क्या हस्बैंड को अपने ही घर से बेघर किया जा सकता है?

अगर हस्बैंड से दूर रहना ही घर की शांति का एकमात्र तरीका है, तो यह करने में कोई बुराई नहीं है।

[वी अनुषा बनाम बी कृष्णन] के केस में पिटीशन की सुनवाई करते हुए, जज आरएन मंजुला द्वारा यह देखा गया कि अगर वाइफ को अपने हस्बैंड की उपस्थिति/प्रजेंस का इतना डर ​​है कि वह उसकी प्रेज़ेन्स में स्ट्रीमिंग शुरू कर देती है, तो कोर्ट केवल हस्बैंड को अपनी वाइफ को परेशान ना करने का निर्देश देकर हस्बैंड को उसी घर में रहने का निर्देश नहीं दे सकती है।

यह माना गया कि कोर्ट्स को उन महिलाओं के प्रति उदासीन या ज़्यादा भावुक नहीं होना चाहिए जो घर में अपने हस्बैंड की प्रेसेंस से डरती हैं। महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए जो ऑर्डर पास किए गए हैं, वह प्रैक्टिकल और काम करने वाले होंगे।

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फैक्ट्स – 

  • डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के ऑर्डर्स को चुनौती देने वाली वाइफ द्वारा फाइल की गई पिटीशन पर कोर्ट सुनवाई कर रही थी, जिसमें डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने महिला के “अपमानजनक और अनियंत्रित” हस्बैंड को घर छोड़ने के आर्डर देने से मना कर दिया।
  • वह महिला जो एक वकील भी है, ने कहा कि उसके और उसके काम की तरफ उसके हस्बैंड का रवैया अच्छा नहीं था। साथ ही, वह अक्सर उसके साथ दुर्व्यवहार करता था और घर में तनावपूर्ण माहौल बनाता था।
  • दूसरी तरफ हस्बैंड ने विनती करते हुए कहा कि यह एक आदर्श महिला की तरह अपने घर में रहे और अपने बच्चों की देखभाल करे और अपने घर के काम करे।
  • हस्बैंड की दलील कोर्ट को अच्छी नहीं लगी, जिसका वोट था कि अगर हस्बैंड अपनी वाइफ को सिर्फ एक गृहिणी/हाउस वाइफ से ज्यादा कुछ नहीं होने देगा, तो वाइफ का जीवन भयानक हो सकता है।
  • कोर्ट ने कहा कि, “अगर एक महिला इंडिपेंडेंट और हाउस वाइफ होने के अलावा और भी कुछ करती है, और अगर यह उसके हस्बैंड द्वारा अच्छी तरह से एक्सेप्ट नहीं किया जाता है, तो यह उसकी पर्सनल, पारिवारिक और प्रोफ़ेशनल जीवन पर बुरा असर डालकर उसके जीवन को भयानक बना देता है। ….. वाइफ की प्रोफेशनल कमिटमेंट्स की तरफ सपोर्ट और सम्मान में कमी होने की वजह से हस्बैंड ने उसके प्रति दुश्मनों जैसा रवैया बनाया है। हस्बैंड की असंतुष्टि, दोनों पार्टियों के जीवन में कलह और परेशानी पैदा कर रही है।
  • साथ ही हस्बैंड ने हाई कोर्ट के एक अन्य जज को भेद भाव करने के लिए भी जिम्मेदार ठहराया, जिसने केस में हस्बैंड के अगेंस्ट अवमानना ​​का केस शुरू कराया था।
  • बेंच ने यह भी देखा कि हस्बैंड का इस तरह का बिहेवियर केवल परेशान करने वाला है और कपल के बच्चों पर नेगेटिव प्रभाव डालेगा, जो 10 और 6 साल की उम्र में बहुत प्रभावशाली होता हैं।
  • कोर्ट ने कहा कि यह कोई हैरान करने वाली बात नहीं है कि कपल के बीच कुछ इशूज़ हैं या उनकी शादी में कोई ख़ास आकर्षण नहीं बचा है, लेकिन फिर भी वह एक ही छत के नीचे रहते हैं। वह एक-दूसरे के इश्यूज़ के बारे में मिलकर सोल्युशन निकाल सकते है, कुछ छोटी बातों को नज़रअंदाज़ क्र सकते है और एक दूसरे के साथ थोड़ा बहुत एडजस्ट करते हुए एक ही छत के नीचे रह सकते है। हालांकि, इन सिचुऎशन्स के लिए यह जरूरी है कि उनके बिहेवियर से उनकी फैमिली को किसी भी तरह से नुकसान ना हो, और यह बातें सिर्फ उनके रिश्ते तक ही रहें। 
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हालाँकि, यह पूरी तरह से अलग सिनेरिओ होगा, अगर एक पार्टी दूसरी पार्टी के प्रति अनियंत्रित और आक्रामक बिहेवियर रखता है। ऐसी गलत और नाज़ायज़ सिचुएशन में वाइफ और बच्चों को एक ही छत के नीचे रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने यह भी देखा और ऑब्ज़र्व किया कि ऐसे सिनेरिओ में जहां हस्बैंड के अनियंत्रित और आक्रामक बिहेवियर की वजह से घर की शांति भंग होती है, कोर्ट किसी भी केस में हस्बैंड को हटाकर सुरक्षा के लिए आर्डर को प्रैक्टिकल इफ़ेक्ट करने में संकोच नहीं करेगी। 

इस प्रकार, हस्बैंड को वाइफ और घर के अन्य लोगों को परेशान न करने के निर्देश देकर, एक ही घर में रहने की अनुमति देना प्रैक्टिकल और सही नहीं है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट न हस्बैंड को दो हफ्तों के अंदर घर खाली करने का निर्देश दिया। हस्बैंड द्वारा कोर्ट के आर्डर का पालन ना करने पर वाइफ को पुलिस प्रोटेक्शन लेने की भी छूट दी गई।

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