वर्किंग वाइफ क्या डाइवोर्स के बाद मेंटेनेंस पाने की हकदार है?

वर्किंग वाइफ क्या डाइवोर्स के बाद मेंटेनेंस पाने की हकदार है?

वर्किंग या नॉन वर्किंग वाइफ अपने हस्बैंड से मेंटेनेंस पाने की हकदार हैं, बशर्ते यह सभी जरूरतें पूरी होनी चाहिए।

भारत के कानून के अनुसार एक वाइफ जो खुद का भरण पोषण करने में असमर्थ है, वह डाइवोर्स के बाद अपने हस्बैंड से मेंटेनेंस पाने की हकदार है। हालांकि, कामकाजी महिलाओं के केस में ऐसा नहीं है, और आगे हम इस बारे में चर्चा की गयी है कि वर्किंग विमेंस के गुजारा भत्ता पाने के अधिकार को प्रभावित करने वाले फैक्टर्स क्या है।

डाइवोर्स के बाद मेंटेनेंस और एलीमनी के लेन-देन के बारे में सभी जानते हैं, जहां एक पार्टनर जो खुद के भरण पोषण में असमर्थ है, वह हर महीने या एक बार एक फिक्स अमाउंट दूसरे पार्टनर से प्राप्त करने का हकदार है। मेंटेनेंस या एलीमनी के आर्डर पर इसका भुगतान करना एक कानूनी दायित्व है।

पहले महिलाओं को शादी के बाद पैसे कमाने की परमिशन नहीं होती थी और जब किसी कपल का डाइवोर्स होता है, तो वाइफ बेसहारा रह जाती है और अपना खर्च उठाने में असमर्थ हो जाती है। इसके अलावा भी वह डाइवोर्स के बाद बहुत कठिनाइयों से गुजरते हैं। इसलिए, कानून ने डाइवोर्स के बाद वाइफ को गुजारा भत्ता देने का प्रावधान किया है। अब महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ, शादी के बाद काम करने वाली महिलाओं की संख्यां भी बढ़ी है। देखा जाये तो अब एक कामकाजी महिला को आर्थिक रूप से स्वतंत्र माना जा सकता हैं। हालाँकि, परिस्थितियाँ हर बार एक जैसी नहीं होती हैं। कई बार वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त कमाई नहीं कर पाती हैं। यह महिलाएं आंशिक रूप से अपने हस्बैंड पर डिपेंड हैं।

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वर्किंग विमेंस को मेंटेनेंस: 

डाइवोर्स के बाद वर्किंग विमेंस मेंटेनेंस लेने की हकदार है या नहीं, इस सवाल का सीधा जवाब है हाँ, एक कामकाजी वाइफ अपने हस्बैंड से मेंटेनेंस पाने की हकदार है। समय के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से बदलते आयामों के साथ और कामकाजी महिलाओं के विकास को ध्यान में रखते हुए, कई प्रावधानों में बदलाव किया गए है। जो एक कामकाजी वाइफ को भी मेंटेनेंस लेने की सुविधा प्रदान करते हैं।

जो महिलाएं काम और कमाई के बाद भी अपना खर्च उठाने और अपनी जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं, वे अपने हस्बैंड से मेंटेनेंस लेने का दावा कर सकती हैं। हालाँकि, कोर्ट मेंटेनेंस का आर्डर देने से पहले केस पर विचार कृत्य है। 

आईपीसी के सेक्शन 125 में अगर वाइफ अपने भरण पोषण में असमर्थ है तो हस्बैंड द्वारा वाइफ को मेंटेनेंस देने का प्रावधान है। हालाँकि, अगर वाइफ वर्किंग है और कमा रही है, तब भी वह डाइवोर्स के बाद मेंटेनेंस मांग सकती है। ऐसे केस को सॉल्व करने के लिए आप लीड इंडिया में सर्वश्रेष्ठ डाइवोर्स और मेंटेनेंस लॉयर प्राप्त कर सकते हैं। उनकी स्पेशल एडवाइस और मार्गदर्शन से, आप अपने केस को जीतने के और करीब आ सकते है।

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मेंटेनेंस किन आधारों पर कैलकुलेट करते है:

डाइवोर्स के बाद कोर्ट इन सभी आधारों को ध्यान में रखते हुए ही मेंटेनेंस या एलिमनी का आर्डर करती है। 

  1. हस्बैंड-वाइफ की बिना टैक्स के टोटल इनकम कितनी है।
  2. दोनों हस्बैंड-वाइफ कितने पढ़े लिखे है।
  3. कपल शादी को कितने साल हुए है।
  4. बच्चों की संख्या और चाइल्ड कस्टडी।
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न्यायपालिका का रोल:

अब देखते है कि कामकाजी वाइफ को मेंटेनेंस के भुगतान के संबंध में न्यायपालिका ने कैसे निर्णय लिए हैं।

कल्याण डे चौधरी बनाम रीता डे चौधरी केस में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर महीने मेंटेनेंस देने के केस में मेंटेनेंस का अमाउंट हस्बैंड की इनकम के 25% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इस केस में वाइफ एक ब्यूटीशियन और टीचर भी थी, जो 30,000 रूपये हर महीने कमा रही थी।

इसी तरह, निधि v/s श्री निशांत दुबे केस में, वाइफ एक फिजियोथेरेपिस्ट थी, जो एक क्लिनिक चलाती थी और उनके हस्बैंड एक सेल्स मैनेजर थे। कोर्ट ने 10 लाख रुपये मेंटेनेंस देते हुए वाइफ के पक्ष में आदेश दिया।

निष्कर्ष:

भारत में अब मेंटेंनेस और एलिमनी के कानूनों में कई बदलाव आये है। साथ ही, अब एक कामकाजी महिला भी डाइवोर्स के बाद समाज में अपनी रहने की स्थिति और लाइफस्टाइल के लिए मेंटेनेंस की हकदार है। सबसे जरूरी बात यह है कि मेंटेनेंस देते समय महिला की कमाई के बाद भी खुद  जरूरतों को पूरा करने की क्षमता को ध्यान में रखा जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कई केस में माना है कि वर्किंग वाइफ अपनी कमाई होने के बावजूद मेंटेनेंस का दावा कर सकती है अगर उसकी इनकम उसकी जरूरतों को पूरा नहीं करती है। 

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