शादी से जुड़े मामले बहुत नाज़ुक, मानवीय और भावनात्मक होते हैं। अपने जीवनसाथी या लाइफ पार्टनर के साथ पूरी ज़िंदगी सही तरीके से समायोजन बनाने के लिए विश्वास, सम्मान, और प्यार की ख़ास जरूरत पड़ती है। कोई भी रिश्ता जिसे हम जीवन भर अपने साथ रखना चाहते है वह रिश्ता प्यार और सम्मान की विशेष तौर पर मांग करता है। साथ ही, इस रिश्ते को सामाजिक मानदंडों के अनुरूप भी होना चाहिए।
क्रूरता तलाक का आधार है?
आम भाषा में तलाक का मतलब कानून की मदद से एक शादी का टूटना होता है। जब एक कपल पति-पत्नी की तरह एक रिश्ते में नहीं रहना चाहते है और वैवाहिक कर्तव्यों से मुक्त होना चाहते है तब वह डाइवोर्स लेने के लिए पिटीशन फाइल कर सकते है।
यह तलाक लेने के लिए कपल को पिटीशन फाइल करनी होती है, जिसमे उन्हें डाइवोर्स लेने का आधार स्पष्ट करना जरूरी होता है।
हाँ, भारत में हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत क्रूरता तलाक लेने का एक आधार है। अगर एक पत्नी या पति के साथ उसके ससुराल में क्रूरता हो रही है तो वह इसके आधार पर अपने जीवनसाथी से तलाक ले सकते है।
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क्रूरता क्या है?
हर एक आचरण या बिहेवियर जो आपके जीवनसाथी को नाराज़ कर सकता है वह कानून की नज़र में क्रूरता नहीं होती है। कपल्स के बीच होने वाले मामूली झगड़े, जो सामान्य तौर पर वैवाहिक जीवन में होते रहते हैं, उनको क्रूरता की श्रेणी में नहीं रखा जाता है।
जब एक “गंभीर” आचरण वाली क्रूरता होती है सिर्फ तभी एक व्यक्ति अपने पार्टनर के खिलाफ इस आधार पर तलाक लेने के लिए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकता है। इस आधार पर शिकायत होने के लिए व्यक्ति को साबित करना होगा की उसके साथ शारीरिक या मानसिक रूप से गंभीर रूप से क्रूरता की गयी है और अब पिटीशनर (जो व्यक्ति डाइवोर्स लेना चाहता है) का अपने पार्टनर के साथ रहना खतरनाक हो सकता है। यह “शादीशुदा ज़िंदगी की सामान्य उलझनों” से कहीं ज़्यादा गंभीर होना चाहिए।
उन परिस्थितियों की एक निश्चित परिभाषा देना मुश्किल है, जो वैवाहिक मामले में क्रूरता मानी जाती है। इसी इस तरह समझ जा सकता ही कि परिस्थितियां ऐसी होनी चाहिए जिससे कोर्ट को संतुष्टी हो कि किसी एक पार्टनर की वजह से दूसरे पार्टनर को किसी शारीरिक या मानसिक पीड़ा, यातना अदि का सामना करना पड़ा है।
कोर्ट की नजर में क्रूरता क्या है?
यहां कुछ ऐसी बातें और परिस्थितियां बताई गयी है जिनसे आप बेहतर तरीके से समझ पाएंगे की कानून की नज़र में क्रूरता क्या है। साथ ही किसी भी वैवाहिक मामले में ऐसा कुछ पाए जाने पर कोर्ट इसके लिए उपयुक्त मदद भी करती हैं। सेक्शन 13(1)(ia) के तहत कानूनी रूप से क्रूरता के दायरे को बताया गया है।
- अगर कुछ ऐसा हुआ है जिसके बाद पति-पत्नी का एक साथ रहना असंभव है।
- अगर एक पार्टनर द्वारा दूसरे पार्टनर पर अडल्ट्री या व्यभिचार या अवैध संबंध बनाने क झूठा आरोप लगाया गया है तो वह भी मानसिक क्रूरता है।
- अगर पति अपनी पत्नी से कहता है कि वह उसके साथ नहीं रहेगा पर वह ससुराल के अन्य लोगों के साथ रह सकती है तो यह भी मानसिक क्रूरता है।
- अगर एक पार्टनर दूसरे पार्टनर को समाज के सामने प्रताड़ित करता है या उसका अपमान करता है तो यह भी मानसिक प्रताड़ना का ही एक रूप है।
- अगर एक पार्टनर दूसरे पार्टनर को शारीरिक रूप से मारता-पीटता है।
- अगर एक पार्टनर दूसरे पार्टनर को पागल या मानसिक रूप से बीमार घोषित करे और कहे की मेरे पति या पत्नी को मनोवैज्ञानिक उपचार की जरूरत है।
- अगर मानसिक क्रूरता में गंदी और अपमानजनक भाषा का उपयोग किया जाये। जैसे की गालियां देना और अपमान करना। जिससे दूसरे पार्टनर की मानसिक शांति ख़त्म होती है।
ऊपर बताई गयी परिस्थितियों में कोर्ट द्वारा यह समझा जा सकता है कि पिटीशनर पर क्रूरता हुई है।
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