भारत के संविधान ने भारत के हर नागरिक को कुछ ऐसे अधिकार दिए हैं जो उसे बहुत शक्ति प्रदान करते हैं। इन्हें हिन्दी में मौलिक अधिकार और अंग्रेजी में फंडामेंटल राईट्स (Fundamental Right) कहते हैं। ये मौलिक अधिकार हमें आजादी और सम्मान से जीने का हक़ देते हैं। संविधान के अनुसार आपातकाल यानी इमरजेंसी के अलावा मौलिक अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता।
लेकिन यदि कभी किसी स्थिति में हमारे फंडामेंटल राइट्स का हनन होता है तो संविधान ने हमें उनके उपचार का अधिकार भी दिया है। तो पहले अपने मौलिक अधिकारों के बारे में जान लीजिये।
समानता का अधिकार यानी राईट टू इक्वेलिटी
स्वतंत्रता का अधिकार राईट टू फ्रीडम
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (राईट टू रिलीजियस फ्रीडम)
शोषण के विरुद्ध अधिकार (राईट अगेंस्ट एक्सप्लोईटेशन)
संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार (राईट टू कल्चर एंड एजुकेशन)
संवैधानिक उपचारों का अधिकार (राईट टू कांस्टटियुशनल रेमेडीज)
मौलिक अधिकार किसी भी नागरिक के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। लेकिन अगर इन अधिकारों का हनन होने लगे तब आपके सामने क्या उपाय है। आइये समझते हैं।
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संविधान के भाग तीन में मौलिक अधिकारों के अंतर्गत एक अधिकार दिया गया है संवैधानिक उपचारों का अधिकार। यही वो अधिकार है जहाँ इसका वर्णन मिलता है कि अगर मौलिक अधिकारों का हनन हो तो व्यक्ति को क्या कानूनी उपाय करने चाहिए। इसका विस्तार 4 आर्टिकल्स में मिलता है।
- आर्टिकल 359
आर्टिकल 359 कहता है कि आपातकाल यानी इमरजेंसी के अलावा कभी भी भारत के किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता।
- आर्टिकल 32
भारत के संविधान में आर्टिकल 32 बहुत महत्वपूर्ण है। इसे संविधान निर्माता डॉ BR आंबेडकर ने इसे संविधान का ह्रदय और आत्म कहा है। आर्टिकल 32 व्यक्ति को अधिकार देता है कि वो मूल अधिकारों के हनन की स्थिति में सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकता है। आर्टिकल 32 फंडामेंटल राइट्स के प्रोटेक्शन की बात तो करता ही है साथ ही यह खुद भी एक फंडामेंटल राइट है।
आर्टिकल 32 दो तरह से काम करता है। पहला कि इसके अंतर्गत व्यक्ति सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सता है। दूसरा आर्टिकल 32 सुप्रीम कोर्ट को ये शक्ति देता है कि वो व्यक्ति के फंडामेंटल राइट की रक्षा के रिट इश्यू कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट 5 तरह के रिट इशू कर सकता है ये हैं-
- बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कोर्पस)
- मंडामर्स
- सर्शोरी
- प्रोहिबिशन
- को-वारंटो
- आर्टिकल 13
आर्टिकल 13 भी एक नागरिक के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह बताता है कि भारत के हर नागरिक को ज्युडीशिल रिव्यू का अधिकार है। यानी अगर किसी के खिलाफ कोइ फैसला आ चुका है या आने वाला है तो वो उसके रिव्यू के लिए हायर कोर्ट जा सकता है।
- आर्टिकल 226
आर्टिकल 226 भी आर्टिकल 32 की तरह ही काम करता है। लेकिन इसमें फंडामेंटल राइट्स की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट की जगह हाई कोर्ट की शरण लेनी होती है। इसके अलावा आर्टिकल 226 हाईकोर्ट को रिट इश्यू करने की पावर देता है।
(नोट – मौलिक अधिकार के हनन की स्थति में व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट दोनों में जा सकता है। लेकिन यदि वो सीधे सुप्रीम कोर्ट गया है तो उसे कोर्ट को बताना होगा कि वो हाई कोर्ट के बजाह्ये सुप्रीम कोर्ट क्यों गए।)
आर्टिकल 226 भी आर्टिकल 32 दोनों ही के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट रिट इश्यू कर सकते हैं लेकिन दोनों में दो बड़े फर्क हैं।
पहला – आर्टिकल 32 विशेष रूप से व्यक्ति के फंडामेंटल राईट की रक्षा के लिए बना।
दूसरा – आर्टिकल 226 फंडामेंटल राईट प्रोटेक्शन के अलावा एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्युनल्स और पब्लिक अथोरिटीज के फैसलों के खिलाफ रिट इश्यू करता है। तो ये थे भारत के नागरिको के कुछ महत्वपूर्ण अधिकार जो उसे मौलिक अधिकारों के हनन से समय मदद करते हैं।