रेप एक जघन्य सेक्सुअल क्राइम है और भारत में अभी भी एक जरूरी मुद्दा है। सबसे पहले जानते है कि भारत की सरकार या कानून की नज़र में रेप को किस प्रकार परिभाषित किया गया है?
रेप की परिभाषा
रेप को कानूनी रूप से इस तरह परिभाषित किया गया है कि अगर कोई पुरुष महिला की मर्जी के बिना जबरदस्ती उसके मुँह में, या उसके प्राइवेट पार्ट्स (गूदे या योनि) में अपने लिंग का प्रवेश करता है, तो उसे रेप माना जाता है।
आईपीसी के सेक्शन 375 के अनुसार किसी भी 18 साल से कम की महिला के साथ इस तरह का कोई भी व्यवहार करना या सेक्सुअल रिलेशन्स बनाना कानूनी रूप से अपराध है।
- पीड़िता की मर्जी के खिलाफ उससे सेक्सुअल रिलेशन्स बनाना।
- उसे नुकसान पहुँचाने या जान से मारने की धमकी देकर रिलेशन्स बनाने के लिए सहमति लेना।
- पीड़िता को झूठा विशवास दिलाना कि आप उसके पति है।
- पीड़िता से पागलपन या नशे की हालत में सहमति लेना
- ऐसी सिचुएशन में पीड़िता से सहमति लेना जब वह उसमे असमर्थ है।
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मेडिकल एग्जामिनेशन की जरूरत
इस तरह के किसी भी सेक्सुअल हैरेसमेंट के केस में रेप की विक्टिम की मेडिकल एग्जामिनेशन की जानी जरूरी होती है। साथ ही, ऐसे सेक्सुअल हैरेसमेंट के केसिस में मेडिकल एग्जामिनेशन करने में सावधानी बरतने की जरूरत है, ताकि कोई गलती ना हो और सभी के साथ न्याय किया जा सके।
सेक्सुअल हैरेसमेंट के केसिस में इन्वेस्टीगेशन करना बेहद जरूरी होता है। आमतौर पर, इस तरह के सेक्सुअल हैरेसमेंट या रेप के केसिस में घावों की तलाशी, गला घोंटने के निशान या जबरदस्ती और धमकी के अन्य लक्षण शामिल होते हैं। प्रेगनेंसी टेस्ट और अन्य सीरोलॉजिकल टेस्ट कराने जरूरी हैं क्योंकि रेप पीड़ित लोगों में इस प्रकार के लक्षण दिखना शुरू हो जाते हैं।
रेप एग्जामिनेशन की प्रोसेस
रेप एग्जामिनेशन की पूरी प्रोसेस के बारे में सीआरपीसी के सेक्शन 53 में बताया गया है। जब किसी व्यक्ति पर रेप करने का आरोप लगाया जाता है तो इस अपराध को साबित करने के लिए और पीड़िता के साथ सही न्याय करने के लिए यह जरूरी है कि अपराध को हर तरह से जांचा जाये और उचित मेडिकल एग्जामिनेशन किया जाये। यह एग्जामिनेशन सरकारी अस्पताल या स्थानीय डॉक्टर्स के द्वारा किया जाना कानूनी रूप से वैध है। इस मेडिकल रिपोर्ट के अंदर यह निम्लिखित बातें शामिल होती है।
- आरोपी और विक्टिम का नाम
- आरोपी और विक्टिम की उम्र
- आरोपी का डीएनए
- डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए व्यक्ति से ली गई डिटेल्स के साथ व्यक्ति पर कोई चोट का निशान, आदि।
सभी सबूतों जैसे कि कपड़े, प्राइवेट पार्ट्स आदि से स्वैब को एक लिफाफे में सुरक्षित रूप से रखकर इन्वेस्टीगेशन ऑफ़िसर को सौंप दिया जाता है। जो आगे इसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश करते है।
पीड़ित की रिपोर्ट एक मेडिकल एग्जामिनर द्वारा तैयार और साईन की जाती है। रिपोर्ट की एक कॉपी पीड़िता को भी उपलब्ध कराई जाती है क्योंकि मेडिकल एग्जामिनेशन के संबंध में सूचना प्राप्त करना पीड़िता का भी अधिकार है।
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