क्या कोर्ट से केस वापस लेने पर पेनेलिटी लगती है?

क्या कोर्ट से केस वापस लेने पर पेनेलिटी लगती है?

कोर्ट से केस वापस लेने के लिए कोई सीधी पेनल्टी नहीं होती है, लेकिन अगर केस वापस लेने के लिए अनुरोध किया जाता है तो वकीलों की फीस और कोर्ट फीस को वहन करना हो सकता है। इसके अलावा, अगर केस के बीच में कोई उच्चाधिकारी आर्डर जारी करता है जिसमें केस वापस लेने का आदेश दिया जाता है तो असली पार्टी को अतिरिक्त जुर्माना भी भुगतना पड़ सकता है।

इस तरह यह कहा जा सकता है कि हालांकि कोर्ट से केस वापस लेने पर कोई सीधी पैनल्टी नहीं लग रही परंतु फिर भी एक व्यक्ति का काफी खर्चा हो जाता है जो कि एक बड़ी पैनल्टी का ही काम कर रहा है। इसलिए कोर्ट से केस वापस लेने पर पैनल्टी ना लग कर भी एक पैनल्टी लग ही जाती है।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

कोर्ट से केस वापस लेने की प्रक्रिया क्या है ?

कोर्ट से केस वापस लेने की प्रक्रिया निम्नलिखित तरीके से होती है:

आपको अपने वकील से संपर्क करना होगा और उन्हें बताना होगा कि आप अपने केस को वापस लेना चाहते हैं। वह आपको वापस लेने के विकल्प बताएगा और ये भी बताएगा कि इस प्रोसेस में कैसे आगे बढ़ें।

अगर आप अपने वकील से संपर्क नहीं करना चाहते हैं, तो आप स्वयं अपने केस को वापस लेने के लिए अधिकृत आवेदन कर सकते हैं। आपको अपने मामले के न्यायाधीश के सामने अपना आवेदन पत्र सादर करना होगा। आवेदन के लिए आवश्यक दस्तावेजों की एक सूची होगी जो आपको जमा करनी होगी।

इसे भी पढ़ें:  दुर्घटना बीमा और इसके प्रकार

न्यायधीश आपके मामले के बारे में जानकारी हासिल करने के बाद आपका आवेदन को स्वीकृत या अस्वीकृत कर सकते हैं। अगर वह आपके आवेदन को स्वीकृत करते हैं, तो आपको केस को वापस लेने के लिए आदेश जारी किया जाता है।

जब आदेश जारी होता है, तो आपको अपने केस को वापस लेने के लिए अपने वकील की मदद से न्यायालय में जाना होगा। 

Ipc की धारा के तहत इन केसेस में होते हैं मुक़दमें वापस

कुछ मुख्य केस जिनमें मुकदमे को वापस लिया जा सकता हैं, वे हैं:

आपराधिक मुकदमे

अगर किसी आपराध के आरोप में किसी को अभियोग लगाया जाता है तो उस मुकदमे को वापस लिया जा सकता है। आपराधिक मुकदमों के लिए भारतीय दंड संहिता (IPC) में विभिन्न धाराएं होती हैं जैसे IPC धारा 302, IPC धारा 307, IPC धारा 376 आदि।

सिविल मुकदमे

न्यायालय सिविल मुकदमों को भी वापस लेने की अनुमति देता है। इसमें सम्मिलित मामलों में नौकरी से बचाव, अधिकारों की रक्षा, विवादित संपत्ति के मामले आदि शामिल होते हैं।

धार्मिक मुकदमे

धार्मिक मुकदमे भी वापस लिए जा सकते हैं, जिसमें मुस्लिम वक़्फ़ अधिनियम, हिंदू विवाह अधिनियम आदि के धार्मिक मामले  शामिल होते हैं।

जबरदस्ती से रास्ता रोकना – आईपीसी धारा 323

धमकी देना – आईपीसी धारा 506

मानहानि – आईपीसी धारा 500

चोट पहुंचाना – आईपीसी धारा 325

चोरी – आईपीसी धारा 379

धोखाधड़ी – आईपीसी धारा 420

अमानत में खयानत – आईपीसी धारा 406

लापरवाही से वाहन चलाना – आईपीसी धारा 279

इस तरह के केस भी वापस लिए जा असकते हैं। 

इसे भी पढ़ें:  लड़कियों के विवाह की उम्र हुई 21 साल, जानिए किस राज्य से हुई इसकी शुरुआत?

किसी भी प्रकार की कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से सम्पर्क कर सकते है। यहां आपको पूरी सुविधा दी जाती है और सभी काम कानूनी रूप से किया जाता है।

Social Media