जानिये क्या है आनंद विवाह, क्या इसे मिलेगा हर राज्य में कानूनी दर्जा

जानिये क्या है आनंद विवाह, क्या इसे मिलेगा हर राज्य में कानूनी दर्जा

भारत में शादी कई परम्परागत तरीके से होती हैं। जैसे हिन्दुओं में विवाह, मुस्लिम्स में निकाह और सिखों में आनंद विवाह। भारत में शादियाँ कोर्ट में रजिस्टर होती है ताकि लीगल इश्यूज में या स्पाउस वीजा आदि में ये सर्टिफिकेट काम आ सके।

हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 6 के अनुसार शादियों के रजिस्ट्रेशन के लिए राज्य अलग-अलग नियम बनाते हैं। इसमे अलग-अलग धर्मो के क़ानून के हिसाब से शादियाँ कोर्ट में रजिस्टर होती हैं जैसे हिन्दू मैरिज एक्ट 1955, मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड आदि।

इन दोनों एक्ट के तहत या धार्मिक रीति से हुई शादियाँ कोर्ट में सीधे रजिस्टर होती हैं। लेकिन अभी बहुत से राज्य ऐसे हैं जहाना आनंद विवाह या आनंद कारज के तहत हुई शादियाँ कोर्ट में सीधे रजिस्टर नहीं होती। इनके रजिस्ट्रेशन के लियें हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत जाना होता है।

लेकिन क्योंकि शादियां रजिस्ट्रेशन राज्य का विषय हैं अत: अब जल्द ही उत्तराखंड में आनंद विवाह 1909 के कोर्ट में रजिस्ट्रेशन के लिए नियम बन सकता है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आनद विवाह या आनंद कारज के कोर्ट रजिस्ट्रेशन के लिए नियम बनाने के लिए राज्य सरकार को निर्देश दिया है।

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क्या होता है आनंद विवाह

आपको याद होगा प्रसिद्द अभिनेत्री सोनम कपूर और आनंद आहूजा ने अपनी शादी सिख रीति रिवाज यानी आनद विवाह के अंतर्गत शादी की थी। इसके लिए एक अधिनियम यानी क़ानून भी है। इसे आनंद विवाह अधिनियम 1909 कहते हैं।

आनंद विवाह हिंदू विवाह से थोड़ा अलग है थोड़ा मिलता जुलता। हिंदू विवाह में बहुत धार्मिक परम्पराएं देखी जाती है जैसे शुभ मुहूर्त, कुण्डली मिलान आदि लेकिन आनंद विवाह में ऐसा नहीं देखा जाता। सिख धर्म में विवाह को शुभ काम माना जाता है अत: सुविधानुसार किसी भी दिन गुरुद्वारे में विवाह किया जा सकता है।

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इसमे भी हिन्दू धर्म की तरह फेरे होते हैं लेकिन इसमें केवल 4 फेरे होते हैं। इन फेरो को लवाण, लावा या फेरे कहते हैं। पहले फेरे में दुल्हा दुल्हन नाम जपते हुए सतकर्म करने की सीख लेते हैं। दूसरे फेरे में ग्रंथी नव जोड़े को गुरु को पाने का रास्‍ता बताते हैं, और सिखाया जाता है कि दोनों के बीच कभी अहंकार ना आये। तीसरे फेरे में गुरुबाणी की सीख दी जाती है। चौथे फेरे में मन की शांति और गुरु को पाने की अरदास की जाती है। पूरी रीति के समय अरदास चलती रहती है। फेरे समाप्त होने के बाद  नव विवाहित जोड़ा गुरुग्रंथ साहिब और ग्रंथियों के सामने सिर झुकाता हैं। फिर प्रसाद बनाकर बांटा जाता है और शादी सम्पन्न हो जाती है।

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