डोमेस्टिक वायलेंस के केस का फैसला लेने से पहले जज डोमेस्टिक इंसिडेंट रिपोर्ट पर विचार करने के लिए बाध्य नहीं हैं।

डोमेस्टिक वायलेंस के केस का फैसला लेने से पहले जज डोमेस्टिक इंसिडेंट रिपोर्ट पर विचार करने के लिए बाध्य नहीं हैं।

प्रभा त्यागी v कमलेश देवी के केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया। जिसमे अब मजिस्ट्रेट को डीवी एक्ट के तहत आर्डर पास करने से पहले  प्रोटेक्शन ऑफिसर द्वारा फाइल की गयी डोमेस्टिक इंसिडेंट रिपोर्ट पर विचार करने की जरूरत नहीं है। जज एम आर शाह और जज बी वी नागरथा की बेंच ने यह देखा कि मजिस्ट्रेट के पास डोमेस्टिक इंसिडेंट रिपोर्ट ना होने पर भी एक्ट के तहत अंतरिम, एक-पक्षीय या फाइनल जजमेंट लेने का हक़ है।

प्रेजेंट केस में बेंच ने यह बात क्लियर कर दी है कि मजिस्ट्रेट उस केस में प्रोटेक्शन ऑफिसर द्वारा फाइल किसी भी डोमेस्टिक इंसिडेंट रिपोर्ट पर विचार करने के लिए बाध्य है, जहां विक्टिम ने अपने प्रोटेक्शन ऑफिसर द्वारा मजिस्ट्रेट को एप्लीकेशन फाइल किया है।

डी.वी. एक्ट के सेक्शन 12(1) के प्रावधान के अनुसार, एक प्रोटेक्शन ऑफिसर के लिए मजिस्ट्रेट के सामने एक डोमेस्टिक इंसिडेंट रिपोर्ट फाइल करना जरूरी है, जिसे मजिस्ट्रेट रिपोर्ट के अनुसार किए गए अपराध के लिए संज्ञान ले सकता है, यह था उत्तराखंड हाई कोर्ट द्वारा नोट किया गया।

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सुप्रीम कोर्ट के सामने यही मैटर उठाया गया था कि क्या डी.वी. के तहत कार्यवाही शुरू करने से पहले डोमेस्टिक इंसिडेंट रिपोर्ट जरूरी है। 

कोर्ट ने कहा कि सेक्शन 12 के तहत, विक्टिम या उसकी तरफ से कोई अन्य व्यक्ति राहत मांगने के लिए मजिस्ट्रेट को एक एप्लीकेशन देन होता है, हालांकि सेक्शन के प्रोविज़न में कहा गया है कि डोमेस्टिक इंसिडेंट रिपोर्ट को ध्यान में रखा जाना है। इस प्रकार, कोर्ट के सामने प्रश्न यह था कि डोमेस्टिक इंसिडेंट रिपोर्ट ना होने पर अगर विक्टिम या उसकी तरफ से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा एप्लीकेशन फाइल किया जाता है, तो क्या मजिस्ट्रेट आर्डर पास कर सकता है।

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कोर्ट ने कहा, कि परंतुक में ‘होगा’ शब्द को घरेलू घटना रिपोर्ट के संदर्भ में पढ़ा जाना है, यदि रिपोर्ट संरक्षण अधिकारी द्वारा दायर की जाती है, तो मजिस्ट्रेट को इसे ध्यान में रखना होगा, यदि रिपोर्ट दायर की जाती है पीड़ित व्यक्ति द्वारा स्वयं या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा और कोई रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई है, तो मजिस्ट्रेट ऐसी किसी भी रिपोर्ट पर विचार करने के लिए बाध्य नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि, अगर विधायिका की मंशा ऐसी होती, तो प्रावधान स्पष्ट शब्दों में यह व्यक्त करता कि किसी भी मामले में घरेलू घटना रिपोर्ट को ध्यान में रखा जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा, “डीवी अधिनियम की धारा 12 के तहत शक्ति की प्रचुरता की व्याख्या की जाती है और एक सुरक्षा अधिकारी या सेवा प्रदाता की सहायता के बिना पीड़ित व्यक्ति द्वारा दायर एक आवेदन पर प्रतिवादी को नोटिस जारी करने के लिए पूर्वापेक्षा की जाती है और इस प्रकार वहाँ किया जा रहा है घरेलू घटना रिपोर्ट की अनुपस्थिति उत्पन्न नहीं होती है। यदि एक विपरीत व्याख्या दी जाती है … प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति के लिए पहले एक संरक्षण अधिकारी से संपर्क करना और एक घरेलू घटना रिपोर्ट तैयार करना और उसके बाद राहत के लिए मजिस्ट्रेट से संपर्क करना बहुत ही आवश्यक होगा। डी वी एक्ट, जो संसद का इरादा नहीं है।”

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