सुप्रीम कोर्ट की 5 बड़ी जजमेंट्स के बारे में जानिए।

सुप्रीम कोर्ट की 5 बड़ी जजमेंट्स के बारे में जानिए।

भारत के संविधान के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट सबसे बड़ी जुडिशियल कोर्ट है। यह अपील करने के लिए आखिरी कोर्ट है। यह न्याय की सबसे बड़ी शक्ति है। सुप्रीम कोर्ट में भारत के चीफ़ जज और अधिकतम 34 जज शामिल हैं। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर कई ऐतिहासिक फैसले दिए है। कुछ केसिस ने सिस्टम को बेहतर काम करने का रास्ता भी दिखाया है। आईये भारत के 5 टॉप सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बारे में जानते है।

(1) केशवानंद भारती V/S केरल राज्य:- 

यह केस साल 1970 में फाइल किया गया था। कासरगोड, केरल में रहने वाले केशवानंद भारती एक धार्मिक संप्रदाय “एडनीर मठ” के चीफ़ थे। उनके पास अपने नाम की जमीन के कुछ टुकड़े थे। उस समय के दौरान, केरल राज्य की सरकार ने भूमि सुधार संशोधन अधिनियम, 1969 पेश किया था।

जब केशवानंद केस पर कोर्ट में चर्चा हो रही थी, तब तक गोलकनाथ v/s पंजाब राज्य के केस में पहले ही बहुत सारे बदलाव कर दिए गए थे। इस केस में सुप्रीम कोर्ट की 13 जजों की बेंच ने संविधान के स्ट्रक्चर को स्टेबल करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकता है। लेकिन “संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर को खुद संवैधानिक संशोधन भी बदल नहीं सकता है।” हालांकि, इस केस में पीटिशनर हार गया था। लेकिन फिर भी इस केस ने भारतीय लोकतंत्र के तारणहार के रूप में काम किया था। कहा जा सकता है की इस केस ने संविधान की आत्मा को खोने से बचाया था।

(2) विशाखा और अन्य V/S राजस्थान राज्य:- 

सुप्रीम कोर्ट ने वर्क-प्लेस पर महिलाओं के साथ होने वाली यौन उत्पीड़न की बुराई से निपटने के लिए एक ऐतिहासिक फैसला दिया था। राजस्थान की सामाजिक कार्यकर्ता भंवरी देवी के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था क्योंकि उन्होंने बाल विवाह को रोकने की कोशिश की थी। उन्होंने दोषी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। ट्रायल कोर्ट ने सुनवाई के तहत आरोपी को बरी कर दिया। लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। सभी महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी उनका साथ दिया। महिलाओं ने संविधान के आर्टिक्ल 14, 19 और 21 के तहत, वर्किंग विमेंस के फंडामेंटल राइट्स को लागू करने के लिए, राजस्थान राज्य और यूनियन ऑफ़ इंडिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ‘विशाखा’ नाम से एक रिट पिटीशन फाइल की।

इस केस में बेंच ने वर्क-प्लेस पर होने वाले यौन उत्पीड़न के खिलाफ फैसला सुनाया और इससे निपटने के लिए गायडलाइन्स दी। फैसला “कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013” के आधार पर सुनाया गया। भारत में यह महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण कानूनी जीत में से एक है।

(3) नवतेज सिंह जौहर V/S यूनियन ऑफ़ इंडिया:- 

जून 2016 में, नवतेज सिंह जौहर और एलजीबीटी कम्युनिटी के पांच मेंबर्स ने आईपीसी के सेक्शन 377 को चुनौती देते हुए, भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक रिट पेटिशन फाइल की थी। बाद में 6 सितंबर 2018 को, पांच-जजों की बेंच ने आईपीसी के सेक्शन 377 में बदलाव किये। सुप्रीम कोर्ट ने होमोसेक्सुअल रिलेशन्स को अपराध की कैटगरी से बाहर कर दिया। इसके बाद एलजीबीटी लोगों को कानूनी रूप से सहमति से संभोग करने की अनुमति दे दी गयी। हालाँकि, सेक्शन 377 के जानवरों पर किए गए यौन उत्पीड़न को अपराध मानने वाले प्रावधानों को बरकरार रखा गया है।

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(4) जोसेफ शाइन V/S यूनियन ऑफ़ इंडिया:- 

भारत में, अडल्ट्री कानून को आईपीसी के सेक्शन 497 और सीआरपीसी के सेक्शन 198(2) में परिभाषित किया गया है। जोसेफ शाइन ने आईपीसी के सेक्शन 497 पर सवाल उठाया। जिसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों की बेंच ने इस कानून को पुरानी सोंच का घोषित किया। इस फैसले ने अडल्ट्री के 158 साल पुराने लॉ को खत्म कर दिया। इस फैसले के तहत, अब अडल्ट्री अपराध नहीं है, यह केवल एक “सिविल रॉंग” है। हालाँकि, यह डाइवोर्स का आधार है। लेकिन अडल्ट्री करना दंडनीय नहीं है।

(5) शायरा बानो V/S यूनियन ऑफ़ इंडिया और अन्य:-

2016 में, रिजवान अहमद ने अपनी वाइफ शायरा बानो को शादी के 15 साल बाद ट्रिपल डाइवोर्स (तीन तलाक) दे दिया। शायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट पिटिशन फाइल कर मुस्लिम समाज के तीन तलाक को असंवैधानिक मानने के लिए कहा। उसने इस बात का दावा किया कि ये सभी प्रथाएं संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 का उल्लंघन करती हैं। यूनियन ऑफ़ इंडिया, बेबाक कलेक्टिव और भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन जैसे महिला संगठनों ने शायरा बानो का साथ दिया। 22 अगस्त 2017 को इस पिटीशन पर 5 जजों की बेंच ने ट्रिपल तलाक पर कानूनी प्रतिबंध लगा दिया। कोर्ट ने घोषित किया कि तीन तलाक अवैध है, और ऐसा करने वाले हस्बैंड को तीन साल तक की जेल हो सकती है।

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