भारत में हर साल लाखों लोग सड़क दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं। ऐसे मामलों में पीड़ित व्यक्ति या उसके परिजन मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT – Motor Accident Claims Tribunal) के माध्यम से मुआवज़ा प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए सही जानकारी और प्रक्रिया का पालन आवश्यक है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि सड़क हादसे के बाद मुआवज़ा कैसे लिया जा सकता है, कौन पात्र है, क्या दस्तावेज़ चाहिए, और कानून क्या कहता है।
MACT क्या है?
MACT (Motor Accident Claims Tribunal) एक विशेष न्यायाधिकरण है जो मोटर वाहन दुर्घटना के पीड़ितों को शीघ्र मुआवज़ा दिलाने के लिए स्थापित किया गया है। इसका गठन मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत हुआ था।
सड़क दुर्घटना में मुआवज़ा प्राप्त करने की पात्रता
निम्नलिखित लोग मुआवज़ा प्राप्त करने के पात्र हैं:
- दुर्घटना में घायल व्यक्ति
- मृतक के कानूनी वारिस (माता-पिता, पति/पत्नी, बच्चे)
- दुर्घटना के कारण स्थायी विकलांगता झेलने वाला व्यक्ति
- तीसरे पक्ष द्वारा वाहन क्षति होने पर वाहन मालिक
दुर्घटना के बाद क्या करें?
- पुलिस को तुरंत सूचना दें – 100 नंबर पर कॉल करें और एफआईआर दर्ज कराएं।
- मेडिकल सहायता लें – सरकारी या मान्यता प्राप्त अस्पताल में इलाज कराएं और मेडिकल रिपोर्ट सुरक्षित रखें।
- वाहन का विवरण इकट्ठा करें – दुर्घटनाग्रस्त वाहन का रजिस्ट्रेशन नंबर, इंश्योरेंस डिटेल्स और ड्राइवर का लाइसेंस नंबर।
- गवाहों की जानकारी नोट करें – यदि कोई प्रत्यक्षदर्शी है तो उसका नाम और संपर्क संख्या नोट करें।
MACT में दावा कैसे करें?
आवेदन कहाँ करें?
दुर्घटना की जगह या पीड़ित के निवास स्थान की MACT कोर्ट में।
किसके खिलाफ दावा करें?
- वाहन चालक (Driver)
- वाहन मालिक (Owner)
- बीमा कंपनी (Insurance Company)
दावा कैसे करें?
एक वकील के माध्यम से MACT के अंतर्गत धारा 166 और 140 के तहत दावा याचिका दायर करें।
आवश्यक दस्तावेज़:
- एफआईआर की प्रति
- मेडिकल रिपोर्ट और बिल
- पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट (मौत के मामले में)
- वाहन का बीमा प्रमाण पत्र
- ड्राइविंग लाइसेंस की प्रति
- मृतक या घायल की आय से संबंधित प्रमाणपत्र (जैसे सैलरी स्लिप, आईटीआर)
कितना मुआवज़ा मिल सकता है?
मुआवज़ा मुख्यतः निम्न आधार पर तय होता है:
मापदंड | विवरण |
आयु और आय | पीड़ित की मासिक/वार्षिक आय और उम्र |
आश्रितों की संख्या | मृतक पर आश्रित लोगों की संख्या |
मेडिकल खर्च | इलाज, सर्जरी, दवा आदि पर हुआ खर्च |
स्थायी विकलांगता | यदि व्यक्ति विकलांग हो गया है तो प्रतिशत के आधार पर मुआवज़ा |
मानसिक पीड़ा | दर्द, तकलीफ, और जीवन स्तर में गिरावट के लिए अलग से मुआवज़ा |
नोट: यदि मृतक इनकम टैक्स रिटर्न भरता था, तो सरकार पिछले तीन वर्षों की औसत वार्षिक आय का 10 गुना तक मुआवज़ा देती है।
कौन ज़िम्मेदार होगा?
- यदि ड्राइवर के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस और वैध बीमा था – बीमा कंपनी ज़िम्मेदार होगी।
- यदि ड्राइवर के पास लाइसेंस नहीं था – ड्राइवर और वाहन मालिक दोनों व्यक्तिगत रूप से ज़िम्मेदार होंगे।
- यदि वाहन का बीमा नहीं था – वाहन मालिक पूरी राशि चुकाने का उत्तरदायी होगा।
पुलिस केस और सज़ा
धारा | अपराध | सजा |
BNS की धारा 281 | लापरवाही से गाड़ी चलाना | 6 महीने की जेल या ₹1000 जुर्माना |
BNS की धारा 125 | चोट पहुँचाना | 6 महीने से 2 साल तक की सजा और जुर्माना |
BNS की धारा 106 | लापरवाही से मृत्यु | 2 साल तक की सज़ा और जुर्माना |
ड्राइवर का पक्ष
कोई भी व्यक्ति जानबूझकर दुर्घटना नहीं करता। यदि दुर्घटना शिकायतकर्ता की गलती से हुई हो, तो ड्राइवर अपने बचाव में निम्नलिखित बातें कोर्ट में प्रस्तुत कर सकता है:
- वैध लाइसेंस, बीमा और रजिस्ट्रेशन
- दुर्घटना की सही स्थिति
- प्रत्यक्षदर्शी गवाह
सुप्रीम कोर्ट के कई महत्वपूर्ण निर्णय
रावत सिंह बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2025):
₹28.93 लाख का मुआवज़ा, इस महत्वपूर्ण निर्णय में, सर्वोच्च न्यायालय ने सड़क दुर्घटना के एक पीड़ित को ₹28.93 लाख का मुआवज़ा प्रदान किया। यह मुआवज़ा कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए तय किया गया, जिनमें शामिल हैं:
- 90% कार्यात्मक विकलांगता: कोर्ट ने माना कि दुर्घटना के कारण पीड़ित की कार्य करने की क्षमता लगभग पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है, जिससे उसकी आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
- आयु में सुधार: मुआवज़े की गणना करते समय पीड़ित की उम्र को ध्यान में रखते हुए आयु में सुधार का लाभ दिया गया, जिससे पीड़ित को अधिक न्यायसंगत मुआवज़ा मिल सके।
- दर्द, पीड़ा और मानसिक संताप: अदालत ने शारीरिक और मानसिक पीड़ा के लिए भी मुआवज़ा निर्धारित किया, जिससे पीड़ित को न्याय की भावना प्राप्त हो सके।
- विवाह की संभावनाओं का नुकसान: कोर्ट ने यह भी माना कि इतनी गंभीर विकलांगता के बाद पीड़ित के वैवाहिक जीवन की संभावनाएं प्रभावित होंगी, और इस नुकसान के लिए भी मुआवज़ा दिया गया।
यह निर्णय इस बात का प्रमाण है कि आज की न्यायपालिका केवल तकनीकी पहलुओं पर नहीं, बल्कि पीड़ित की वास्तविक सामाजिक, मानसिक और शारीरिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए मुआवज़े का निर्धारण कर रही है।
डेब्बी जैन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2024):
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पीड़ित को 100% विकलांगता के लिए ₹15 लाख का मुआवजा प्रदान किया। इसके साथ ही कोर्ट ने पीड़ा और कष्ट के लिए अतिरिक्त मुआवजा भी निर्धारित किया, जो सामान्य से अधिक था।
मनीष गौतम बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2023):
इस मामले में मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) ने एक सरकारी कर्मचारी के परिवार को ₹2 करोड़ का मुआवजा प्रदान किया। न्यायालय ने दुर्घटना में ड्राइवर की लापरवाही को स्वीकार किया और पीड़ित के परिवार को उचित मुआवजा दिया।
चंद्रमणि नंदा बनाम सरत चंद्र स्वैन (2024):
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ट्रिब्यूनल द्वारा तय किए गए मुआवजे की राशि को बढ़ाने का आदेश दिया।
निष्कर्ष
सड़क दुर्घटना सिर्फ एक हादसा नहीं बल्कि एक कानूनी अधिकार का मामला भी है। यदि आप या आपके किसी जानने वाले के साथ ऐसी घटना हो, तो घबराएं नहीं। सही कानूनी जानकारी और प्रक्रिया के साथ मुआवज़ा प्राप्त किया जा सकता है। MACT कानून पीड़ितों की सहायता के लिए बना है – इसका पूरा लाभ उठाएं।
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FAQs
Q1. क्या MACT में बिना वकील के केस दायर कर सकते हैं?
हाँ, लेकिन वकील के माध्यम से केस दायर करना बेहतर होता है ताकि प्रक्रिया में कोई त्रुटि न हो।
Q2. कितने समय में मुआवज़ा मिल जाता है?
आमतौर पर 6 महीने से 1 साल के अंदर केस निपट जाता है, लेकिन परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
Q3. क्या इंश्योरेंस कंपनी हर हालत में मुआवज़ा देती है?
नहीं। यदि ड्राइवर नशे में था या गाड़ी का इंश्योरेंस वैध नहीं था तो इंश्योरेंस कंपनी भुगतान से इनकार कर सकती है।
Q4. अगर मृतक बेरोजगार था तो क्या मुआवज़ा मिलेगा?
हाँ, आश्रितों की संख्या और उम्र के आधार पर न्यूनतम मुआवज़ा तय किया जाता है।