क्या आर्य समाज मंदिर ‘स्पेशल मैरिज एक्ट’ से जुड़ा है?

क्या आर्य समाज मंदिर 'स्पेशल मैरिज एक्ट' से जुड़े है, जबकि शादी से जुड़े सभी फैसले सुप्रीम कोर्ट करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में 4 अप्रैल 2022 को एक आर्य समाज संगठन के विचार को स्वीकार कर लिया। विचार यह था कि आर्य समाज परंपरा के तहत होने वाली किसी भी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत रजिस्टर कराने की जरूरत नहीं है।

आर्य समाज की शादियां हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के कुछ प्रावधानों के साथ आर्य समाज मैरिज वेलिडेशन एक्ट 1937 के तहत आयोजित की जाती हैं। हाई कोर्ट ने संगठन को स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों का पालन करने को कहा, जबकि शादी के फैसले को एक गलती माना गया था।

2020 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक आदेश ने, ‘मध्य भारत आर्य प्रतिनिधि सभा’ को निर्देश दिया। यह एक आर्य समाज संगठन है, जो स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के प्रावधानों का पालन करते हुए शादी कराता है। सुप्रीम कोर्ट ने ‘मध्य भारत आर्य प्रतिनिधि सभा’ द्वारा फाइल की गयी पिटीशन पर सुनवाई करते हुए, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसने संगठन को अपने दिशानिर्देशों में बदलाव करने और स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों का पालन करने का निर्देश दिया था।

हाई कोर्ट ने कब आर्डर दिया कि आर्य समाज में हुई शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों का पालन करना चाहिए?

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने जिस बारे में आर्डर पास किया था, उसी बारे में 2019 में एक कपल ने, स्टेट के आर्य समाज मंदिर में अपनी शादी के लिए सुरक्षा की मांग करने वाली पिटीशन फाइल की थी। यह मंदिर आर्य मूल शंकर समाज द्वारा चलाया जाता था। साथ ही, हाई कोर्ट ने स्पेशल मैरिज एक्ट को आर्य समाज द्वारा की जाने वाली सभी शादियों पर लागू करने का फैसला दिया था। दरअसल,  हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

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पिटीशनर ने क्या तर्क दिए थे? 

मध्य भारत आर्य प्रतिनिधि सभा की तरफ से उपस्थित दो सीनियर एडवोकेट्स ने यह तर्क दिया कि हाई कोर्ट ने स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों का पालन करने के लिए संगठन को आर्डर देने में गलती की है। आर्य समाज के मंदिरों में शादी कराते समय संगठन को स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों का पालन करने का निर्देश देकर जुडिशरी के अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करके हाई कोर्ट ने गलत किया था। 

पिटीशनर मध्य भारत आर्य प्रतिनिधि सभा ने दावा किया कि आर्य समाज के मंदिरों में की जाने वाली आर्य समाज शादियां ‘आर्य समाज विवाह सत्यापन अधिनियम 1937’ के साथ-साथ ‘हिंदू विवाह अधिनियम 1955’ द्वारा रजिस्टर होने चाहिए। हाई कोर्ट को यह मानने का कोई अधिकार नहीं है कि आर्य समाज में शादियां मंदिर स्पेशल मैरिज एक्ट द्वारा रजिस्टर होगा।

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पिटीशनर की तरफ से पेश हुए एडवोकेट श्याम दीवान ने तर्क दिया कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट इसी तरह के एक आदेश का नोटिस लेने में विफल रहा, जिस पर पहले उसी हाई कोर्ट के एक अन्य सेक्शन द्वारा 2021 में रोक लगाई गई थी, जिसने आर्य समाज के तहत होने वाली शादियों पर स्पेशल मैरिज एक्ट लागू करने का निर्देश दिया।

इसके अलावा, यह भी कहा कि धर्म के केस में हाई कोर्ट द्वारा हस्तक्षेप और स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों का पालन करने का निर्देश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत आर्य समाज समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

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स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधान का पालन करने के फैसले का क्या प्रभाव पड़ा?

पिटीशनर, मध्य भारत आर्य प्रतिनिधि सभा, स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों का पालन करने के लिए पिछले साल लिए गए हाई कोर्ट के फैसले से चिंतित थी। शादी के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट का तरीका पूरी तरह से अलग है, जिसके लिए शादी की सूचना, नोटिस का प्रकाशित होना, मैरिज रजिस्टर, और शादी के संबंध में आपत्ति के साथ-साथ सक्षम प्राधिकारी द्वारा मैरिज सर्टिफिकेट जारी जारी किया जाना जरूरी है।

आर्य समाज के तहत होने वाली शादियों के स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों का पालन करने के लिए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट के रोक को बरकरार रखा जाना चाहिए। हाई कोर्ट के फैसले पर इस रोक ने आर्य समाज के तहत मैरिज सर्टिफिकेट जारी करने से रोक दिया और आगे स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 की प्रोसेस के साथ पुष्टि करने का निर्देश दिया।

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