रेप या बलात्कार दुनिया में होने वाला एक घिनौना सच है, जो समाज में लिंगवाद को दर्शाता है। जहां पुरुषों और महिलाओं के बीच जमीन-असमान का फर्क साफ़ दिखाई पड़ता है और यह संदेश मिलता है की महिलाएं शक्ति वितरण के मामले में पुरुषों से कहीं ज्यादा कमजोर है, जो कि भारत में कानूनों की कमी को दर्शाता है। यह पाप गंभीर होने के साथ साथ विवाद भी पैदा करता है। महिलाओं के लिए संघर्षों और यौन राजनीति से जुड़ा कोई भी दूसरा अपराध रेप जितना बड़ा और घृणित नहीं हो सकता है। ऐसे पाप के होने पर एक पीड़िता को होने वाली मानसिक और शारीरिक पीड़ा या दुःख भयावह है जो पीड़िता की जिंदगी की खुशियों और इच्छाओं को ख़त्म ही कर देता है। भारत के कानून ने इस जघन्य आपराध को रोकने के लिए काफी सारे प्रगतिशील कानून भी बनाये हैं।
भारत में रेप के लिए कानून
भारत के अंदर वर्तमान में रेप को रोकने के लिए पर्याप्त कानून है या नहीं इस बात की पुष्टि करने के लिए हमे 2 बातों को समझना होगा कि
- भारत में अभी रेप को रोकने से संबंधित कौन-कौन से कानून और प्रावधान है
- यह सभी कानून इस अपराध को होने से रोकने के लिए सक्षम है या नहीं
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क्रिमिनल लॉ (संशोधन) एक्ट 2013 ने, भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 375 के तहत बलात्कार/रेप की परिभाषा में कई बदलाव किए है। इन बदलावों के होने के बाद अब नई परिभाषा के तहत, एक पुरुष को बलात्कारी या रेप के लिए अपराधी तब ही माना जाता है जब
- वह किसी महिला की योनि (Vagina) में अपना लिंग किसी भी हद तक प्रवेश करता है। अब लिंग योनि के अंदर कितनी दूर तक गया है यह बात मायने नहीं रखती।
- भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 375 के क्लॉज़ (ए) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पुरुष द्वारा महिला की योनि(Vagina), मुंह(mouth), मूत्रमार्ग(urethra) या गुदे(anus) में किसी भी हद तक लिंग डालना रेप है।
- उक्त सेक्शन के क्लॉज़ (बी) के तहत, कोई पुरुष स्वयं ऐसा करता है या किसी महिला को ऐसा करने के लिए मजबूर करता है तो उसे बलात्कार माना जाएगा।
- इसी सेक्शन के क्लॉज़ (सी) में यह प्रावधान है कि अगर कोई पुरुष लिंग के अलावा शरीर के किसी भी हिस्से को योनि, मूत्रमार्ग या महिला के गुदा या ऐसी महिला के शरीर के किसी भी हिस्से में डालता है, तो भी वह रेप समझा जायेगा।
- अंत में क्लॉज़ (डी) स्पष्ट रूप से कहता है कि एक पुरुष द्वारा इसे रेप समझा जाता है अगर वह किसी महिला की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग पर अपना मुंह लगाता है या उसे अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए मजबूर करता है।
भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 375 के तहत परिभाषित किये गए इन चार क्लॉसिस के तहत अपराध तभी माना जायेगा जब वह नीचे बताई गयी इन परिस्थितियों में हुई हो:
परिस्थितियां
- उसकी मर्जी के खिलाफ।
- उसकी सहमति के बिना।
- उसकी सहमति से, लेकिन उसे या उसके किसी करीबी व्यक्ति को मौत या चोट के डर में डालकर सहमति ली गई थी।
- उसकी सहमति से लेकिन पुरुष जानता है कि वह उसका पति नहीं है और सहमति इसलिए दी गई क्योंकि महिला का मानना है कि वह पुरुष कानूनी रूप से उसका पति है।
- उसकी सहमति से, लेकिन ऐसी सहमति देते समय महिला अपनी सहमति की प्रकृति और परिणामों को समझने में असमर्थ थी।
- उसकी सहमति से या उसके बिना, जब महिला की उम्र 18 साल से कम हो।
कानूनों का पर्याप्त ना होना
रेप की कानूनी परिभाषा में सबसे बड़ा मुद्दा रेप को साबित करना है। यह एक सबसे बड़ा कारण है कि जिसकी वजह से रेप के कानून विक्टिम्स को बचाने में अपर्याप्त हैं। यह ध्यान दिया जा सकता है कि, महिला की योनि या अन्य अंगों में प्रवेश करना ही रेप का एकमात्र सार नहीं है। बल्कि यह यौन संबध बनाने की आज़ादी या स्वयत्ता का खंडन है, या पीड़िता की सहमति के बिना किसी खुले तौर पर यौन कृत्य करना और इस शारीरिक आक्रमण के साथ आने वाला अपमान व्यक्ति की स्वायत्तता का मज़ाक उड़ाना है।
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