चेक बाउंस का केस आसानी से कैसे लड़ें?

चेक बाउंस का केस आसानी से कैसे लड़ें?

गुज़रे कुछ वक्त से देश में चेक बाउंस के मामलों तीव्रता आई है। ऐसे में इन मामलों से निपटने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को कुछ निर्देश भी जारी किए हैं। निर्देश में चेक बाउंस की समस्या से जुड़े कानून के सुधार की बात कही गई है इसके साथ ही इन मामलों की सुनवाई में तेजी लाने हेतु यह भी निर्देश दिए हैं कि अतिरिक्त न्यायालयों के भी गठन किया जाए।

देश में लगभग 35 लाख से ज़्यादा मामले चेक बाउंस से जुड़े हुए हैं। हमारा यह जानना भी ज़रूरी है कि चेक बाउंस के केस को आसानी से किस प्रकार लड़ा जा सकता है? आइये इस बात को इस लेख के माध्यम से आसानी से समझते हैं।

चेक बाउंस क्या होता है?

चेक बाउंस होने से सम्बंधित कानून और उस से जुड़े मामले का केस आसानी से कैसे लड़ें यह जानने के पूर्व हमारा यह समझना जरूरी है कि चेक बाउंस आख़िर क्या होता है? यदि किसी व्यक्ति ने राशि के भुगतान हेतु चेक अदा किया हो और आप उस चेक को बैंक में प्रस्तुत करें तो यह बात लाज़िम है कि चेक जारी करने वाले व्यक्ति के खाते में उतनी राशि रहे जितने का चेक काटा गया है। यदि चेक पर लिखी हुई राशि बैंक खाते में नहीं होगी तो इस स्थिति में चेक बाउंस हो जाता है। बैंक और लेनदेन की भाषा मे इसे चेक का अनादर यानि कि dishonored cheque कहा जाता है।

चेक रिटर्न मेमो 

चेक के बाउंस हो जाने की स्थिति में बैंक द्वारा चेक लगा रहे व्यक्ति को एक मेमो या पर्ची प्रदान की जाती है। यह मेमो चेक जारी करने वाले व्यक्ति के नाम पर होती है। इस मेमो पर चेक के बाउंस होने का कारण अंकित होता है। इस मेमो का एक अर्थ यह भी होता है कि चेक जारी करने वाले व्यक्ति के पास 90 दिन यानि 3 महीनों के वक़्त अभी और है जिस में वो दोबारा चेक जारी कर सकता है। यदि दूसरी बार भी चेक बाउंस हो जाए तो चेक जारी करने वाले के ख़िलाफ़ मुकदमा दायर किया जा सकता है।

चेक बाउंस सिविल या आपराधिक?

भुगतान के मामलों को आम तौर पर सिविल प्रवृति में रखा जाता है परंतु चेक बाउंस के मामले को आपराधिक प्रवृत्ति का मान कर इसे एक आपराधिक प्रकरण घोषित किया गया है।

नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881, धारा 138:

चेक बाउंस से जुड़े हुए केस नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के अंतर्गत लगाए जाते हैं। यह धारा चेक के बाउंस होने के प्रकरण से संबंधित है और पीड़ित को इस धारा के अंतर्गत परिवाद पेश करने का मौका देती है। इस धारा के तहत केस दायर करने के लिए भी कुछ चरणों का पालन किया जाना होगा। आइये समझते हैं कि इस धारा के अंतर्गत आप चेक बाउंस का केस आसानी से कैसे लड़ें?

लीगल नोटिस भेजना

सबसे पहले आपको चेक जारी कर रहे व्यक्ति को एक लीगल नोटिस भेजना होगा। यह नोटिस रजिस्टर्ड डाक द्वारा भेजी जानी चाहिए। ऐसा करने पर मिली हुई रसीद एक महत्वूर्ण दस्तावेज का काम करेगी। यह ध्यान रहे कि लीगल नोटिस भेजने की अवधि चेक बाउंस होने के 30 दिनों के अंदर हो। चेक बाउंस होने के कारणों का उल्लेख करते हुए नोटिस में 15 दिनों के भीतर भुगतान की बात कही जाती है। यदि 30 दिनों के भीतर यह लीगल नोटिस नहीं भेजा जाता है तो पीड़ित व्यक्ति परिवाद का अपना अधिकार खो देता है।

कोर्ट फीस का भुगतान

चेक बाउंस के मामले को कोर्ट में लगाते वक़्त हमें कोर्ट फीस भी चुकानी होती हैं। हमें यह पता होना चाहिए कि यह कोर्ट फीस भुगतान किए जाने के तीन स्तर निर्धारित हैं जिन्हें शपथ पत्र के माध्यम से भुगतान किया जाना चाहिए। यदि राशि एक लाख तक की है तो लिखी गई राशि का पांच प्रतिशत कोर्ट फीस भुगतान की जाएगी। वहीं यदि राशि एक लाख से पांच लाख तक हो तो अंकित राशि का चार प्रतिशत और राशि के पाँच लाख से अधिक होने पर तीन प्रतिशत कोर्ट फीस प्रदान करना अनिवार्य होगा।

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समझौता

चेक बाउंस का प्रकरण समझौते के योग्य प्रकरण होता है। यदि दोनों ही पार्टी आपस में समझौता करते हुए इस मामले का निबटान करना चाहते हैं तो समझौता करा दिया जाता है। 

यदि समझौता नहीं किया जाता है तो न्यायालय में वाद चलता रहेगा और अंतिम बहस के साथ ही निर्णय न्यायालय द्वारा दे दिया जाएगा।

निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट,1881: धारा 143 (A)

साल 2018 में किये गए एक संशोधन में धारा 143ए को जोड़ा गया जो चेक बाउंस के मामले से ही जुड़ी हुई है। इस धारा के अंतर्गत पक्षकार एक आवेदन के द्वारा यह दरख़्वास्त कर सकता है कि चेक में अंकित राशि का बीस प्रतिशत उसे न्यायायलय द्वारा दिलवाया जाए। न्यायालय द्वारा एक आदेश के माध्यम से ऐसा किया जा सकेगा।

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