विवाह एक पवित्र बंधन है, और जब यह खत्म होता है, तो इसके साथ भावनात्मक, वित्तीय और कानूनी जटिलताएं आ सकती हैं। हालांकि, जब दोनों पार्टनर आपसी सहमति से अलग होने पर सहमत होते हैं, तो यह एक सरल और तेज़ समाधान है। यह समय भी बचाता है, कोर्ट की लम्बी क़ानूनी प्रक्रिया से भी बचाता है और तनाव भी कम करता है।
इस ब्लॉग में, हम दिल्ली में आपसी सहमति से तलाक प्राप्त करने के आसान और सरल कदम बताएंगे। चाहे आप दिल्ली में रहते हों या दिल्ली क्षेत्राधिकार के तहत तलाक फाइल करना चाहते हों, यह ब्लॉग आपको सब कुछ समझाएगा जो आपको आपसी सहमति से तलाक प्राप्त करने के लिए जानना चाहिए।
आपसी सहमति से तलाक क्या है?
आपसी सहमति से तलाक एक ऐसा कानूनी सरल रास्ता है जिसमें दोनों पति-पत्नी एक साथ सहमति व्यक्त करते हैं कि वे अपनी शादी को समाप्त करना चाहते हैं। इसमें दोनों पक्षों की ओर से कोई भी विवाद या आपत्ति नहीं होती है। दोनों पक्ष संपत्ति का बंटवारा, बच्चों की कस्टडी और अलिमनी (Alimony) से संबंधित सभी शर्तों पर सहमत होते हैं। इस प्रकार का तलाक भारतीय कानून के तहत किसी भी पक्ष के अधिकारों का उल्लंघन किए बिना, सम्मानपूर्वक शादी के बंधन को समाप्त करने का एक सरल तरीका है।
दिल्ली में आपसी सहमति से तलाक लेने का क्या फायदा है?
दिल्ली में आपसी सहमति से तलाक उन जोड़ों के लिए सबसे अच्छा विकल्प है, जो जल्द से जल्दी तलाक़ लेना चाहते है और आपसे सहमति से तालक लेने के लिए राजी हो। इसमें कई फायदे हैं, खासकर जब दोनों पार्टनर आपसी समझ से तलाक लेना चाहते हैं।
- जल्दी हल होना: दोनों पार्टनर तलाक के लिए सहमत होते हैं, इस प्रक्रिया को लंबी कोर्ट की लड़ाई के मुकाबले जल्दी पूरा किया जा सकता है। सामान्यत: यह 1-2 महीनों में खत्म हो जाता है, जबकि एकतरफा(contested) तलाक कई सालों तक चल सकते हैं।
- कम तनाव और विवाद: तलाक, खासकर अगर एकतरफा (contested) हो , तो तनावपूर्ण और मानसिक रूप से थका देने वाला हो सकता है, खासकर जब बच्चे शामिल होते हैं। आपसी सहमति से तलाक में पार्टनर एक दूसरे से शांतिपूर्वक बात करके फैसले करते हैं, जिससे तनाव और विवाद कम होता है। यह बच्चों के लिए भी फायदेमंद है क्योंकि वे लंबे कानूनी संघर्ष से बचते हैं।
- कम खर्च: आपसी सहमति से तलाक में कम कानूनी फीस और समय लगता है क्योंकि इसमें कानूनी जटिलताएं कम होती हैं। दोनों पार्टनर खुद ही शर्तों पर सहमत होते हैं, जिससे अतिरिक्त कानूनी कार्यवाही की आवश्यकता नहीं पड़ती और वकील की फीस भी कम होती है।
- गोपनीयता और नियंत्रण: कोर्ट की सुनवाई आमतौर पर निजी तरीके से होती है, और तलाक की शर्तें (जैसे संपत्ति का बंटवारा, बच्चों की कस्टडी आदि) दोनों पार्टनर आपस में तय करते हैं, बिना अपने व्यक्तिगत मुद्दों को सार्वजनिक रूप से उजागर किए।
दिल्ली में आपसी सहमति से तलाक के लिए कौन से दस्तावेज़ आवश्यक हैं?
आपसी तलाक का मामला फैमिली कोर्ट में दायर करने के लिए, दोनों पार्टनर को निम्नलिखित दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होते हैं:
- शादी प्रमाणपत्र (Marriage Certificate): यह प्रमाण पत्र यह दर्शाता है कि दोनों पार्टियाँ वैध रूप से शादीशुदा हैं।
- पहचान पत्र (Identity Proof): दोनों पक्षों का पहचान पत्र (जैसे आधार कार्ड, वोटर आईडी या पासपोर्ट)।
- आधार कार्ड और पते का प्रमाण (Address Proof): यह प्रमाण दर्शाता है कि दोनों पक्ष कहाँ रहते हैं।
- कानूनी रूप से सत्यापित आवेदन (Affidavit): इसमें दोनों पक्ष यह बताते हैं कि वे आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए सहमत हैं।
- बच्चों की कस्टडी से संबंधित दस्तावेज (Documents Related to Child Custody): यदि कोई बच्चे हैं, तो उनकी कस्टडी और भत्ते पर सहमति से संबंधित दस्तावेज।
आपसी सहमति से तलाक को कौन सा कानून नियंत्रित करता है?
भारत में विवाह और तलाक के लिए अलग-अलग धर्मों के हिसाब से अलग कानून होते हैं। ये व्यक्तिगत कानून इस बात पर निर्भर करते हैं कि आप किस धर्म से संबंधित हैं। आइए जानते हैं प्रमुख कानूनों के बारे में:
- हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955: यह कानून हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों पर लागू होता है। इसमें विवाह, तलाक और अन्य पारिवारिक मामलों से जुड़े नियम होते हैं। इस एक्ट की धारा 13B के तहत, पति और पत्नी दोनों को आपसी सहमति से तलाक लेने का अधिकार दिया गया है।
- स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954: इस एक्ट की धारा 28 के तहत, उन लोगों को आपसी सहमति से तलाक लेने का अधिकार है, जिन्होंने अपनी शादी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत पंजीकरण करवाई है।
- डाइवोर्स एक्ट, 1869: जिन लोगों ने क्रिस्चियन कानूनों के तहत शादी करी हैं, वे डाइवोर्स एक्ट, 1869 की धारा 10A के तहत आपसी सहमति से तलाक ले सकते हैं।
दिल्ली में आपसी सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया क्या है?
आपसी सहमति से तलाक के लिए पात्रता जांचें
आपसी सहमति से तलाक दायर करने से पहले, दोनों पार्टनर को कुछ जरूरी शर्तों को पूरा करना होता है:
- अलगाव की अवधि: तलाक के लिए आवेदन करने से पहले, पति-पत्नी को कम से कम एक साल तक अलग रहना चाहिए। यह अलगाव शारीरिक या मानसिक रूप से हो सकता है।
- आपसी सहमति: दोनों पार्टनर को तलाक पर सहमति होनी चाहिए। इसमें संपत्ति का बंटवारा, बच्चों की कस्टडी, भत्ते (अलिमनी) और तलाक से जुड़ी अन्य शर्तों पर फैसला करना शामिल है।
- विवाह की वैधता: विवाह को भारतीय कानून के तहत वैध होना चाहिए।
एक विशेषज्ञ वकील को नियुक्त करें
आपसी सहमति से तलाक प्राप्त करना एक सरल प्रक्रिया है, लेकिन संयुक्त याचिका तैयार करने से पहले एक विशेषज्ञ वकील को हायर करना जरूरी है। एक अनुभवी वकील आपको पूरी प्रक्रिया में मार्गदर्शन करेगा, यह सुनिश्चित करेगा कि सभी कानूनी आवश्यकताएँ पूरी हों और आपके हितों की रक्षा हो। वकील की मदद से तलाक की प्रक्रिया जल्दी होती है, कम देरी होती है और कोर्ट की प्रक्रिया आसानी से पूरी होती है।
फॅमिली कोर्ट में याचिका दायर करें
वकील को नियुक्त करने के बाद वह आपकी याचिका दायर करने में मदद करेगा और दस्तावेजों को सही तरीके से तैयार करेंगे। इस याचिका में निम्नलिखित जानकारी शामिल होनी चाहिए:
- व्यक्तिगत जानकारी: दोनों पति-पत्नी के नाम, पते और अन्य जानकारी।
- विवाह विवरण: विवाह की तारीख और स्थान।
- अलगाव विवरण: वह तारीख जब आप दोनों अलग रहने लगे थे।
- शर्तों पर सहमति: बच्चों की कस्टडी, संपत्ति का बंटवारा और अलिमनी (यदि लागू हो) पर सहमति।
- तलाक के कारण: हालांकि आपसी सहमति से तलाक में कारण ज्यादा मायने नहीं रखते, फिर भी एक स्पष्टीकरण देना जरूरी होता है।
याचिका किसी भी फॅमिली कोर्ट में दायर की जा सकती है, जो उस क्षेत्राधिकार में हो जहाँ पति या पत्नी में से कोई एक रहता हो। याचिका दायर करने के साथ आपको सभी आवश्यक दस्तावेज भी संलग्न करने होंगे। कोर्ट याचिका की समीक्षा करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि सभी आवश्यकताएँ पूरी हो रही हैं।
कोर्ट की सुनवाई – पहला मोशन
याचिका दायर करने के बाद, कोर्ट पहली सुनवाई की तारीख तय करेगा। यह सुनवाई आमतौर पर याचिका दायर करने के 6-12 हफ्ते बाद होती है। इस सुनवाई में:
- दोनों पक्ष अपने-अपने मामले को जज के सामने प्रस्तुत करेंगे।
- जज यह सुनिश्चित करेंगे कि दोनों पति-पत्नी तलाक पर सहमत हैं और वे तलाक की शर्तों को समझते हैं। और दोनों कम से कम एक साल से अलग रह रहे हो।
सर्वोच्च न्यायालय ने K.K. वर्मा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1958) मामले में, यह निर्णय लिया कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत म्यूचुअल डिवोर्स के लिए पार्टियों को यह साबित करना होगा कि वे कम से कम एक साल से अलग रह रहे हैं। इस फैसले ने यह स्पष्ट किया कि तलाक के लिए दोनों पक्षों की सहमति अनिवार्य है, और दोनों को एक साथ याचिका दायर करनी चाहिए और विवाह को समाप्त करने पर सहमत होना चाहिए।
- यदि जज याचिका और शर्तों से संतुष्ट होते हैं, तो वे पहला मोशन दर्ज करेंगे। इसके बाद, कोर्ट दोनों को छह महीने का “कूलिंग–ऑफ” पीरियड देगा, ताकि वे तलाक पर पुनर्विचार कर सकें।
- कूलिंग–ऑफ पीरियड के दौरान दोनों पार्टीस को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अवसर मिलेगा। अगर इस समय के दौरान दोनों में सुलह होती है, तो वे याचिका वापस ले सकते हैं। लेकिन अगर वे सुलह नहीं करते, तो वे दूसरी मोशन के लिए आगे बढ़ेंगे।
सर्वोच्च न्यायालय अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर (2017) ने यह निर्णय लिया कि कूलिंग-ऑफ पीरियड छह महीने का होता है, लेकिन यदि दोनों पक्षों ने पहले ही अपनी समस्याओं का समाधान कर लिया हो और पुनः मिलन संभव न हो, तो कूलिंग-ऑफ पीरियड को माफी दी जा सकती है। यदि दोनों पक्षों ने तलाक पर आपसी सहमति दी हो और कोई सुलह की संभावना न हो, तो अदालत को छह महीने का कूलिंग-ऑफ पीरियड रद्द करने का अधिकार है और तलाक जल्दी दे सकती है।
कोर्ट की सुनवाई – दूसरा मोशन
छह महीने के कूलिंग-ऑफ पीरियड के बाद, दोनों पार्टीस दुसरे मोशन के लिए कोर्ट में पेश होंगे। यह सुनवाई तलाक की अंतिम पुष्टि होती है।
- दोनों पक्षों को कोर्ट में आकर यह बताना होगा कि वे तलाक को जारी रखना चाहते हैं।
- जज यह सुनिश्चित करेंगे कि परिस्थितियाँ नहीं बदली हैं और दोनों पक्षों ने सभी शर्तों पर सहमति जताई है।
- अगर जज संतुष्ट होते हैं, तो वे तलाक का आदेश देंगे। यह अंतिम कानूनी कदम होता है, और विवाह कानूनी रूप से समाप्त हो जाएगा।
तलाक का अंतिम आदेश
दूसरा मोशन सुनने के बाद, और सभी शर्तों पर सहमति बनने के बाद, कोर्ट तलाक का अंतिम आदेश देगा। इसका मतलब है कि विवाह आधिकारिक रूप से समाप्त हो गया है, और दोनों पति-पत्नी कानूनी रूप से फिर से शादी करने के लिए स्वतंत्र हैं (यदि वे चाहें)।
आपसी सहमति से तलाक के बाद पार्टीस को कौन से कानूनी अधिकार मिलते हैं?
आपसी सहमति से तलाक होने के बाद, दोनों पक्षों के कानूनी अधिकार और कर्तव्यों को समझना महत्वपूर्ण है।
- मेंटेनेंस : अगर तलाक के दौरान मेंटेनेंस तय किया गया हो, तो एक पार्टी को वित्तीय सहायता मिल सकती है। अगर कोई पार्टी आर्थिक रूप से निर्भर है, तो वह कोर्ट से मेंटेनेंस की मांग कर सकती है।
- बच्चों की कस्टडी मिलने का अधिकार: आपसी सहमति से तलाक में दोनों माता-पिता बच्चों की कस्टडी पर सहमति बनाते हैं। अगर कस्टडी का विवाद हो, तो कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है।
- संपत्ति के अधिकार: तलाक के दौरान संपत्ति का बंटवारा तय होता है। दोनों पक्षों को संपत्ति के सही बंटवारे पर समझौता करना चाहिए।
- पुनर्विवाह: तलाक के बाद दोनों पक्षों को पुनर्विवाह की अनुमति होती है।
दिल्ली में आपसी सहमति से तलाक के लिए कितना खर्च आता है?
दिल्ली में आपसी सहमति से तलाक का खर्च कई बातों पर निर्भर करती है जैसे वकील की फीस, कोर्ट फीस, और अन्य खर्चे।
- वकील की फीस: वकील की फीस तलाक की जटिलता और वकील के अनुभव पर निर्भर करती है। आमतौर पर यह ₹10,000 से ₹30,000 तक हो सकती है। यदि केस सरल है और दोनों पक्ष सहमत हैं, तो फीस कम हो सकती है। यदि जटिलताएं हैं या समझौते पर पहुंचने में कठिनाई है, तो फीस अधिक हो सकती है।
- कोर्ट फीस: तलाक याचिका दाखिल करने के लिए दिल्ली में कोर्ट फीस ₹500 से ₹1,000 तक होती है। यह फीस कोर्ट के प्रशासनिक खर्चों को कवर करने के लिए होती है और अपेक्षाकृत कम होती है।
- अन्य खर्चे: तलाक के मामलों में कई अतिरिक्त खर्चे भी हो सकते हैं, जैसे दस्तावेजों की नोटरी करवाना, विवाह प्रमाणपत्र की प्रमाणित कॉपी प्राप्त करना, और अन्य प्रशासनिक खर्चे। यह खर्च ₹1,000 से ₹3,000 तक हो सकते हैं।
इस प्रकार, दिल्ली में आपसी सहमति से तलाक का कुल खर्च ₹12,000 से ₹35,000 तक हो सकता है, जो एक विवादित तलाक से काफी कम और सस्ता है।
निष्कर्ष
दिल्ली में आपसी सहमति से तलाक लेना एक सरल प्रक्रिया है यदि दोनों पार्टनर शादी को समाप्त करने पर सहमत हों। ऊपर बताए गए सरल कदमों का पालन करके और सभी आवश्यक दस्तावेज़ तैयार करके आप बिना किसी परेशानी के तलाक प्राप्त कर सकते हैं। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि आपसी सहमति से तलाक सहयोग पर आधारित होता है, और दोनों पार्टनरों को अलगाव के शर्तों पर स्पष्ट समझ बनानी होती है, ताकि प्रक्रिया सरल और तेज़ हो सके।
यदि आप आपसी सहमति से तलाक लेने का विचार कर रहे हैं, तो एक कानूनी विशेषज्ञ से सलाह लेना आपके अधिकारों की सुरक्षा और प्रक्रिया को समय पर और प्रभावी रूप से पूरा करने में मदद कर सकता है।
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FAQs
1. क्या मैं आपसी सहमति से तलाक बिना वकील के कर सकता हूँ?
आपसी सहमति से तलाक का मामला कोर्ट में फाइल करना आसान है, लेकिन इसे सही तरीके से दायर करने और सभी कानूनी शर्तों को पूरा करने के लिए वकील की मदद लेना बेहतर है।
2. क्या आपसी सहमति से तलाक में बच्चों की कस्टडी पर फैसला लिया जाता है?
हां, आपसी सहमति से तलाक के दौरान दोनों पार्टनर बच्चों की कस्टडी पर सहमति बनाते हैं। अगर दोनों के बीच कोई विवाद हो, तो कोर्ट इसका समाधान करेगा।
3. क्या आपसी सहमति से तलाक के बाद मैं फिर से शादी कर सकता हूँ?
हां, तलाक के बाद दोनों पार्टनर पुनर्विवाह करने के लिए स्वतंत्र होते हैं, जब तक तलाक का अंतिम आदेश कोर्ट द्वारा जारी कर दिया जाता है।
4. दिल्ली में आपसी सहमति से तलाक का खर्च कितना होता है?
दिल्ली में आपसी सहमति से तलाक का खर्च लगभग ₹12,000 से ₹35,000 तक हो सकता है, जो वकील की फीस, कोर्ट फीस और अन्य खर्चों पर निर्भर करता है।