भारतीय समाज में विवाह एक पवित्र संस्था मानी जाती है, लेकिन यह केवल सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि एक कानूनी जिम्मेदारी भी है। पति का यह कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी का भरण-पोषण करे, चाहे वे साथ रह रहे हों या अलग। अगर कोई पति अपनी पत्नी को आर्थिक रूप से बेसहारा छोड़ देता है, तो भारत का कानून पत्नी को पूर्ण संरक्षण प्रदान करता है।
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने विभिन्न निर्णयों में यह स्पष्ट किया है कि “एक महिला को गरिमा और आत्म-सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार है, और यह पति का दायित्व है कि वह उसकी आवश्यकताओं का ध्यान रखे।” (न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा)
हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत पत्नी का अधिकार
धारा 24 – वाद के दौरान अंतरिम खर्च
यदि पत्नी तलाक या वैवाहिक मुकदमे के दौरान खुद को आर्थिक रूप से कमजोर साबित करती है, तो वह पति से मुकदमे की अवधि के लिए खर्च की मांग कर सकती है।
धारा 25 – तलाक के बाद स्थायी भरण-पोषण
तलाक के पश्चात भी यदि पत्नी जीवन निर्वाह के लिए असमर्थ है, तो वह स्थायी खर्च की मांग कर सकती है।
योग्यता की शर्तें:
- विवाह वैध रूप से हुआ हो।
- पत्नी स्वयं कमाने में असमर्थ हो।
- पति की आय का स्रोत हो।
कल्याण दे चोधरी बनाम रीता दे चोधरी (2017)– सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण की राशि पति की मासिक आय का 25% तक हो सकती है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिंता की धारा 144
यह धारा सभी धर्मों की महिलाओं को समान रूप से लागू होती है। चाहे पत्नी तलाकशुदा हो या विवाहित, यदि वह खुद के जीवन निर्वाह में असमर्थ है, तो वह इस धारा के तहत मासिक खर्चे की मांग कर सकती है।
मुख्य बातें:
- पति की नियमित या संभावित आय होनी चाहिए।
- पत्नी की आवश्यकता और पति की आय को ध्यान में रखते हुए कोर्ट राशि तय करता है।
महत्वपूर्ण निर्णय:
- चतुर्भुज बनाम सीता बाई (2008): सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पति तब भी खर्च देने का जिम्मेदार है, जब पत्नी अपने खर्चों के लिए दूसरों पर निर्भर हो।
- हिन्दू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 धारा 18: इस धारा के तहत पत्नी पति से तब तक भरण-पोषण मांग सकती है जब तक वह विवाहिता हो और उसका आचरण अनुचित न हो।
किन परिस्थितियों में भरण-पोषण का दावा कर सकती है?
- यदि पति उसे बिना कारण घर से निकाल दे।
- शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित करे।
- पत्नी को वैवाहिक जीवन में आवश्यक गरिमा न मिले।
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 – धारा 36 और 37
यदि विवाह विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत हुआ है, तो पत्नी को:
- धारा 36 के तहत अंतरिम खर्च
- धारा 37 के तहत तलाक के बाद स्थायी भरण-पोषण का अधिकार प्राप्त होता है।
लिव-इन रिलेशनशिप में महिला का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय:
- चुनमुनिया बनाम वीरेंद्र कुशवाहा (2010) – कोर्ट ने कहा कि यदि कोई महिला लंबे समय तक लिव-इन में रही है और उसका संबंध विवाह जैसा था, तो उसे CrPC धारा 125 अब BNSS 144 के तहत भरण-पोषण का अधिकार प्राप्त होगा।
- इंद्रा शर्मा बनाम वी.के.वी. शर्मा (2013) – कोर्ट ने कहा कि संवेदनशील रिश्तों में महिलाएं असहाय हो सकती हैं, इसलिए उन्हें भी समान सुरक्षा मिलनी चाहिए।
पति पर खर्चा न देने के लिए केस कैसे करें?
आवश्यक दस्तावेज:
- विवाह प्रमाण पत्र
- पति की आय से संबंधित कोई दस्तावेज (जैसे सैलरी स्लिप, बैंक स्टेटमेंट)
- पत्नी की असहायता का प्रमाण (बेरोजगारी, मेडिकल डॉक्यूमेंट)
- अगर पति-पत्नी अलग रह रहे हैं, तो उसका प्रमाण
कोर्ट में प्रक्रिया:
- किसी योग्य फैमिली कोर्ट वकील से परामर्श लें।
- संबंधित पारिवारिक न्यायालय में याचिका दाखिल करें।
- कोर्ट नोटिस जारी करेगा और दोनों पक्षों को सुनवाई में बुलाया जाएगा।
- कोर्ट प्रमाणों के आधार पर मासिक या एकमुश्त भरण-पोषण तय करेगा।
निष्कर्ष
- अगर पति पत्नी को छोड़ देता है या उसका खर्चा नहीं देता है, तो पत्नी कानूनन उसके खिलाफ केस कर सकती है। भारतीय कानून महिलाओं को न केवल सामाजिक बल्कि आर्थिक सम्मान से जीने का अधिकार देता है।
- सुप्रीम कोर्ट और परिवार न्यायालयों के निर्णयों से यह सिद्ध होता है कि महिलाओं के आर्थिक अधिकारों की रक्षा एक संविधानिक और मानवीय दायित्व है।
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FAQs
1. अगर पति बेरोजगार है, तो क्या फिर भी पत्नी खर्च मांग सकती है?
हाँ, यदि पति कमाई करने में सक्षम है या उसके पास संपत्ति है, तो कोर्ट उसे खर्च देने का आदेश दे सकता है।
2. तलाक के बाद क्या पत्नी खर्चा मांग सकती है?
हाँ, हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 25 और CrPC की धारा 125 के तहत तलाकशुदा पत्नी भी खर्च की हकदार है।
3. अगर पत्नी कमाती है, तो क्या उसे खर्च मिलेगा?
यदि पत्नी की आमदनी पति से कम है और वह अपने स्तर का जीवन निर्वाह नहीं कर पा रही है, तो कोर्ट भरण-पोषण दे सकता है।
4. खर्च की राशि कितनी होती है?
यह कोर्ट तय करता है पति की आय, पत्नी की आवश्यकताओं और सामाजिक स्तर के आधार पर।
5. क्या पत्नी को पति की संपत्ति में हिस्सा मिलता है?
केवल भरण-पोषण के लिए कोर्ट पति की संपत्ति को ध्यान में रख सकता है, लेकिन कानूनी रूप से पत्नी का उसमें हिस्सा नहीं होता, जब तक वह उसके नाम पर न हो।