अडॉप्शन (गोद लेना) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति किसी दूसरे बच्चे को अपने संतान के रूप में स्वीकार करता है। इसमें बच्चे को जन्म देने वाले माता-पिता के अधिकार और जिम्मेदारियाँ पूरी तरह से गोद लेने वाले माता-पिता को सौंप दी जाती हैं। अडॉप्शन से बच्चे की स्थिति में परमानेंट बदलाव आता है और इसे कानूनी या धार्मिक मान्यता प्राप्त होती है। अडॉप्शन के लिए आमतौर पर कानूनी मंजूरी की जरूरत होती है।
भारत में लोग हजारों सालों से बच्चों को गोद लेते आ रहे हैं, जैसे कि पुरानी कहानियों में में देखा गया है। पुराने समय में, परिवारों ने अक्सर बेटों को गोद लिया ताकि परिवार का नाम आगे बढ़ सके। अलग-अलग हिंदू समुदायों के अपने-अपने तरीके थे। कुछ परिवार बिना किसी फॉर्मेलिटी के एक लड़के को अपने घर ले आते थे ताकि वो महत्वपूर्ण पारिवारिक रिचुअल कर सके। कुछ ने गोद लेने को कानूनी रूप से मान्यता दी, और गोद लिए गए बच्चे को अपने खुद के बच्चे की तरह ही माना, या बच्चे की परवरिश की जब तक वो बड़ा नहीं हो गया। लेकिन, सभी के लिए एक ही नियम नहीं था और अलग अलग धर्मो के बच्चे को गोद लेने के लिए उनके धर्मो के अनुसार रीती रिवाज़ो को अपनाना होता है और धर्मो के हिसाब से बच्चो को गोद लेने की प्रकिर्या पूरी की जाती है।
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भारत में बच्चों को अडॉप्ट करने के लिए क्या कानूनी प्रावधान है ?
गॉरडियंस एंड वॉर्ड्स एक्ट, 1890, एक कानून है जो तब काम आता है जब बच्चों के माता-पिता उनकी देखभाल नहीं कर सकते। इस कानून के तहत, कोर्ट एक अच्छे और जिम्मेदार व्यक्ति को बच्चे का देखभाल करने के लिए चुनता है। यह कानून सुनिश्चित करता है कि बच्चे की अच्छी देखभाल हो और उनकी ज़रूरतें पूरी हों।
हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956 हिंदू, बौद्ध, जैन, और सिख समुदायों पर लागू होता है। यह कानून बच्चों को गोद लेने के नियम तय करता है, गोद लेने की प्रक्रिया और अपनाने वाले माता-पिता की योग्यता बताता है, और यह सुनिश्चित करता है कि गोद लिए गए बच्चे को भी बायोलॉजिकल बच्चों की तरह ही अधिकार मिलें।
जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट, 2000 उन सभी बच्चों की मदद करता है जिन्हें देखभाल और सुरक्षा की जरूरत है, चाहे वे किसी भी धर्म के हों। इस कानून ने बच्चों की देखभाल और गोद लेने के लिए एक आसान सिस्टम बनाया है। इसके तहत CARA (सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी) बनाई गई है, जो भारत और विदेशों में गोद लेने की प्रक्रिया को देखती है।
अडॉप्शन रेगुलेशंस, 2022 गोद लेने की प्रक्रिया को बेहतर और आसान बनाते हैं। ये नियम गोद लेने को सरल और बच्चों के लिए उपयुक्त बनाते हैं। इसमें गोद लेने के आवेदन को कैसे रजिस्टर्ड और प्रोसेस किया जाए, इसके लिए साफ-साफ दिशा-निर्देश दिए गए हैं। यह सुनिश्चित करता है कि गोद लेने की प्रक्रिया सही तरीके से की जाए।
अडॉप्शन की प्रक्रिया
स्टेप 1: रजिस्ट्रेशन
अगर आप बच्चे को गोद लेना चाहते हैं, तो पहले आपको एक मान्यता प्राप्त एजेंसी के साथ रजिस्ट्रेशन कराना होगा। भारत में, रिकॉग्नाइज इंडियन प्लेसमेंट एजेंसी (RIPA) और स्पेशल अडॉप्शन एजेंसी (SPA) ऐसी एजेंसियां हैं जो रजिस्ट्रेशन करती हैं। आप अपने क्षेत्र के अडॉप्शन को ऑर्डिनेशन एजेंसी में जा सकते हैं, जहां एक सामाजिक कार्यकर्ता आपको पूरी प्रक्रिया, कागजात और पंजीकरण के लिए जरूरी तैयारी के बारे में समझाएंगे और मदद करेंगे।
स्टेप 2: होम स्टडी एंड काउंसलिंग
एक सोशल वर्कर उन लोगों के घर जाएंगे जो बच्चा गोद लेना चाहते हैं। वे यह जानने की कोशिश करेंगे कि वे क्यों गोद लेना चाहते हैं, उनकी ताकतें क्या हैं, और किन समस्याओं का सामना कर सकते हैं। वे यह भी देख सकते हैं कि वे गोद लेने के लिए पूरी तरह तैयार हैं या नहीं, इसके लिए काउंसलिंग कर सकते हैं।
स्टेप 3: बच्चे का रेफरल
एजेंसी उस समय कपल को सूचित करेगी जब कोई बच्चा गोद लेने के लिए तैयार हो। वे बच्चे के मेडिकल और फिजिकल एग्जामिनेशन की रिपोर्ट्स, साथ ही अन्य जरूरी जानकारी भी देंगे। जब कपल इन जानकारियों से संतुष्ट हो जाएगा, तब वे बच्चे के साथ समय बिता सकते हैं।
स्टेप 4: बच्चे को अपनाना
जब कपल बच्चे के साथ कंफर्टेबल हो जाएं, तो उन्हें बच्चे को स्वीकार करने के लिए कुछ डॉक्यूमेंट पर साइन करने होंगे।
स्टेप 5: पिटिशन दायर करना
सभी जरूरी डॉक्यूमेंट एक वकील को सौंपे जाते हैं, जो कोर्ट के लिए एक पिटिशन तैयार करते हैं। जब पिटिशन तैयार हो जाती है, तो कपल को कोर्ट में जाकर ऑफिसर के सामने पिटिशन पर साइन करना होता है।
स्टेप 6: प्री अडॉप्शन फॉस्टर केयर
एक बार जब कोर्ट में पिटिशन पर साइन हो जाते हैं, तो कपल बच्चे को एक प्री अडॉप्शन फॉस्टर केयर में ले जा सकते हैं। वहां वे नर्सिंग स्टाफ से बच्चे की आदतों को समझ सकते हैं, इससे पहले कि वे बच्चे को अपने घर ले जाएं।
स्टेप 7: कोर्ट की सुनवाई
कपल को बच्चे के साथ कोर्ट में जाना होता है। वहाँ जज के सामने सुनवाई होती है, जो एक बंद कमरे में होती है। जज कुछ सवाल पूछ सकते हैं और यह भी बतायेंगे कि बच्चे के नाम पर कितनी राशि जमा करनी है।
स्टेप 8: कोर्ट का आदेश
जब इन्वेस्टमेंट की रसीद दिखा दी जाती है, तब जज गोद लेने की मंजूरी दे देते हैं।
स्टेप 9: फॉलो अप
अडॉप्शन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद, एजेंसी को बच्चे की हालात की रिपोर्ट अदालत को देनी होती है। यह रिपोर्ट 1-2 साल तक भेजी जाती है।
भारत में बच्चे को अडॉप्ट करने की क्या योग्यताएँ है?
सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) भारत में बच्चे को गोद लेने के लिए योग्यताएँ तय करता है। भारतीय नागरिक, नॉन-रेसिडेंट इंडियन (NRI), और विदेशी नागरिक बच्चे को गोद ले सकते हैं, लेकिन उनके लिए अलग-अलग प्रक्रियाएँ हैं। कोई भी व्यक्ति, चाहे वह शादीशुदा हो या अकेला हो, बच्चे को गोद ले सकता है। शादीशुदा जोड़ों को कम से कम दो साल की स्थिर शादी करनी चाहिए और दोनों को गोद लेने पर सहमत होना चाहिए। बच्चे और गोद लेने वाले माता-पिता के बीच कम से कम 25 साल का अंतर होना चाहिए। गोद लेने वाले माता-पिता की उम्र 25 से 55 साल के बीच होनी चाहिए और उन्हें शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक रूप से स्थिर होना चाहिए, साथ ही बच्चे की बेसिक जरूरतों के लिए आर्थिक रूप से भी ठीक होनी चाहिए।
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