सभी लोगों की ज़िंदगी में शादी एक बहुत मह्त्वपूर्ण फैसला होता है। और अगर यही शादी डाइवोर्स लेने की कगार पर पहुंच जाये तो किसी भी व्यक्ति को मनोस्थिति क्या होगी यह कह पाना मुश्किल है। लेकिन सबसे ज्यादा प्रश्नाई तब आती है जब यह काम लीगल तरीके से ना किया जाये। अगर आप लीगल तरीके से डाइवोर्स ना लेकर बस अपनी मर्जी से अलग हो जाते है तो कानून की नज़र में आप तब भी पति-पत्नी ही माने जायेंगे। आप डिवोर्सी कपल की तरह तभी रह सकते है या दूसरी शादी तभी कर सकते है जब आप दोनों का लीगल तौर पर डाइवोर्स हो गया हो।
आईये आगे जानते है हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और पारसी कानूनों के तहत आपसी सहमति से तलाक लेने का क्या नियम है?
हिंदू कानूनों के तहत आपसी तलाक
हिन्दू लोगों की शादी, डाइवोर्स आदि जैसे पर्सनल मैटर्स से डील करने के लिए हिन्दू मैरिज एक्ट को 1955 को लागू किया गया था। डाइवोर्स के मैटर हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13बी शासित किये जाते है। आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए कुछ जरूरी नियमों का पालन करना होता है। वह नियम है –
क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?
- दोनों पार्टियां कम से कम पिछले 1 साल से अलग रह रही हो।
- दोनों पार्टियों के बीच सुलह संभव नहीं है।
- दोनों पार्टियां शादी ख़त्म करने के लिए सहमत हो गयी हैं।
डाइवोर्स की पूरी प्रोसेस इसके लिए वकील द्वारा कोर्ट में एक जॉइंट पिटीशन फाइल करने से शुरू होती है। सबसे पहले कोर्ट में फर्स्ट मोशन फाइल किया जाता है। कार्यवाही के बाद, फर्स्ट मोशन की कार्यवाही में कोर्ट ज्यादातर सभी कपल्स को 6 महीने का समय देती है ताकि कपल अपने रिश्ते को बचाने का एक और मौका दे और सुलह कर लें।
अगर 6 महीने के इस टाइम पीरियड में कपल की सुलह नहीं हो पति है तो वह डाइवोर्स की प्रोसेस को आगे बढ़ाते हुए डाइवोर्स का दूसरा मोशन फाइल कर सकते है। दोंनो मोशन फाइल होने के बाद कोर्ट की कार्यवाही चलती है और कोर्ट की समझ द्वारा कपल की डाइवोर्स की डिक्री पास कर दी जाती है।
दोनों मोशन को फाइल करने के बाद भी डाइवोर्स को रोका जा सकता है। अगर दोनों या किसी एक पार्टनर को डाइवोर्स के लिए अपनी सहमति वापस लेनी है तो वह मोशन फाइल होने के बाद भी उसे वापस ले सकते है।
मुस्लिम कानून के तहत आपसी तलाक की प्रक्रिया
मुस्लिम कानून के तहत तलाक दो तरीकों से हो सकता हैं – खुला और मुबारक।
खुला
खुला मुस्लिम महिला द्वारा शादी को ख़त्म करने का एक तरीका है। खुला के तरीके से केवल महिला पार्टनर डाइवोर्स दे सकती है हस्बैंड नहीं। यह डाइवोर्स मुस्लिम महिला पार्टनर अपने हस्बैंड की सहमति के बिना उन्हें देती है। डाइवोर्स देने के समय पर महिला को महर की पूरी रकम, जो उन्हें शादी पर हस्बैंड से मिली थी उसे पूरा वापस करना होता है। महर की रकम को लौटाने के बाद शादी को ख़त्म कर दिया गया माना जाता है।
मुबारत
मुबारत के तरीके से डाइवोर्स लेने में दोनों पार्टनर्स की इच्छा और सहमति होती है। दोनों पार्टनर्स में से कोई भी मुबारत के तरीके से डाइवोर्स लेने के लिए प्रस्ताव रख सकता है। एक पार्टनर द्वारा मुबारत का प्रस्ताव रखने के बाद दूसरे पार्टनर द्वारा इस प्रस्ताव को स्वीकार किया जाना चाहिए। मुबारत के प्रस्ताव को दोनों पार्टनर्स द्वारा स्वीकार किये जाने के बाद उनका निकाह ख़त्म माना जाता है।
ईसाई कानून के तहत आपसी तलाक
ईसाई लोगो के डाइवोर्स 1869 में लागू डाइवोर्स एक्ट के तहत शासित किये जाते है। इस एक्ट का सेक्शन 10 ए आपसी सहमति से तलाक के बारे में बात करता है। इसे अपने जिले की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में फाइल किया जा सकता है। कोर्ट में डाइवोर्स की पिटीशन फाइल होने के 6 महीने बाद लेकिन 18 महीने पूरे होने से पहले इस पिटीशन को वापस लिया जा सकता है।
पारसी कानून के तहत आपसी तलाक
पारसी विवाह और तलाक अधिनियम 1936 का सेक्शन 32 बी पारसियों के आपसी तलाक को नियंत्रित करती है। इसके लिए पारसी लोगों को कुछ शर्तों को पूरा करना जरूरी है –
- दोनों पार्टियां कम से कम पिछले 1 साल से अलग रह रही हो।
- दोनों पार्टियों के बीच सुलह संभव नहीं है।
- दोनों पार्टियां शादी ख़त्म करने के लिए सहमत हो गयी हैं।
स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत आपसी तलाक
1954 का स्पेशल मैरिज एक्ट का सेक्शन 28 आपसी तलाक के बारे में बात करता है और अंतर-धार्मिक शादियों पर लागू होती है। इसके लिए कुछ शर्तें जो पूरी करनी होती हैं वह हैं –
- स्पेशल मैरिज एक्ट के सेक्शन 4 से सेक्शन 14 के अनुसार ही शादी संपन्न होनी चाहिए।
- पति-पत्नी दोनों ने अपने विवाद पहले ही सुलझा लिए हैं।
- अगर पति-पत्नी के बच्चे हैं तो पहले से ही सुनिश्चित कर लिया गया है कि उनका पालन-पोषण कैसे किया जाएगा।
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