पति पत्नी के बीच यदि किसी बात को लेकर अनबन की स्थिति होती है यही अनबन कभी कभी तलाक का भी कारण बन जाती है। ऐसी स्थिति में मामला न्यायालय तक भी चला जाता है और मामला लंबित भी हो जाता है। ऐसे में कई बार पति पत्नी द्वारा केस के दौरान ही दूसरी शादी के बारे में सोचा जाता है। मगर क्या ऐसा सच में सम्भव है?
आज के इस आलेख में हम ये बात समझने का प्रयास करेंगे कि क्या डायवोर्स केस के दौरान दूसरी शादी करना सम्भव है? साथ ही इस से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातों पर भी प्रकाश डालेंगे।
आइये जानते हैं कि क्या डायवोर्स केस के दौरान दूसरी शादी करना सम्भव है? मगर इस से पहले हमें समझना होगा कि तलाक लेने के कितने तरीके हैं और हर तरीका एक दूसरे से अलग भी है। भारत में तलाक हिन्दू मैरिज एक्ट एवं विशेष विवाह अधिनियम के तहत दिया जाता है। जिसमें तीन तरह के तलाक के बारे में बताया गया है।
तलाक लिए जाने के तीन प्रकार हैं
- आपसी सहमति से तलाक
- काँटेस्टेड तलाक
- एक तरफा तलाक
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अब गौर कर के वाली बात ये है कि इन तीनों ही तरीकों से लिये जाने वाले तलाक के केस के दौरान दूसरी शादी करना सम्भव नहीं होता है। यानि कि डायवोर्स केस के दौरान दूसरी शादी करना सम्भव नहीं है। आपसी सहमति से तलाक लिए जाने पर न्यायालय द्वारा डिक्री मिलने के बाद ही विवाह सम्भव होता है वहीं कॉंटेस्टेड तलाक लिए जाने पर डिक्री मिलने के 90 दिन की अवधि के बाद ही दूसरी शादी की जा सकती है। एक तरफा तलाक की स्थिति में यह अवधि 6 महीनों की होती है।
यहाँ हमें एक और बात पर ध्यान देना होगा कि फैमिली कोर्ट से तलाक की डिक्री मिलने के पश्चात यदि कोई भी पार्टनर कोर्ट के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देता है तो ऐसी स्थिति में भी दूसरी शादी नहीं की जा सकती है क्योंकि इस स्थिति में भी मामले को लंबित ही माना जाएगा।
यानि कि भले ही तीन तलाकों के प्रकार में से किसी भी प्रकार से तलाक लिया गया हो विधि द्वारा इस बात की मान्यता नहीं है कि डायवोर्स केस के दौरान दूसरी शादी की जा सके। हालांकि आपसी सहमति से लिये गए तलाक में डिक्री मिलने के बाद अपील नहीं की जा सकती है ऐसी स्थिति में दूसरी शादी डायवोर्स के तुरंत बाद संभव है मगर डायवोर्स के दौरान शादी नहीं हो सकती।
हमें यह समझना होगा कि डायवोर्स केस के दौरान शादी कब तक नहीं की जा सकती है। फैमिली कोर्ट से तलाक की डिक्री प्राप्त करने के पश्चात न्यायालय के निर्णय से संतुष्ट न होने की स्थिति में किसी भी पक्षकार द्वारा उच्च न्यायालय में अर्जी दाख़िल की जाती है। अपील स्वीकार होने की स्थित में मामले को लंबित समझा जाता है और इस दौरान कोई भी पक्षकार दूसरी शादी करने के योग्य नहीं होता है। यदि मामले के लंबित रहते हुए शादी की जाती है तो ऐसे विवाह को न्यायालय द्वारा शून्य घोषित कर दिया जाता है।
हालांकि एक तरीके से मामला लंबित रहते हुए भी दूसरा विवाह किया जा सकता है। मगर एक तरह से देखा जाए तो यह भी केस ख़त्म होने के बाद ही है। इस तरीके में यदि दोनों पक्षकार एक राजीनामा न्यायालय में प्रस्तुत कर दें तो उस के बाद उच्च न्यायालय मामले को खत्म मानकर केस बंद कर देता है जिसके बाद तुरंत शादी की जा सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि राजीनामा की अर्जी देने के बाद दूसरी शादी की जा सकती है। राज़ीनामा का अर्थ यह भी है कि आपने पेंडिंग अपील को वापस ले लिया है।
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