अगर कोई अपना केस वापस लेना चाहे तो कैसे ले ?

अगर कोई अपना केस वापस लेना चाहे तो कैसे ले

कई बार गुस्से में या परिस्थितिवश लोग कोर्ट कचेहरी के मामलों में फंस जाते हैं। ऐसे में वो चाहते हैं कि वो अपना केस वापस ले लें| यदि कोइ अपना केस वापस लेना चाहता है तो इसके लिए कानूनी प्रावाधान किये गए हैं|

लेकिन केस दो तरह के होते हैं समझौतावादी और गैर-समझौतावादी। समझौतावादी केस में पीड़ित व्यक्ति चाहे तो अपना केस कोर्ट से वापस ले सकता है। लेकिन गैर-समझौतावादी केस में ऐसा नहीं किया जा सकता।

तो अब आप ये कैसे जानेंगे कि केस समझौतावादी है या गैर-समझौतावादी।इसके लिए भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-320में प्रावधान दिया गया है। धारा 320 के अन्दर एक पूरा चार्टर दिया गया है जिसमेंबताया गया है कि समझौतावादी और गैर-समझौतावादीकेस कौन से होते हैं।

ज्यादातर कम गंभीर प्रकृति वाले अपराध जिनमें3 साल से कम की सजा हो, ऐसे अपराध वाले केस वापस लिए जा सकते हैं। हालांकि इनमें कुछ केस अपवाद भी है जिनमें सजा 3 से कम है लेकिन वो वापस नहीं लिए जा सकते।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

किन केस में होते हैं मुक़दमें वापस

आमतौर पर छोटे-मोटे झगड़े और मारपीट आदि में केस करने वाला व्यक्ति अपना केस वापस ले सकते हैं।आइये जानते हैं कौन से केस वापस लिए जा सकते हैं।

  • जबरदस्ती रास्ता रोकने के केस – आईपीसी की धारा-323
  • धमकी देने के केस – आईपीसी की धारा506
  • मानहानि – आईपीसी की धारा500
  • जख्मी करना आईपीसी की धारा325
  • चोरी –  आईपीसी की धारा-379
  • धोखाधड़ी – आईपीसी की धारा-420
  • अमानत में खयानत – आईपीसी की धारा-406
  • लापरवाही से वाहन चलाना – आईपीसी की धारा-279
इसे भी पढ़ें:  भारतीय कानून में सरोगसी के लिए क्या-क्या प्रावधान है?

इस तरह के मामलों में लोग आपस में बैठ कर समझौता कर लेते हैं और केस करने वाला व्यक्ति अपना केस वापस ले लेता है।

केस वापस लेने की प्रोसेस

केस वापस लेने के लिये सीआरपीसी की धारा-320 के तहत कोर्ट में एप्लीकेशन दी जाती है। इस एप्लीकेशन में कोर्ट को बताया जाता है कि वादी और प्रतिवादी के बीच समझौता हो गया है। अत: इस केस को रद्द कर दिया जाए। कई मामलों में कोर्ट भी केस रद्द कर सकता है।

किन मामलों में नहीं होते केस वापस

गंभीर किस्म के अपराध जिनमें सजा 3 साल से अधिक हो उन में अपनी मर्जी से केस वापस नहीं लिया जा सकता।लेकिन यदि फिर भी दोनों पार्टियों में समझौता हो जाता है तो केस ख़त्म करने के लिए हाईकोर्ट में अर्जी दी जाती है।

गैर समझौतावादी केस

  • राजद्रोह -आईपीसी की धारा 124A
  • दहेज प्रताड़ना–आईपीसी की धारा498
  • गैर-इरादतन हत्या –आईपीसी की धारा308
  • जालसाजी – आईपीसी की धारा463
  • अपरहरण और फिरौती – आईपीसी की धारा 364
  • ह्त्या -आईपीसी की धारा 302
  • बलात्कार – आईपीसी की धारा 376

इस तरह के गंभीर किस्म के मामलों में केस वापस नहीं लिए जा सकते। लेकिन 2012 के पहले कुछ मामलों में इस तरह के केस भी सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट में अर्जी देकर वापस लिए गए हैं।

इसके लिए वादी कोसीआरपीसी की धारा-482 के अंतर्गत कोर्ट को अर्जी देनी होती है कि उसका प्रतिवादी या आरोपी से समझौता हो गया है और दोनों मिलकर केस ख़त्म करना चाहते हैं।

ऐसे में हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट अर्जी को रिव्यू करते हैं और यदि वो संतुष्ट हों तो इस तरह के केस भी वापस लिए जा सकते हैं।

इसे भी पढ़ें:  हिंदू कानून के तहत बच्चे की मेंटेनेंस का अधिकार।

लेकिन इस तरह के मामलों में इस धरा का दुरुपयोग भी हुआ। कई ऐसे केस हुए जहाँ रेप के बाद लड़की को शादी का झांसा दिया गया और लड़की ने केस वापस ले लिया। लेकिन 2012 में ज्ञान सिंह वर्सेस स्टेट ऑफ पंजाब केस में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि डकैती और रेप के मामले समझौते के आधार पर वापस नहीं लिए जायेंगे।

Social Media