हम सभी जानते है कि आये दिन गाड़ियों की दुर्घटनाएं होती रहती है। इसमें कई लोग अपना हाथ पैर गंवाते है और कई अपनी जान। लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है की हम सड़क पर दुर्घटना के डर से निकलना ही छोड़ दे। बस हमे सावधानियों के साथ सड़क पर चलना चाहिए और सभी ट्रैफिक रूल्स के अनुसार ही गाड़ी चलानी चाहिए।
लेकिन जो लोग इन दुर्घटनों में अपनी जान गँवा बैठे है उनका क्या? उनके ऊपर आश्रित उनके परिवारों का क्या?
ऐसे ही एक केस में राजस्थान हाईकोर्ट ने, मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (Motor Accident Claims Tribunal) के फैसले में बदलाव किये।
केस के फैक्ट्स
दरअसल केस यह था कि जयपुर में रहने वाले 58 साल के टीपी विश्वनाथ नैय्यर का 2006 में सड़क पार करते हुए बुरी तरह एक्सीडेंट हो गया था। उस दुर्घटना में उनके दोनों पैरों और पसलियों में फ्रैक्चर हो हए। इस एक्सीडेंट के चलते उन्हीने 2007 में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के तहत मुआवज़े के लिए एक केस फाइल किया। और 2008 में उनकी मृत्यु हो गयी। लेकिन उनका केस उनकी मृत्यु के साथ ख़त्म नहीं हुआ।
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मृतक टीपी विश्वनाथ नैय्यर के उत्त्तराधिकारियों/ लीगल हायर्स ने इस केस को आगे बढ़ाया। लेकिन ट्रिब्यूनल ने उनके इस मुआवज़े की मांग को ख़ारिज करते हुए यह कहा कि 2006 में हुए एक्सीडेंट और उसमे हाथ पैर पर लगी चोटों का मृतक व्यक्ति की मृत्यु से कोई लेना-देना नहीं है। उनको मुआवज़े के लिए साफ़ इंकार कर दिया गया।
हाई कोर्ट का फैसला
ट्रिब्यूनल से निराशा मिलने पर मृतक टीपी विश्वनाथ नैय्यर के लीगल हायर्स ने इस केस के लिए हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। हाई कोर्ट में जस्टिस बीरेंद्र कुमार की एकल जज बेंच ने इस केस पर सुनवाई की।
केस के दौरान जस्टिस का कहना था कि मृतक के सभी टेस्ट या रिपोर्ट्स के रिकॉर्ड में कहीं भी ऐसा कुछ नहीं पाया गया जिससे यह साबित हो कि 15 दिसंबर 2008 को अपनी मृत्यु से पहले मृतक टी.पी. विश्वनाथ नैय्यर का पैर और पसलियों का फ्रैक्चर जो कि दुर्घटना की वजह से हुआ था वह सही हो चुका था या वे उन चोटों से रिकवर कर पा रहे थे।
बल्कि इस दुर्घटना के होने की वजह से उनके शरीर में अन्य परेशानियों ने भी जगह बना ली थी। साथ ही, रिकार्ड्स के अनुसार समझा जा सकता है कि मृतक के सीधे पैर के ऊपर और नीचे दोनों हिस्सों में फ्रैक्चर की वजह से उनके शरीर में इन्फेक्शन हो गया था, जो उनकी मृत्यु के समय भी उसके शरीर में फैला हुआ था। इसके अलावा फ्रैक्चर होने की वजह से शरीर की मूवमेंट कम हो गयी मतलब शरीर का हिलना-डुलना बंद हो गया, जिसके कारण उनकी किडनी भी खराब हो गयी और उनके शरीर में अन्य रोग भी पैदा होने लगे।
इसीलिए यह बिलकुल नहीं कहा जा सकता कि इस सड़क दुर्घटना का नय्यर की मृत्यु से कोई संबंध नहीं है।
हाई कोर्ट ने यह पाया कि टीपी विश्वनाथ नैय्यर की मृत्यु का कारण वह सड़क दुर्घटना की वजह से फैला हुआ इन्फेक्शन ही था। साथ ही, मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण या ट्रिब्यूनल ने पूरे केस पर अच्छे से विचार नहीं किया, जिसकी वजह से मृतक और मृतक के परिवार के सदस्यों को बहुत कष्ट उठाना पड़ा। इसीलिए अब हाई कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले को बदल दिया। मृतक के परिवार को मुआवज़े के तौर पर 10,51,000/- रुपये की रकम देने का फैसला सुनाया गया। यह राशि ट्रिब्यूनल द्वारा दी गयी पहले की राशि को हटाकर बना था।
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