित दंड से ज्यादा दंड दिया जा सकता है। अगर कोई अपनी पर्सनल दुश्मनी की वजह से बदला लेने के उद्देश्य से आपके खिलाफ SC/ST एक्ट के तहत अत्याचार करने की झूठी कम्प्लेन कराता है, तो आप भारतीय संविधान के आर्टिकल 32 के तहत अपने अधिकारों के उल्लंघन के लिए एक रिट पिटीशन फाइल कर सकते हैं।

सभी नागरिकों को जीवन की सुरक्षा और पर्सनल स्वतंत्रता का अधिकार है। अगर किसी भी व्यक्ति के इन अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो वह व्यक्ति इसके लिए कोर्ट केस कर सकता है। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि आप आर्टिकल 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट के सामने और आर्टिकल 226 के तहत हाई कोर्ट के सामने अत्याचार के झूठा केस फाइल कर सकते हैं।

अगर कोई SC/ST आपके खिलाफ अत्याचार का फर्ज़ी केस फाइल करने की धमकी दे या केस करे, तो आप भारतीय दंड संहिता की धारा 499/500 के तहत मानहानि का केस भी फाइल कर सकते हैं।

एससी/एसटी एक्ट के तहत बदलाव: 

2018 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा एट्रोसिटी एक्ट 1989 के ‘बड़े पैमाने पर दुरुपयोग’ को रोकने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। इस एक्ट के तहत, अछूत समुदाय (एससी और एसटी) के खिलाफ किसी भी प्रकार की मौखिक या शारीरिक हिंसा को एक आपराध माना गया है। अछूत समुदाय का शोषण होने पर दंड का भी प्रावधान है।

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दरअसल, डॉ. सुभाष काशीनाथ महाजन V/S महाराष्ट्र राज्य के केस में, दो जजों की बेंच ने अपना फैसला पारित करते समय यह नए दिशानिर्देश जारी किए थे। जहां यह पाया गया था कि एससी-एसटी एक्ट के तहत फाइल किये गए लगभग एक-चौथाई केस फर्जी थे। जिनमे  SC/ST द्वारा अन्य समुदायों के खिलाफ गलत शिकायतें शामिल हैं। 

नए दिशानिर्देशों के परिणामस्वरूप, एससी-एसटी एक्ट के सेक्शन 18 के तहत अग्रिम जमानत के सख्त निषेध के बावजूद भी अब इसमें अग्रिम जमानत का प्रावधान पेश किया गया है। अग्रिम जमानत एक ऐसी जमानत होती है जो गिरफ्तारी से पहले ही इस बिहाल्फ पर कराई जाती है कि व्यक्ति को शक है कि उसके खिलाफ कंप्लेंट हो सकती है। आप हमारे अग्रिम जमानत एडवोकेट्स से संपर्क करके इसके लिए एप्लीकेशन फाइल कर सकते हैं, जो आपके लिए इसका पूरा डॉक्यूमेंटेशन तैयार करके फाइल करेंगे।

एक्ट के तहत चाहे कोई भी फर्जी केस फाइल किया गया हो, लेकिन न्याय के लिए भारतीय न्यायपालिका पर भरोसा किया जाना चाहिए। कोर्ट फैक्ट्स के साथ-साथ केस की सिचुएशन से भी सच्चाई का पता लगाती है। इसके अलावा, अगर किसी व्यक्ति ने आपके खिलाफ एट्रोसिटी एक्ट के तहत एक झूठा केस फाइल किया है, तो आप ऐसे व्यक्ति के खिलाफ मानहानि और झूठे केस में फंसाने के संबंध में भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत पुलिस स्टेशन में एक जवाबी शिकायत फाइल करने के लिए लीड इंडिया से एक लॉयर प्राप्त कर सकते हैं।

निष्कर्ष:

इस फैक्ट से इनकार नहीं किया जा सकता कि दलितों पर काफी समय से अत्याचार हुए है। निस्संदेह सरकार ने SC-ST एट्रोसिटी एक्ट जैसे कानून बनाकर दलितों के लिए कदम उठाए और जाति व्यवस्था के लिए जरूरत पड़ने पर संशोधन भी किए हैं। यह एक्ट एससी-एसटी समुदायों के लिए सबसे बड़े वरदानों में से एक रहा है और इसने उनके सामाजिक स्तर को ऊपर उठाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, अग्रिम जमानत की सुविधा के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए नए दिशानिर्देशों का एससी-एसटी समुदाय द्वारा स्वागत नहीं किया गया, लेकिन यह फर्जी केसिस के मुद्दे से निपटने के लिए एक जरूरी कदम था।

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SC/ST एक्ट के तहत आपके खिलाफ फाइल किए गए फर्जी केस के मामले में काउंटर-शिकायत फाइल करने में स्पेशल एडवाइस और मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हम न्याय देने के लिए शीघ्र और विश्वसनीय सेवाएं प्रदान करते है।

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