भारत में जजों की गिरफ्तारी से संबंधित क्या कानून है?

भारत में जजों की गिरफ्तारी से संबंधित क्या कानून है?

जजों से संबंधित धाराएं कौन सी हैं?

यहां कुछ धाराएँ हैं जो जजों की गिरफ्तारी के संबंध में महत्वपूर्ण हैं

धारा 353

इस धारा के तहत, किसी व्यक्ति द्वारा जज को कोर्ट में शांत रखने या अनुशासन में लाने का प्रयास करने पर दण्डित किया जा सकता है।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

धारा 228

इस धारा के तहत, जब जज किसी अपराध के लिए गिरफ्तार करने के लिए प्रयास किया जाता है, तो इस धारा का प्रयोग किया जा सकता है।

धारा 124

यह धारा उच्चतम न्यायालय के जजों को गिरफ्तार करने के लिए होती है। इसके अंतर्गत, जब उच्चतम न्यायालय का जज किसी अपराध के लिए गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुमति दी जाती है।

धारा 225

इस धारा के तहत, जब उच्चतम न्यायालय के जज अपराध के आरोप में गिरफ्तार किए जाते हैं, तो उन्हें उच्चतम न्यायालय के सत्यापन कमिशन द्वारा जांच करने की अनुमति दी जाती है।

भारत में जजों की गिरफ्तारी से संबंधित कानून 

भारत में जजों की गिरफ्तारी और उन पर कानूनी कार्रवाई के लिए विभिन्न कानून हैं।

जजों की गिरफ्तारी

भारतीय दंड संहिता के अनुसार, जजों को गिरफ्तार करने के लिए धारा 353 ए एंड 228 का प्रयोग किया जाता है। धारा 353 जो संबंधित होता है अपराधों के अनुसार जज को कोर्ट में शांत रखने या अनुशासन में लाने के लिए प्रयोग किया जाता है। धारा 228 जो संबंधित होता है सभी अपराधों के खिलाफ गिरफ्तारी को संबंधित अदालत या थाने में लाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

इसे भी पढ़ें:  आरटीआई एक्ट के तहत पहली अपील कब और कैसे करें?

उच्चतम न्यायालय के जजों की गिरफ्तारी

भारत में उच्चतम न्यायालय के जजों को गिरफ्तार करने के लिए, भारतीय दंड संहिता के अनुसार धारा 124 और धारा 225 का प्रयोग किया जाता है।

कानूनी कार्रवाई

भारत में जजों को गिरफ्तार करने के लिए कानूनी कार्रवाई की जानकारी देने के लिए एक विशेष विधि है। इसके अनुसार, गिरफ्तार जज के वापसी से पहले अदालत या न्यायाधीश की स्वीकृति की आवश्यकता होती है।

धारा 353 क्या कहती है ?

धारा 353 भारतीय दंड संहिता का हिस्सा है और यह जजों या कोर्ट कर्मचारियों को दण्डित करने के लिए बनाई गई है। इस धारा के तहत, अगर कोई व्यक्ति जज को कोर्ट की प्रक्रिया को अवरुद्ध करने या उसे कोर्ट में शांत न रखने का प्रयास करता है, तो उसे दोनों धारा 353 और धारा 228 के तहत दण्डित किया जा सकता है।

यह धारा न्यायिक प्रक्रिया को सुरक्षित रखने और कोर्ट में अव्यवस्था को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है। जजों और कोर्ट कर्मचारियों की सुरक्षा एक प्राथमिकता है ताकि वे न्यायिक कार्य को सही ढंग से संपादित कर सकें।

किसी भी तरह की कानूनी सहायता पाने के लिए आज ही लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारी अनुभवी एक्सपर्ट की टीम आपकी सहायता करने के लिए हर समय तैयार है।

Social Media