क्या वाइफ अपने हस्बैंड से अलग घर में रहने पर भी मेंटेनेंस की हकदार है?

क्या वाइफ अपने हस्बैंड से अलग घर में रहने पर भी मेंटेनेंस की हकदार है

दिल्ली हाई कोर्ट के अनुसार एक वाइफ अपने हस्बैंड से अलग रहने पर भी हस्बैंड से मेंटेनेंस लेने की हकदार है, चाहे हस्बैंड वाइफ एक ही घर में रहते हो या अलग अलग घर में।

इस साल की शुरुआत में, इंटरिम मेंटेनेंस के लिए एक महिला की पिटीशन को स्वीकार करते हुए, दिल्ली हाई कोर्ट ने यह माना कि एक वाइफ अपने अलग रहने वाले हस्बैंड से भरण-पोषण लेने की हकदार है, भले ही वह एक साथ रहते हो।

यह एक प्रसिद्ध फैक्ट है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत एक पुरुष के ऊपर अपनी वाइफ, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण की जिम्मेदारी है, अगर वह खुद के भरण पोषण में असमर्थ हैं। कोर्ट के पेंडिंग केसीस में ज्यादातर पिटीशनर्स को इंटरिम मेंटेनेंस दे दिया जाता है और कोर्ट को फँसल डिसिशन करना बाकी होता है।

आइए हम इस केस में भरण-पोषण देने के हाई कोर्ट के इस फैसले पर विचार करें, जहां ट्रायल कोर्ट ने महिला को इंटरिम मेंटेनेंस देने से मना कर दिया था क्योंकि ट्रायल कोर्ट ने यह मान लिया था कि हस्बैंड अपनी वाइफ का भरण पोषण कर रहा है क्योंकी वह लोग एक ही घर में रहते है।

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लोअर कोर्ट का आदेश:

घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, महिला ने अपने हस्बैंड पर घरेलु हिंसा करने का आरोप लगाते हुए एक पिटीशन फाइल की थी। लोअर कोर्ट में हस्बैंड ने वाइफ द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को खारिज कर दिया। लोअर कोर्ट ने निष्कर्षों के आधार पर फैसला सुनाया कि महिला अंतरिम मेंटेनेंस की हकदार नहीं है। साथ ही यह भी कहा कि महिला के पास बैचलर और मास्टर दोनों डिग्री हैं, जो उसे कमाई और खुद की देखभाल करने में सक्षम बनाती हैं।
रिकॉर्ड देखने पर पाया गया कि लोअर कोर्ट का फैसला तब आया था जब ससुराल में किराए, बिजली और पानी के बिलों को भरने की जिम्मेदारी महिला की नहीं थी। हालांकि, यह वाइफ के अपने हस्बैंड से बुनियादी जरूरतों जैसे किराने का सामान, कपड़े आदि के लिए न्यूनतम राशि लेने के अधिकार से वंचित नहीं करता है।

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ट्रायल कोर्ट ने माना कि क्योंकि हस्बैंड अपने बच्चों का खर्च उठा रहा है इसलिए यह भी माना जा सकता है कि वह अपनी वाइफ का भरण पोषण भी कर रहा होगा। जैसा कि पहले बताया गया है कि महिला द्वारा सालों पहले प्राप्त की गई पढ़ाई से सम्बन्धित डिग्रियां उसे भरण-पोषण प्राप्त करने के अधिकार से वंचित नहीं करती हैं, इसीलिए लोअर कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ महिला ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की थी।

आइए अब हम दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को पढ़ते है और जानते है कि कैसे भरण-पोषण का दावा करना, महिला का अधिकार है।

दिल्ली हाई कोर्ट का आदेश:

लोअर कोर्ट में अपने अलग हुए पति से इंटरिम मेंटेनेंस मांगने की पिटीशन खारिज होने के बाद महिला ने दिल्ली की कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

दिल्ली की कोर्ट ने एक ही घर में रहने के बावजूद अलग हो चुके पति से मेंटेनेंस पाने की महिला की अपील को अनुमति दे दी। साथ ही यह भी कहा कि अक्सर भारतीय समाज में एक महिला कितनी भी शिक्षित क्यों न हो, लेकिन उसे रेगुलर जॉब करने की अनुमति नहीं है, क्योंकि भारतीय समाज में माना जाता है कि महिला की सबसे पहली जिम्मेदार अपने पति और बच्चों की देखभाल करना है।

अतिरिक्त सेशन की जज मोनिका सरोहा ने कहा कि बुनियादी जरूरतों से वंचित और घरेलू हिंसा की शिकार होने के बावजूद भी उसी घर में रहने वाली महिला को देखना भारतीय समाज में एक सामान्य बात है।

कोर्ट सेशन ने लोअर कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि लोअर कोर्ट का यह निष्कर्ष निकालना गलत था कि महिला केवल इसलिए कोई भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है क्योंकि वह अपने ससुराल में रह रही थी और उस पर किराया, बिजली बिल आदि का भुगतान करने की जिम्मेदारी नहीं थी। यह कहते हुए कोर्ट ने महिला के पक्ष में मेंटेनेंस देने का फैसला पास किया था।

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इसके अलावा, कोर्ट यह भी कहता है कि एक मिडिल ऐज तीन बच्चों की मां ने अपने हस्बैंड और ससुराल वालों पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाया है तो उसे मेंटेनेंस के लिए मना नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उसके पास सालों पहले की बैचलर और मास्टर डिग्री है।

इन केस में लोअर कोर्ट के फैसले को गलत माना गया और उसके आदेश को चुनौती दी गई और महिला को अंतरिम मेंटेनेंस दिया गया।

निष्कर्ष:

कानून इस फैक्ट पर तय किया गया है कि कमाई की क्षमता वास्तविक कमाई से अलग है और दोनों को एक समान नहीं रखा जा सकता है। लोअर कोर्ट का यह कहना गलत था कि चूंकि फाइनल डिसिज़न होने के दौरान महिला अपने ससुराल में रह रही थी, इसलिए वह मेंटेनेंस पाने की हकदार नहीं है क्योंकि उस पर किराया देने की कोई जिम्मेदारी नहीं थी। लोअर कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कोर्ट ने जो निष्कर्ष निकाला वह अत्यधिक प्रशंसनीय हैं, क्योंकि इन केसीस में कोई अनुमान नहीं लगाया जाना चाहिए कि बच्चों का पालन-पोषण करने वाला हस्बैंड वाइफ का खर्च भी उठा रहा होगा।

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