एकतरफा तलाक की पूरी प्रक्रिया क्या है?

एकतरफा तलाक की पूरी प्रक्रिया क्या है?

शादीशुदा ज़िन्दगी से ख़ुश न रहने पर अक्सर लोग तलाक का सहारा ले लेते हैं। तलाक के मामलों में अब आम तौर पर आपसी सहमति से तलाक लेना ज़्यादा पसंद किया जाता है जहां तलाक के लिए पति पत्नी दोनों की ही सहमति होती है। मगर कभी-कभी आपसी सहमति से तलाक नहीं होता है। ऐसी स्थिति में या तो काँटेस्टेड तलाक होता है या फिर एक-तरफा तलाक लिया जाता है।

आज इस आलेख में हम एक तरफा तलाक कैसे दिया जाता है? इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे। एक तरफा तलाक के क्या नियम हैं? एक तरफा तलाक कितने समय मे दिया जा सकता है और एक तरफा तलाक कैसे दिया जाता है? इन सभी बातों को समझने का प्रयास करेंगे। आइये समझते हैं एक तरफा तलाक कैसे दिया जाता है?

एक तरफा तलाक की स्थिति में पति या पत्नी में से किसी एक के द्वारा न्यायालय के समक्ष तलाक की याचिका दायर की जाती है। हालांकि एक तरफा तलाक की प्रक्रिया अन्य दूसरी तलाक की प्रक्रियाओं की अपेक्षा जटिल और लंबी होती है। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि एक तरफा तलाक लेने के लिए कुछ विशेष कारणों का होना भी बहुत ज़रूरी है। आइये पहले समझते हैं कि वे कौन से कारण हैं जिनके आधार पर एक तरफा तलाक की याचिका दायर की जा सकती है?

व्याभिचार का आधार:

यदि पति/पत्नी में किसी ने भी व्यभिचार यानि कि किसी अन्य स्त्री/पुरुष के साथ संबंध स्थापित कर लिए हों तो ऐसी स्थिति में पति/पत्नी में से किसी एक के द्वारा एक तरफा तलाक की याचिका न्यायालय में पेश की जा सकती है।

दो वर्षों से अधिक विलग होने की स्थिति में:

यदि पति पत्नी दो वर्षों से अधिक समय से एक दूसरे से विलग रह रहे हों तो यह आधार एक तरफ़ा तलाक की याचिका के लिए उपयुक्त होगा। 

हिंसा की स्थिति में:

यदि पत्नी या पति द्वारा न्यायालय के समक्ष इस बात की पुष्टि हो सके कि उनमें से कोई भी एक मानसिक या शारीरिक हिंसा से पीड़ित है तो इस आधार पर एक तरफा तलाक की याचिका दायर कर एक तरफा तलाक लिया जा सकता है।

धर्म परिवर्तन की स्थिति में:

यदि पति/पत्नी में कोई भी एक धर्म परिवर्तन करने या कर लिए जाने पर ज़ोर दे या कर ले तो इस स्थिति को भी एक तरफा तलाक के लिए एक आधार माना जाता है।

मानसिक एवं शारीरिक रोग की स्थिति में:

यदि पति/पत्नी में से कोई भी शारीरिक या मानसिक रूप से रुग्णावस्था में हो तो इस बात को आधार बना कर भी एक तरफा तलाक की याचिका को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाए।

सन्यास की स्थिति में:

यदि पति/पत्नी में से किसी एक के द्वारा सन्यास ले कर दुनिया का त्याग कर दिया गया हो तो इस स्थिति में भी एक तरफा तलाक की याचिका प्रस्तुत की जा सकती है।

7 वर्ष या उस से अधिक समय तक गुमशुदगी की स्थिति:

यदि पति पत्नी में से कोई भी सात वर्ष या उस से अधिक समय से गुमशुदगी की स्थिति में है तो न्यायालय के समक्ष इस बात को आधार बना कर भी एक तरफा तलाक लिया जा सकता है।

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नपुंसकता:

नपुंसकता को भी आधार बना कर एक तरफा लिए जा सकने के प्रावधान है।

एक तरफा तलाक के लिए यह सभी परिस्थितियां हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) के अंतर्गत उल्लेखित हैं जिनके आधार पर पति/पत्नी द्वारा एक तरफा तलाक की याचिका दायर की जा सकती है।

एक तरफा तलाक लिए जाने के लिए न्यायालय के समक्ष याचिका प्रस्तुत करने के साथ ही कुछ दस्तावेजों का होना भी आवश्यक होता है। आइये जानते हैं कि वे कौन से दस्तावेज हैं

जिनका होना एक तरफा तलाक के लिए आवश्यक होता है:

  1. विवाह प्रमाण पत्र: एक तरफा तलाक के लिए विवाह प्रमाण का होना आवश्यक होता है।
  2. एक तरफा तलाक के लिए एक वर्ष या उस से अधिक तक अलग रहने का प्रमाण भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा।
  3. इस बात के भी साक्ष्य प्रस्तुत किये जाने होंगे कि सुलह के प्रयास भी पति/पत्नी के मध्य किये गए हैं जो कि विफल रहे।
  4. पति/पत्नी दोनों के ही परिवारों की जानकारी भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करनी होगी।
  5. विगत तीन वर्षों का आयकर स्टेटमेंट भी प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा।
  6. अपने कार्य और आय का विवरण देना।
  7. सम्पत्ति और स्वामित्व का विवरण प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा।
  8. आवासीय प्रमाण पत्र।

इसके बाद पति/पत्नी द्वारा तलाक की याचिका दायर की जाती है। दूसरे साथी को इस बारे में सूचित किये जाने के बाद भी यदि वह न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं होता है तो आगे की तारीख दी जाती हैं परंतु यदि साथी तब भी प्रस्तुत न हो तो इस स्थिति में एक तरफा तलाक न्यायालय द्वारा प्रदान कर दिया जाता है।

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