इस्लाम में विवाह को निकाह के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में विवाह को संस्कार माना जाता है लेकिन इस्लाम में ऐसा नहीं होता है। इस्लाम के अनुसार निकाह दूल्हा और दुल्हन के बीच किया जाने वाला एक कॉन्ट्रैक्ट होता है। इस निकाह में दूल्हा और दुल्हन के बीच कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत किए जाते हैं। जिस कॉन्ट्रैक्ट पर यह हस्ताक्षर होते हैं उसे निकाहनामा कहा जाता है।
आज अपने इस ब्लॉक पोस्ट में हम निकाह नामे के बारे में जानेंगे।
निकाहनामा
जैसा कि आर्टिकल में पहले ही बताया गया है निकाहनामा, इस्लाम में शादी का क़ानूनी अनुबंध यानी कॉन्ट्रैक्ट है। यहअनुबंध वधू और वधुवर के बीच शरिया के अनुसार होता है। इसे उर्दू में निकाहनामा कहते हैं। निकाहनामा, दो शब्दों से मिलकर बना है: निकाह (बुध) और नामा (पत्र)।
निकाहनामा, मुस्लिम विवाह का सबूत होता है। इसमें निम्नलिखित बातें मेंशन की गई होती हैं:
- दूल्हा और दुल्हन की तस्वीरें
- निकाह पढ़ाने वाले काज़ी की मुहर
- लड़की की मेहर की रकम
- दूल्हा और दुल्हन के हस्ताक्षर
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निकाहनामा का कैसा होता है
- पहले सिर्फ़ उर्दू में होता था, अब उर्दू के साथ-साथ हिन्दी और अंग्रेज़ी भी शामिल है
- निकाह के दौरान दूल्हा और दुल्हन तीन से चार लोगों की मौजूदगी में शादी को अपनाते हुए ‘कुबूल है’ कहते हैं।
भारत और कुछ मुस्लिम देशों में निकाहनामा, निकाह या मुस्लिम विवाह का पर्याप्त सबूत है। हालांकि, कुछ देशों में आप्रवासन या पति-पत्नी वीज़ा के लिए उचित मुस्लिम विवाह प्रमाण पत्र उस ज़िले के विवाह रजिस्ट्रार द्वारा जारी किया जाता है जहां विवाह हुआ था।
मेहर क्या होती है
इस्लाम में, मेहर वह धनराशि है जो विवाह के समय वर या वर का पिता, कन्या को देता है। मेहर को वधू का मूल्य भी माना जाता है। मेहर शब्द का अर्थ होता है उपहार, स्त्रीधन या दहेज।
मेहर के बारे में कुछ और बातें
- मेहर के रूप में धनराशि, कोई भूमि, कोई मकान अनाज, वस्तु आदि दिया जा सकता है।
- मेहर का भुगतान इस्लामिक परंपरा में शादी के समय किया जाता है।
- मेहर का भुगतान तत्काल या विलम्बित दो तरह का होता है।
- तत्काल देय मेहर का भुगतान विवाह के समय ही होता है।
- विलम्बित मेहर में विवाह विच्छेद के समय देय नगद किया जाता है।
- मेहर का भुगतान किश्तों में भी किया जा सकता है।
- पति द्वारा पत्नी को मेहर देना सम्मान के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
इस्लाम में विवाह की शर्तें क्या होती हैं?
इस्लाम में विवाह की ज़रूरी शर्तें और विवरण निम्नलिखित रूप से शामिल होते हैं।
- सुन्नी कानून के मुताबिक, प्रस्ताव और कबूलनामे के वक्त दो पुरुष या एक पुरुष और दो महिला गवाहों की मौजूदगी ज़रूरी है। गवाह मानसिक रूप से स्वस्थ, वयस्क और मुस्लिम होने चाहिए।
- शिया विधि में बगैर साक्ष्य के भी विवाह को वैध माना जाता है।
- इस्लाम में अपने सास या ससुर से भी शादी की इजाज़त नहीं है और न ही बहू या दामाद से।
- इस्लाम में सगे भाई बहन के साथ भी विवाह वर्जित है।
निकाह में, दूल्हे या उसके वकील या अभिभावक के हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान होता है।
निकाह में, ‘मेहर’ दिया जाना भी ज़रूरी होता है। ‘मेहर’ के बिना विवाह को पूरा नहीं माना जाता।
निकाह में, शरिया के तहत दूल्हे और दुल्हन या विवाह की कार्यवाही में शामिल अन्य पक्षों के अधिकारों और ज़िम्मेदारियों की रूपरेखा तैयार की जाती है।
मुस्लिम मैरिज लॉ के अनुसार, एक पुरुष की 4 पत्नियाँ हो सकती हैं, लेकिन एक महिला एक समय में केवल एक ही पति रख सकती है।
अगर कोई महिला दूसरा विवाह करना चाहे तो उसे अपने पति से तलाक लेनी पड़ेगी। लेकिन वहीं दूसरी ओर अगर पुरुष चार विवाह बिना पत्नी को तलाक दिए कर सकता है।
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