कोर्ट का मानना है कि अपने घरेलु मामलों में वकीलों को शामिल ना करना ही बेहतर है।

कोर्ट का मानना है कि अपने घरेलु मामलों में वकीलों को शामिल ना करना ही बेहतर

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पारिवारिक विवादों को लेकर के एक बड़ी टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना ने अपनी टिप्पणी में कहा ” पारिवारिक विवाद और सार्वजनिक विवाद में काफी अंतर होता है यदि कोई परिवार अपने आंतरिक विवाद को सार्वजनिक विवाद में परिवर्तित करता है तो इस तरीके के मुकदमे में दोनों ही पक्ष हमेशा हानि का अनुभव करते हैं। इस तरीके से विवाद पर रोक नहीं लगती बल्कि और प्रतिशोध की भावना बढ़ती है। ” 

दरअसल जस्टिस खन्ना और जस्टिस एमएस सुंदरेष श्री ललित मोदी और उनके पारिवारिक सदस्य जनरल मुकुल रोहतगी के खिलाफ सोशल मीडिया पर चल रहे विवादों को लेकर इस तरह की टिप्पणी की। उन्होंने ललित मोदी से वह टिप्पणी हटाने को भी कहा जिसमें मोदी ने जनरल मुकुल रोहतगी के खिलाफ सोशल मीडिया पर पोस्ट की थी। जस्टिस ने ललित मोदी को संवैधानिक सलाह देते हुए कहा कि “आपकी कानूनी लड़ाई आपकी व्यक्तिगत लड़ाई से पूरी तरह अलग है इसलिए बेहतर होगा कि आप अपनी लड़ाई में वकीलों को शामिल ना करें।”

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पारिवारिक विवाद घर में ही कैसे सुलझाएं

परिवार में होने वाले विवाद अत्यंत संवेदनशील होते हैं इन विवादों को धैर्य पूर्वक निस्तारित करने की आवश्यकता होती है। इसलिए किसी भी पारिवारिक विवाद को न्यायालय तक खींचने का मतलब है कि आपसे रिश्तो में एक बड़ी गांठ पड़ जाना जो कि जीवन पर्यंत बनी रहती है। इसलिए संभव हो तो पारिवारिक विवाद अपने घर पर ही सुलझाएं । घर पर पारिवारिक विवाद सुलझाने की प्रथा भारतवर्ष में बहुत दिनों से चली आ रही है। आज भी भारत में बहुत सारी ऐसी जनजातियां हैं जो कि अपने विवादों को पुलिस और न्यायालय से काफी दूर रखती हैं तथा अपने समाज के ही लोगों द्वारा किए गए फैसले उनको स्वीकार्य होते हैं । भारत में लोकतंत्र की स्थापना से पहले इसी तरीके के फैसले एक्सेप्ट किए जाते थे तथा लोग समाज में वरिष्ठ लोगों वरिष्ठ पद पर पद आसीन लोगों की बात को मानते थे। इसलिए आज भी ग्राम पंचायत स्तर पर इस तरह के परिवारिक विवादों का निपटारा सुनिश्चित किया जा सकता है। पारिवारिक विवादों को सुलझाने के लिए किसी भी विशिष्ट व्यक्ति की मध्यस्थता ली जा सकती है।

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पारिवारिक विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा? 

पारिवारिक विवाद को लेकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि पारिवारिक विवाद अन्य तरह के विवादों से काफी अलग हैं। इसलिए यदि संभव हो तो अपने पारिवारिक विवादों में वकीलों को बीच में लाने से बचें। 

क्या वकील पारिवारिक विवाद को जल्दी खत्म नहीं होने देते?

भारत में कितने मुकदमे पहले से ही पेंडिंग में है की वकील पहले से ही अपने काम के बोझ में बहुत अधिक दबे हुए हैं। हालांकि इस तरह के विवादों को और अधिक लंबा चलना वकीलों के लिए आर्थिक लाभ का एक जरिया जरूर है लेकिन यदि दोनों पक्ष मध्यस्थता के माध्यम से समझौता करने के लिए तैयार हों तो वकील इस तरह के विवादों का निस्तारण करा देते हैं तथा इससे उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती है।

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