सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा की तरह साल 2021 में भी कुछ ऐतिहासिक फैसले दिए। इन सभी में से एक फैसला ऐसा भी है, जिसे अगर सही तरीके से लागू किया जाये तो उस फैसले के लम्बे समय तक चलने वाले बहुत से सकारात्मक नतीजे देखने को मिलेंगे। 8 फरवरी, 2021 को दिया गया ये फैसला इंटरकास्ट मैरिज से रिलेटेड सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच का है। इस फैसले के तहत पुलिस ऑफिसर को अपने जूनियर पुलिस स्टाफ के लिए गाइडलाइन तैयार करने के लिए निर्देश दिया गया था। साथ ही, समाज के अन्य सुरक्षा सम्बन्धी समस्याओं को कैसे सुलझाया जाये इसके लिए भी निर्देश दिया गया था।
मामले की शुरुवात:-
इस पूरे मामले की शुरुवात कर्नाटक राज्य की एक महिला और उत्तर प्रदेश राज्य के एक पुरुष की प्रेम कहानी से हुई। अपना-अपना करियर बनाते समय उनको एक-दूसरे से प्यार हो गया था। उन दोनों ने अपने परिवार या किसी को भी बताये बिना दिल्ली में एक दूसरे से शादी कर ली। शादी करने के बाद उन दोनों ने उत्तर प्रदेश में अपना वैवाहिक घर बसा लिया। पिता को महिला की शादी की जानकारी नहीं थी जिस वजह से महिला के पिता ने कर्नाटक पुलिस में उसके गुम होने की एफआईआर दर्ज कराई थी। पिता की इस एफआईआर के आधार पर पुलिस अधिकारी ने उस महिला को बयान दर्ज कराने के लिए कर्नाटक बुलाया था।
ताकि जाँच अधिकारी लड़की के बयान होने के बाद केस को बंद कर सकें। लेकिन उस महिला ने कर्नाटक आने से मना कर दिया। ऐसा इसलिए क्योंकि उसके भाग कर शादी करने पर उसे अपने पिता से जान का खतरा महसूस हो रहा था। इसके बाद महिला ने पुलिस को एक पत्र भेजा जिसमें लिखा था कि उसकी शादी उसकी सहमति से हुयी थी और पुलिस से केस को बंद करने का अनुरोध किया। लेकिन पुलिस अधिकारी ने जोर देकर महिला को कर्नाटक बुलाया ताकि वो उस महिला का बयान दर्ज कर सकें। पुलिस ने ये भी कहा की ऐसा ना करने पर महिला के पति के खिलाफ केस दर्ज किया जायेगा। उस महिला को डराया कि उसके पति को गिरफ्तार कर लिया जाएगा, जिसकी वजह से उसके पति की नौकरी भी जा सकती है। पुलिस अधिकारी ने उसे धमकी भी दी थी कि अगर उसने कर्नाटक आकर अपना बयान दर्ज नहीं कराया तो उस महिला पर ये आरोप लगाया जायेगा की उसने अपने माता-पिता के घर से चीजें चुराई है।
इसके बाद, महिला ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की। और सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर को रद्द कर दिया। रद्द इस आधार पर किया कि उस महिला ने पुलिस अधिकारी को यह लिखकर पत्र भेजा था कि उसकी शादी उसकी सहमति से ही हुई है। सहमति से शादी होने का सीधा मतलब है की महिला अपनी मर्जी से घर से आयी है, गुमशुदा नहीं हुई। तो उसके पिता द्वारा दर्ज की गई गुमशुदगी की एफआईआर निष्फल हो गई।
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सुप्रीम कोर्ट का पुलिस के लिए निर्देश:-
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि वो पुलिस कर्मियों के लिए पुलिस अधिकारियों से कुछ गाईडलाइन जारी करने और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की आशा करती है। जिन कार्यकर्मों में सिखाया जाये की पुलिस कर्मियों को इंटरकास्ट मैरेज जैसे समाज के सेंसिटिव मामलों को कैसे सुलझाना है। ये गाईडलाइन और प्रशिक्षण कार्यक्रम सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद आठ हफ्ते के अंदर आयोजित किए जाने थे, यानी 31-03-2021 तक। ये देखने के लिए की सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन किया गया था या नहीं, 24-07-2021 को याचिका कर्ता ने तेलंगाना राज्य के पुलिस डायरेक्टर जनरल के ऑफिस में एक आरटीआई (सूचना का अधिकार) आवेदन दायर किया।
इस आरटीआई की मदद से उनसे जानकारी देने का अनुरोध किया कि क्या सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार तेलंगाना राज्य में गाईडलाइन और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए थे या नहीं। इस बात का आरटीआई द्वारा ये उत्तर मिला की कोई भी गाईडलाइन जारी नहीं की गयी और ना ही कोई प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया था। आरटीआई द्वारा ये उत्तर 27-09-2021 को मिला। हालाँकि आरटीआई आवेदन करने के 30 दिन के अन्दर जवाब आ जाना चाहिए लेकिन जवाब लगभग 60 दिनोंके बाद आया। जो की RTI Act की धारा 7 के हिसाब से गलत है। यकीन से कहा जा सकता है कि अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया होगा।
गाईडलाइन और प्रशिक्षण कार्यक्रम क्यों जरूरी है:-
ये देखने के बाद कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का कितनी आसानी से उल्लंघन किया जा सकता है। यह समझना जरूरी है की इंटरकास्ट मैरेज से संबंधित मामलों को सुलझाने के लिए पुलिस अधिकारियों के ट्रेंड होने की कितनी आवश्यकता है और उसके लिए गाईडलाइन और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना किस हद तक महत्वपूर्ण है।
आमतौर पर, उच्च शिक्षण संस्थानया रोजगार के स्थान पर कपल्स के रिलेशनशिप में आने की संभावना होती है।आने वाले सालों में भारत में बड़ी संख्यां में इंटरकास्ट मैरिज होंगे। इसकी बहुत सी वजह है।
इंटरकास्टमैरिज बढ़ने की मुख्य वजहें:-
(1) उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए बड़ी संख्या में छात्रों छात्राओं का आना,
(2) रोजगार प्राप्त करने की कोशिशों में छात्रों छात्राओं की संख्या में वृद्धि,
(3) शहरीकरण के बढ़ते प्रभाव और
(4) रूढ़िवादी या पुरानी सोंच की बेड़ियों को तोड़ने के लिए युवाओं के झुकाव।
और ऐसे इंटरकास्ट कपल्स के अधिकांश माता-पिता और अभिभावक लव मैरिज या इंटरकास्ट मैरिज का विरोध करते है। आज भी ज्यादातर माता पिता की सोंच पुरानी और रूढ़िवादी हैं। इसलिए, पुरानी सोंच के माता-पिता और मॉडर्न एडल्ट्स की सोंच का टकराव होता ही है। अब इनके बीच इस टकराव के साथ, अगर राज्य ने समय पर इससे सम्बंधित कोई हल नहीं निकाला, तो “ऑनरकिलिंग” की घटनाएं तेजी से बढ़ेंगी।
हालाँकि, भारत में अभी तक “ऑनरकिलिंग”शब्दकीकोई कानूनी परिभाषा नहीं है। लेकिन भारत के लॉ कमीशन ने अपनी 242वीं रिपोर्ट में “वैवाहिक गठबंधनों की आज़ादी के साथ दखलंदाज़ी की रोकथाम एक सुझाया गया कानूनी ढांचा” शीर्षक में कहा कि “ऑनरकिलिंग’और‘ऑनरक्राइम्स’ शब्दों का इस्तेमाल समाज या परिवार के लोगों की इच्छा के खिलाफ शादी करने या शादी करने की इच्छा रखने वाले यंग कपल्स के साथ हुई हिंसा और उत्पीड़न की घटना को बयान करने के रूप में देखा जा सकता है।”
इंटरकास्ट मैरिज केस पर जजों का ये कहना है:-
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने शक्ति वाहिनी v/s भारत संघ, (2018) केस में, ऑनरकिलिंग को रोकने के लिए गाइडलाइन जारी करते हुए कहा है कि “ऑनरकिलिंग व्यक्ति की निजी आज़ादी, पसंद की आज़ादी और अपनी पसंद की संवैधानिक अधिकारों का गला काट देता है” साल 2020 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्डब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार, देश में “ऑनरकिलिंग”केपच्चीस (25) मामले सामने आए हैं। सिर्फ एक साल के अंदर 25 ऑनरकिलिंग के मामले आना, ये आंकड़ा कितना हैरान करता है की हमारे देश में 25 लोगों को सिर्फ अपनी पसंद से शादी करने या शादी करने की इच्छा मात्र रखने पर ही मौत के घाट उतार दिया गया। और ये सिर्फ वो मामले है जो दर्ज हुए है लेकिन इसके अलावा भी बहुत से मामले होंगे जो रोशनी में नहीं आ पाए या जिन्हे किसी और प्रकार की मृत्यु का नाम दे दिया गया। ये कितनी शर्मनाक और दयनीय बात है की भारत में हर एक नागरिक को संविधान द्वारा ये अधिकार है की वो अपनी पसंद से किसी के भी साथ शादी कर सकता है। लेकिन ऑनरकिलिंग के नाम पर उनसे ये अधिकार छीना जा रहा है। अपने सम्मान की रक्षा करने के नाम पर नागरिकों से उनकी पसंद का अधिकार छीन लिए जाते है।
इसके अलावा, शफीन जहान v/s अशोकनके.एम., (2018) केस में, जज डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अपनी जजमेंट के पैराग्राफ 86 में कहा कि: “अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का एक जरूरी हिस्सा है। संविधान अपनी पसंद से शादी करने के बाद जीवन के अधिकार की गारंटी देता है।…संविधान मौलिक अधिकार के रूप में स्वतंत्रता की गारंटी देता है।…किसी भी नागरिक की पसंद को निश्चित करने में समाज की भागीदारी आवश्यकता नहीं है। किसी व्यक्ति के जीवन के लिए क्या महतवपूर्ण है यह फैसला लेने के लिए पूरी तरह से आज़ाद है।
इंटरकास्ट मैरिज कपल्स को प्रोत्साहन:-
हालांकि, कई राज्यों की सरकार इंटरकास्ट मैरिज कपल्स को प्रोत्साहन के रूप में पैसे देती है। जिससे इंटरकास्ट मैरिज कपल्स के लिए उनका बढ़ावा और सपोर्ट दिख रहा है। लेकिन असली सपोर्ट तब महसूस होगा, जब इन कपल्स को उनके जीवन और पर्सनल आज़ादी की सुरक्षा की गारंटी देने के साथ आवश्यकता होने पर पुलिस सुरक्षा भी दी जाएगी। जब उनके सिर पर लटकी हुई शर्मिंदगी और हत्या की तलवार के बिना कपल सम्मान से समाज में रह पाएंगे। पुलिस किसी भी राज्य की वह शाखा है, जिसके द्वारा समाज में कानून-व्यवस्था बनी रहती है। इसलिए ये जरूरी है कि कुछ गाइडलाइन तैयार किए जाएं और उन्हें सिखाया जाये की किस तरह का व्यवहार होना चाहिए जब एक कपल को अपनी पसंद का साथी चुनने के संवैधानिक रूप से गारंटी के अधिकार की रक्षा करनी हो। इस बात के लिए जागरूकता फैलाना बहुत जरुरी है की अगर कोई अपने पसंद से शादी करना चाहता है, तो ये उनका कानूनी अधिकार है इसे भंग ना किया जाये।