क्या शादी के बाद पुलिस से सुरक्षा की मांग करना उचित है?

Is it appropriate to ask for police protection after marriage

भारत में शादी एक महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थान है, जो न केवल दो व्यक्तियों को जोड़ता है, बल्कि परिवार और समाज के दायित्वों और परंपराओं को भी दर्शाता है। हालांकि, सभी विवाह सुखद और शांतिपूर्ण नहीं होते। कुछ विवाहों में घरेलू हिंसा, शारीरिक उत्पीड़न, मानसिक दबाव, या अन्य प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जब एक व्यक्ति इस तरह की स्थिति में होता है, तो उसकी सुरक्षा के लिए पुलिस का सहयोग जरूरी हो सकता है।

क्या यह सही है कि कोई शादी के बाद पुलिस से सुरक्षा की मांग करे? यह सवाल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इस ब्लॉग में हम इस विषय को विस्तार से समझेंगे।

शादी के बाद पुलिस सुरक्षा की आवश्यकता क्यों हो सकती है?

शादी के बाद सुरक्षा की आवश्यकता तब उत्पन्न होती है जब:

  • घरेलू हिंसा या उत्पीड़न: अगर पत्नी या पति को मानसिक, शारीरिक, या भावनात्मक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, तो यह सुरक्षा की आवश्यकता उत्पन्न कर सकता है। घरेलू हिंसा का शिकार होने पर व्यक्ति को पुलिस से मदद मिल सकती है।
  • जान का खतरा: यदि किसी को शादी के बाद अपने जीवन को खतरे में महसूस होता है, तो पुलिस सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। यह स्थिति विशेष रूप से तब होती है जब पति या ससुराल वाले जान से मारने की धमकी देते हैं।
  • सामाजिक दबाव: कभी-कभी शादी के बाद परिवार या समाज से दबाव बनाने के कारण व्यक्ति को मानसिक तनाव और शारीरिक चोटों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में पुलिस से मदद लेना उचित हो सकता है।
  • पारिवारिक संघर्ष: यदि पति और पत्नी के बीच आपसी मतभेद बढ़ जाएं और स्थिति नियंत्रित करने से बाहर हो जाए, तो पुलिस को सूचित करना सुरक्षा प्रदान करने का एक तरीका हो सकता है।

भारतीय कानून में सुरक्षा का प्रावधान क्या है?

भारतीय कानून में महिलाओं और पुरुषों की सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रावधान हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कानून निम्नलिखित हैं:

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005

यह अधिनियम महिलाओं को उनके पति, ससुराल वालों या अन्य परिवारिक सदस्य से होने वाली शारीरिक, मानसिक, या भावनात्मक हिंसा से सुरक्षा प्रदान करता है। इस अधिनियम के तहत महिला को किसी भी प्रकार की हिंसा से बचाने के लिए पुलिस और न्यायिक प्रणाली द्वारा तुरंत कार्रवाई की जा सकती है।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 85

यह धारा पति और ससुरालियों द्वारा की गई क्रूरता या उत्पीड़न के मामलों में लागू होती है। इसमें शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न से संबंधित अपराधों का विवरण दिया गया है, और इसके तहत गिरफ्तारी और सुरक्षा की व्यवस्था की जाती है।

महिला सुरक्षा अधिनियम, 2016

इस अधिनियम में महिलाओं को विवाह के बाद उत्पीड़न या अन्य किसी प्रकार के मानसिक या शारीरिक तनाव से सुरक्षा देने के लिए प्रावधान किए गए हैं।

समान अवसर अधिनियम

यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि महिला या पुरुष को उनके विवाह संबंधी उत्पीड़न से बचाया जाए और यदि किसी को यह खतरा हो तो पुलिस मदद प्रदान करें।

शादी के बाद पुलिस सुरक्षा मांगने के कानूनी अधिकार क्या है?

किसी व्यक्ति को शादी के बाद पुलिस से सुरक्षा की मांग करने का कानूनी अधिकार तब उत्पन्न होता है जब वह या तो शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक उत्पीड़न का शिकार हो रहा हो। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है, जिसमें उसे अपनी सुरक्षा और सम्मान की गारंटी मिलती है। यदि कोई व्यक्ति शादी के बाद खतरनाक स्थिति में है, तो उसे इस अधिकार के तहत पुलिस से मदद प्राप्त करने का हक है।

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इसके अतिरिक्त, भारतीय न्याय संहिता की धारा 85, 115(2), 64 जैसे प्रावधानों के तहत शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न से पीड़ित व्यक्ति सुरक्षा की मांग कर सकता है। इन धाराओं के तहत पुलिस को उत्पीड़न के आरोपों की जांच करने और व्यक्ति को सुरक्षित करने की जिम्मेदारी दी गई है।

पुलिस सुरक्षा की प्रक्रिया क्या है?

  • शिकायत दर्ज करना: सबसे पहले व्यक्ति को नजदीकी पुलिस स्टेशन में अपनी सुरक्षा की मांग करने के लिए शिकायत दर्ज करनी होती है। यह शिकायत लिखित या मौखिक हो सकती है, और इसमें उत्पीड़न या खतरे के बारे में विस्तृत जानकारी देना जरूरी होता है।
  • सुरक्षा प्रदान करना: पुलिस मामले की गंभीरता के आधार पर सुरक्षा प्रदान कर सकती है। यह सुरक्षा घरेलू स्थान पर हो सकती है, या फिर व्यक्ति को अस्थायी शेल्टर होम में भेजा जा सकता है।
  • कानूनी सहायता: पुलिस द्वारा शिकायत की जांच की जाती है और यदि आवश्यक हो तो आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। इसके साथ ही, कानूनी सलाह भी दी जाती है, जिससे पीड़ित व्यक्ति को अपनी स्थिति से निपटने में मदद मिल सके। 
  • महिला हेल्पलाइन और समर्पित इकाई: कई राज्य पुलिस विभाग महिला हेल्पलाइन और महिला सुरक्षा इकाइयों के माध्यम से महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करते हैं। इन इकाइयों के द्वारा त्वरित सहायता और कानूनी कदम उठाए जाते हैं।

क्या पुलिस सुरक्षा मांगने का फैसला उचित है?

शादी के बाद पुलिस से सुरक्षा मांगने का निर्णय बहुत व्यक्तिगत होता है। यह उस स्थिति पर निर्भर करता है जिसमें व्यक्ति खुद को महसूस कर रहा होता है। यदि व्यक्ति किसी भी प्रकार के उत्पीड़न या हिंसा का शिकार हो रहा है, तो पुलिस सुरक्षा मांगना न केवल कानूनी रूप से उचित है, बल्कि यह व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा भी करता है।

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हालांकि, यह भी समझना जरूरी है कि पुलिस सुरक्षा केवल एक अस्थायी उपाय है। इससे दीर्घकालिक समाधान नहीं मिलता। ऐसे मामलों में कानूनी प्रक्रिया के तहत उत्पीड़न या हिंसा के आरोपों की सुनवाई और उसके बाद न्यायिक निर्णय आवश्यक होता है।

निष्कर्ष

शादी के बाद यदि कोई व्यक्ति पुलिस से सुरक्षा की मांग करता है, तो यह एक कानूनी अधिकार है, बशर्ते कि वह किसी प्रकार के उत्पीड़न, हिंसा, या मानसिक तनाव का शिकार हो। भारतीय कानून महिलाओं और पुरुषों दोनों को अपनी सुरक्षा की पूरी गारंटी देता है, और पुलिस को इस सुरक्षा को सुनिश्चित करने का कार्य सौंपता है। हालांकि, सुरक्षा की मांग करना केवल एक अस्थायी उपाय है, और दीर्घकालिक समाधान के लिए कानूनी प्रक्रिया और न्यायिक निर्णय की आवश्यकता होती है। शादी के बाद पुलिस सुरक्षा की मांग करना तब सबसे उचित होता है जब व्यक्ति को गंभीर खतरे का सामना हो, और इसे कानून के तहत एक वैध विकल्प माना जाता है।

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