एक प्रेग्नेंट महिला कोमल, जिसके गर्भ में जुड़वा बच्चे पल रहे है उसे कोर्ट द्वारा कुछ राहत देते हुए दो में से एक बच्चे को ख़त्म करने के लिए फाइल की गयी पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट ने सर जेजे ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के डीन द्वारा बनाये गए मेडिकल बोर्ड में एक और सदस्य जोड़ने का निर्देश दिया, जो एक योग्य और सक्षम भ्रूण विशेषज्ञ हो।
साथ ही कोई भी सुनवाई करने से पहले कोर्ट चाहती थी की वे उस विशेषज्ञ की रिपोर्ट्स का निरिक्षण करें। और यह जांच करे की बच्चे या माँ पर इसका कोई बुरा प्रभाव तो नहीं पड़ेगा। इसीलिए कोर्ट ने निर्देश दिया की विशेषज्ञ द्वारा एक रिपोर्ट बनाकर कोर्ट में सबमिट की जाये और स्पष्ट रूप से बताया जाये कि क्या एक भ्रूण या गर्भ के बच्चे का गर्भपात दूसरे भ्रूण के जीवन और मां के जीवन को प्रभावित करेगा या नहीं।
जज आर बानुमति, जज इंदु मल्होत्रा और जज अनिरुद्ध बोस की एक बेंच ने 33 साल की कोमल हिवाले द्वारा फाइल की गयी स्पेशल छुट्टियों की पिटीशन पर सुनवाई की थी। जिन्होंने मुंबई हाई कोर्ट की एक बेंच द्वारा पास किये गए आर्डर को चुनौती दी है। उस आर्डर में कोमल की पिटीशन को ख़ारिज कर दिया था और मेडिकल बोर्ड की राय पर भरोसा कर लिया गया था।
पिटीशनर की तरफ से वकील कॉलिन गोंजाल्विस पेश हुए थे और बेंच को बताया गया कि पिटीशनर पहले से ही 22 हफ्ते से प्रेग्नेंट है, जबकि हाई कोर्ट का आर्डर पास हुए भी 2 हफ्ते बीत चुके थे।
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बेंच की टिप्पणियां
इस केस में बेंच का मानना था कि अगर बोर्ड का विचार है कि जुड़वाँ बच्चों में से एक बच्चे का गर्भपात या एबॉर्शन सुरक्षित रूप से और माँ या दूसरे जीवित भ्रूण या बच्चे को चोट पहुंचाए बिना किया जा सकता है, तो बोर्ड की भी यही एडवाइस है कि इस अवधि के दौरान एक बच्चे के एबॉर्शन की अनुमति दे दी जाये और मां और बचे हुए दूसरे बच्चे को सुरक्षित रखा जाये।
इसके अलावा, केस की तात्कालिकता या urgency को देखते हुए, बेंच ने मेडिकल बोर्ड को पिटीशनर की जल्द से जल्द जांच करके रिपोर्ट को जल्दी ही ईमेल करने के लिए कहा।
केस के फैक्ट्स
इस एबॉर्शन की जरूरत इसीलिए पड़ी क्योंकि कोमल के टेस्ट कराने पर पाया गया कि बच्चे को डाउन सिंड्रोम है और कुछ दिन बाद दूसरी रिपोर्ट से पाया गया की गर्भ में 1 नहीं बल्कि 2 जुड़वाँ बच्चे है। कोमल को डॉक्टर्स द्वारा बतया गया कि डाउन सिंड्रोम खतरनाक है। यह सिंड्रोम भ्रूण की शारीरिक और मानसिक विकलांगता को दर्शाता है।
इसीलिए कोमल अपने अपंग भ्रूण का एबॉर्शन करा कर अपने दूसरे स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के लिए इच्छुक थी। इसी इच्छा को कोमल ने हाई कोर्ट के सामने पिटीशन फाइल करके व्यक्त किया, क्योंकि वो 21 हफ्तों से ज्यादा से प्रेग्नेंट हो चुकी थी।
मेडिकल बोर्ड द्वारा दी गयी रिपोर्ट में इस एबॉर्शन के लिए मना कर दिया गया।
सभी जांच के बाद प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञ की राय थी कि अगर रोगी बच्चे का एबॉर्शन किया गया तो दूसरे बच्चे पर भी प्रभाव पड़ने का जोखिम है। साथ ही, रोगी की जगह स्वस्थ बच्चे का एबॉर्शन होने का भी जोखिम है। ऐसा इसीलिए क्योंकि दोनों बच्चों में पहचान कर पाना मुश्किल है। इस एबॉर्शन के प्रोसेस से दोनों बच्चों और माँ की जान को भी खतरा है। दूसरे बच्चे का विकास भी रुक सकता है। इसीलिए इस एबॉर्शन के लिए इज़ाज़त देने से मना कर दिया गया।
पिटीशन को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने पिटीशनर कोमल को यह सलाह दी कि वो दूसरे बच्चे को खोने का जोखिम ना उठाये बल्कि डाउन सिंड्रोम से रोगी बच्चे की अच्छे से देखभाल करे और दर्द उठाने की कोशिश करे। साथ ही खुद के शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य और जान को खतरे में ना डाले।
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