केस कैसे वापस लें?

How to withdraw a case

कानूनी मामलों में कभी-कभी पक्षकारों को केस वापस लेने की आवश्यकता महसूस होती है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब दोनों पक्षों के बीच समझौता हो जाता है या जब किसी कारणवश मामला आगे नहीं बढ़ सकता। आमतौर पर, जब किसी केस में विवाद का समाधान आपसी सहमति से हो जाता है, तो लोग केस वापस लेने की प्रक्रिया को अपनाते हैं। इसके अलावा, यदि किसी व्यक्ति द्वारा गलती से केस दर्ज कराया गया हो, तो उसे वापस लेने की आवश्यकता महसूस हो सकती है।

यह प्रश्न उठता है कि क्या सभी मामलों को वापस लिया जा सकता है? इसका उत्तर हर केस के प्रकार और परिस्थिति पर निर्भर करता है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि कानूनी दृष्टिकोण से केस वापस कैसे लिया जा सकता है, किन मामलों में यह संभव है, और इसमें कौन-कौन सी कानूनी प्रक्रियाएँ शामिल हैं।

केस वापस लेने के कानूनी आधार क्या है?

किसी केस को वापस लेने के कई कानूनी आधार हो सकते हैं। मुख्यतः इन आधारों पर ध्यान दिया जाता है:

  • आपसी समझौता: जब दोनों पक्ष एक समझौते पर पहुंचते हैं, तो वे केस को वापस लेने के लिए आवेदन कर सकते हैं। यह अक्सर तब होता है जब पीड़ित पक्ष आरोपी के खिलाफ शिकायत को वापस ले लेता है और दोनों पक्षों के बीच कोई व्यक्तिगत या वित्तीय समझौता होता है।
  • झूठा केस साबित होना: यदि कोई व्यक्ति झूठी शिकायत करता है और बाद में यह साबित हो जाता है कि शिकायत झूठी थी, तो केस वापस लिया जा सकता है।
  • समझौते के बाद पार्टियों का कोर्ट से अनुरोध: कभी-कभी पार्टियाँ कोर्ट से अनुरोध करती हैं कि वे केस को समाप्त कर दें, खासकर जब कोई आपसी समझौता हो चुका हो।
  • गलत शिकायत या FIR दर्ज होने पर: अगर किसी ने बिना आधार के शिकायत की है या FIR गलत तरीके से दर्ज कराई गई है, तो उसे वापस लिया जा सकता है।
  • अदालत की स्वीकृति कब ज़रूरी होती है?: कुछ मामलों में अदालत की स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक होता है, खासकर जब केस की सुनवाई पहले ही शुरू हो चुकी हो।

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किन केसों को वापस लिया जा सकता है?

केस वापस लेने की प्रक्रिया कंपाउंडेबल और नॉन-कंपाउंडेबल अपराधों के आधार पर अलग होती है।

  • कंपाउंडेबल (मिलकर सुलझाने योग्य) अपराध: ये वे अपराध होते हैं जिनमें दोनों पक्षों के बीच समझौता करके मामला सुलझाया जा सकता है। जैसे कि दुश्मनी की वजह से किया गया हल्का अपराध, जिसमें दोनों पक्ष अपनी सहमति से केस वापस ले सकते हैं।
  • नॉनकंपाउंडेबल (गंभीर) अपराध: ये वे अपराध होते हैं जिनमें आमतौर पर समझौता नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए, हत्या, बलात्कार, या चोरी जैसे गंभीर अपराध। हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में, कोर्ट नॉन-कंपाउंडेबल अपराधों के मामलों में भी राहत दे सकता है।
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प्रमुख कम्पाउंडेबल अपराध: (भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत)

अपराधBNS की धारा
साधारण मारपीट115(2)
जान से मारने की धमकी351
मानहानि356
चोरी (पहली बार)303
धोखाधड़ी318
लापरवाही से वाहन चलाना281
मामूली चोट पहुँचाना131

केस वापस लेने की प्रक्रिया क्या है?

यदि आप केस वापस लेना चाहते हैं, तो इसके लिए एक कानूनी प्रक्रिया है जिसे आपको सही तरीके से पालन करना होगा:

  • पुलिस थाने में शिकायत वापस लेना: यदि मामला पुलिस स्तर पर है, तो आप पुलिस से अनुरोध कर सकते हैं कि वे आपकी शिकायत को वापस लें। इसके लिए एक लिखित आवेदन देना पड़ता है।
  • मजिस्ट्रेट/कोर्ट में पेटिशन  दायर करना: अगर मामला कोर्ट में है, तो आपको कोर्ट में पेटिशन  दायर करनी होती है। इसमें यह स्पष्ट करना होता है कि आप केस वापस लेना चाहते हैं और इसके पीछे का कारण क्या है।
  • वकील की भूमिका: वकील आपके केस को सही तरीके से कोर्ट में प्रस्तुत करने में मदद करते हैं और आवश्यक कानूनी दस्तावेज़ तैयार करने में आपकी सहायता करते हैं।
  • कोर्ट की अनुमति कब आवश्यक होती है?: कई बार, अगर मामला ट्रायल स्टेज पर हो, तो कोर्ट से अनुमति प्राप्त करना जरूरी होता है।
  • कंपाउंडेबल मामलों में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 359 का उपयोग: यह धारा कंपाउंडेबल अपराधों के मामलों में लागू होती है, और इसके तहत शिकायतकर्ता के आवेदन पर केस वापस लिया जा सकता है।
  • नॉनकंपाउंडेबल मामलों में धारा 528, BNSS में हाईकोर्ट से राहत: अगर केस नॉन-कंपाउंडेबल है और कोर्ट से बाहर समझौता हो गया है, तो हाई कोर्ट से केस रद्द कराने के लिए पेटिशन  दायर की जा सकती है।

FIR कैसे वापस लें?

FIR दर्ज होने के बाद अगर आपको केस वापस लेना है, तो आप निम्नलिखित उपायों को अपना सकते हैं:

  • पुलिस से अनुरोध या कोर्ट से अपील: यदि FIR गलत तरीके से दर्ज कराई गई हो, तो आप पुलिस से इसे वापस लेने का अनुरोध कर सकते हैं या कोर्ट में अपील कर सकते हैं।
  • FIR रद्द कराने की प्रक्रिया: यदि FIR में गलत जानकारी है और आप चाहते हैं कि FIR रद्द हो जाए, तो आप हाई कोर्ट में धारा 528 BNSS के तहत पेटिशन दायर कर सकते हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के दिशानिर्देश: सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने कई मामलों में यह निर्णय दिया है कि FIR को वापस लेने के लिए सही कानूनी प्रक्रिया अपनानी चाहिए।
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झूठे केस को वापस कैसे लें?

यदि किसी ने गलत तरीके से या झूठी शिकायत दर्ज की है, तो उस केस को वापस लेने की प्रक्रिया भी होती है:

  • अगर गलती से केस किया गया हो: इस स्थिति में आपको कोर्ट से माफी मांगनी होती है और केस को वापस लेने के लिए पेटिशन  दायर करनी होती है।
  • क्या इससे कोई दंड हो सकता है?: यदि यह साबित होता है कि केस जानबूझकर झूठा था, तो शिकायतकर्ता पर BNS की धारा 217 या 248 के तहत दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है।

समझौते के बाद केस वापस लेने की प्रक्रिया क्या है?

जब दोनों पक्षों के बीच समझौता हो जाता है, तो केस वापस लेने की प्रक्रिया में यह कदम उठाए जाते हैं:

  • सेटलमेंट डीड का ड्राफ्ट बनाना: एक कानूनी दस्तावेज़ तैयार किया जाता है जो दोनों पक्षों के बीच समझौते को दिखाता है।
  • कोर्ट में कोम्प्रोमाईज़ पेटिशन दायर करना: समझौता करने के बाद, इसे कोर्ट में प्रस्तुत किया जाता है।
  • न्यायिक मजिस्ट्रेट की भूमिका: मजिस्ट्रेट यह सुनिश्चित करते हैं कि समझौता न्यायसंगत और वैध है।

केस वापसी में कोर्ट की स्वीकृति कब आवश्यक है?

कुछ परिस्थितियों में कोर्ट की स्वीकृति आवश्यक होती है:

  • नॉनकंपाउंडेबल अपराधों में: इस तरह के अपराधों में केस को बिना कोर्ट की अनुमति के वापस नहीं लिया जा सकता।
  • जब केस ट्रायल स्टेज में पहुँच चुका हो: अगर केस पहले ही ट्रायल स्टेज पर है, तो कोर्ट की अनुमति आवश्यक होती है।
  • अपराध समाज के विरुद्ध हो: यदि केस समाज के बड़े हित से संबंधित है, तो कोर्ट स्वीकृति देने में संकोच कर सकती है।

केस वापस लेने के कानूनी प्रभाव क्या हो सकते है?

  • आरोपी को बरी किया जाएगा या नहीं?: अगर केस वापस लिया जाता है, तो आरोपी को बरी किया जा सकता है, लेकिन यह न्यायालय के निर्णय पर निर्भर करता है।
  • भविष्य में उसी मामले पर दोबारा केस संभव?: यदि केस वापस लिया गया है, तो वही मुद्दा भविष्य में पुनः उठाया जा सकता है, बशर्ते नई जानकारी या सबूत सामने आएं।
  • FIR रिकॉर्ड में रहेगा या हटेगा?: केस वापस लेने के बाद FIR रिकॉर्ड से हटा दिया जाता है या फिर यह कोर्ट के आदेश पर छोड़ दिया जा सकता है।

शैलेन्द्र कुमार श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2024)

सुप्रीम कोर्ट ने एक विधायक के खिलाफ डबल मर्डर के मामले में प्रॉसिक्यूशन को वापस लेने का आदेश रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी की सार्वजनिक छवि या राजनीतिक स्थिति को प्रॉसिक्यूशन वापस लेने का कारण नहीं माना जा सकता, खासकर जब मामला गंभीर अपराध का हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि मामलों का जल्दी निपटारा होना चाहिए और बिना किसी अनावश्यक देरी के ट्रायल चलना चाहिए।

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दिलीप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2025)

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रॉसिक्यूशन वापस लेने की अर्जी को खारिज किया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पब्लिक प्रॉसिक्यूटर केवल सरकारी आदेश के आधार पर केस वापस नहीं ले सकता। उसे स्वतंत्र रूप से केस का मूल्यांकन करना होगा और कारण देना होगा, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रॉसिक्यूशन वापस लेना सार्वजनिक हित और न्याय के साथ मेल खाता हो।

निष्कर्ष

किसी भी केस को वापस लेने से पहले कानूनी सलाह लेना बहुत महत्वपूर्ण होता है। हर केस की स्थिति और परिस्थिति अलग होती है, इसलिए जल्दबाजी से बचना चाहिए और कानूनी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। अगर आप सही तरीके से केस वापस लेना चाहते हैं, तो वकील से मार्गदर्शन प्राप्त करना आवश्यक है।

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FAQs

1. क्या FIR को सिर्फ पुलिस स्टेशन जाकर हटाया जा सकता है?

एफआईआर (प्रथम सूचना रिपोर्ट) को वापस लेने के लिए शिकायतकर्ता को संबंधित पुलिस स्टेशन में जाकर आवेदन देना होता है। यदि पुलिस द्वारा आरोप पत्र (चार्जशीट) दायर नहीं किया गया है, तो शिकायतकर्ता शिकायत वापस ले सकता है, जिससे कार्यवाही समाप्त हो जाती है।

2. आपसी समझौते के बाद कोर्ट क्या तुरंत केस खत्म कर देता है?

आपसी समझौते के बाद, यदि मामला समझौता योग्य अपराध से संबंधित है और सभी कानूनी औपचारिकताएँ पूरी की गई हैं, तो कोर्ट आमतौर पर केस को समाप्त कर देता है। लेकिन, गंभीर अपराधों में कोर्ट की अनुमति आवश्यक होती है, और समझौते के बावजूद केस जारी रह सकता है।

3. कितने दिनों के अंदर केस वापस लिया जा सकता है?

कानूनी प्रक्रिया में शिकायत वापस लेने की कोई विशेष समयसीमा नहीं है। शिकायतकर्ता किसी भी समय अपनी शिकायत वापस ले सकता है, बशर्ते कि कोर्ट की अनुमति प्राप्त हो और मामला समझौता योग्य अपराध से संबंधित हो।

4. अगर केस ट्रायल में हो तो क्या वापसी संभव है?

ट्रायल के दौरान केस वापस लेना संभव है, लेकिन इसके लिए कोर्ट की अनुमति आवश्यक होती है। यदि शिकायतकर्ता समझौते के आधार पर केस वापस लेना चाहता है, तो उसे कोर्ट में आवेदन देना होगा, और कोर्ट मामले की परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेगा।

5. क्या शिकायतकर्ता पर झूठा केस दर्ज करने पर केस हो सकता है?

यदि शिकायतकर्ता जानबूझकर झूठी शिकायत करता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है। झूठी जानकारी देने पर न्यायपालिका को गुमराह करने के आरोप में व्यक्ति को सजा, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

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