सीआरपीसी और पर्सनल लॉ के तहत मेंटेनेंस से संबंधित कानून क्या है?

सीआरपीसी और पर्सनल लॉ के तहत मेंटेनेंस से संबंधित कानून क्या है?

एक व्यक्ति एक सम्मानित जिंदगी जीने के लिए बेसिक सुविधाओं जैसे भोजन, कपड़े, रहने के लिए घर और अन्य जरूरतों का हकदार है। सामाजिक न्याय के नियमों के तहत, यह एक पुरुष का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी, माता-पिता और बच्चों को भरण-पोषण अपनी आय से निर्वहन करें और उन्हें सारी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराये।

भारत में मेंटेनेंस कानून एक पुरुष के कर्तव्य को तय करता है। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के सेक्शन 125 के तहत मेंटेनेंस की अवधारणा को तय करती है। यह उसकी पत्नी, माता-पिता और बच्चों को भी भरण-पोषण का अधिकार देती है।

आईये जानते है राजस्व संहिता की धारा 128 क्या है, आईपीसी और सीआरपीसी में कितनी धाराएं हैं?, और इनको न मानने पर कौन सी धारा लगती है?

पर्सनल लॉ के तहत मेंटेनेंस

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हिंदू कानूनों के तहत मेंटेनेंस

अगर लगातार 2 साल से ज़्यादा तक एक हस्बैंड अपनी वाइफ को आर्थिक रूप से रखने में या उसकी बेसिक जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं होता टी वह वाइफ अपने हस्बैंड पर केस फाइल कर सकती है और डाइवोर्स भी ले सकती है। 

हालाँकि, यहां कोर्ट दोनों पक्षों को सुनती है और केस के सभी फैक्ट्स को डिसकस करने के बाद ही कोई भी फैसला लिया जाता है। साथ ही, आपराधिक प्रक्रियात्मक कानूनों के तहत वाइफ भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती है।

हिंदू कानून पत्नी, बच्चों, बूढ़े माता-पिता और विधवा बेटी या बहू के लिए मेंटेनेंस के अधिकार को मान्यता देता है।

बच्चों के लिए मेंटेंनेस कानून

बच्चों के लिए मिलने वाले मेंटेनेंस के कानून को 125 सीआरपीसी के तहत समझाया गया है। इस प्रोविज़न के अनुसार एक बच्चा 18 साल की उम्र का होने तक अपने पिता से मेंटेंनेस का दावा कर सकता है। हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 26 में भी हिंदू कानून के तहत बच्चे के भरण-पोषण का प्रोविज़न है।

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एक्ट के अनुसार एक नाबालिग बच्चा अपने बायोलॉजिकल पिता से मेंटेनेंस पाने का हकदार है चाहे तलाक की कार्यवाही के दौरान बच्चे की कस्टडी मां को ही क्यों न दे दी गयी हो। 

मुस्लिम कानूनों के तहत मेंटेंनेस

मुस्लिम कानून के तहत बीवी के मेंटेनेंस का प्रोविज़न मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) एक्ट, 1986 के तहत दिया गया है। एक्ट में बताय गया है कि एक डिवोर्सी मुस्लिम महिला निम्नलिखित सिचुऎशन्स मे मेंटेनेंस की हकदार है। 

  1. इद्दत पीरियड के दौरान, बीवी को उचित मेंटेनेंस देना होता है। इसे मेहर में दी गयी रकम के अनुसार ही तय किया जाता है, जो शौहर को वापस करनी होती है। 
  2. जब बच्चा बीवी के पास होता है तब बीवी और बच्चे दोनों का मेंटेनेंस 2 साल तक शौहर को देना होता है। अगर तलाक होने के बाद बच्चा होता है, तो बच्चे के जन्म की तारीख से ही 2 साल का पीरियड शुरू हो जाता है। 
  3. मेहर की पूरी रकम शादी के समय या शादी के बाद बीवी को वापस करनी होती है। 

मुस्लिम कानून में भी मेंटेनेंस देने की परिभाषा कानूनी मेंटेनेंस की परिभाषा से मेल खाती है।

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के सेक्शन 125 के तहत मेंटेनेंस 

भारत में लागू दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के सेक्शन 125 के तहत मेंटेनेंस लेने का अधिकार केवल पत्नी या बच्चों का ही नहीं बल्कि पुरुष के गरीबी और बूढ़े माता-पिता और डिवोर्सी पत्नियों का भी है। हालाँकि, कानूनी तौर पर किसी भी पुरुष से मेंटेनेंस का दावा पुरुष की इनकम और उसकी क्षमता पर निर्भर करता है।

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कुछ सालों पहले तक मेंटेनेंस रुपये-पैसों (500 रूपये हर महीना) तक ही सीमित था। लेकिन अब मजिस्ट्रेट के पास पावर है कि वह मेंटेनेंस की उचित राशि के लिए ऑर्डर जारी कर सकते है।

हालाँकि, सीआरपीसी के सेक्शन 125 के तहत एक पत्नी को कुछ पर्टिकुलर यनिष्वहित सिचुएशन में मेंटेनेंस लेने का हकदार नहीं माना जाता है। वह सिचुऎशन्स है –

  1. अगर पत्नी ने अडल्ट्री की है। 
  2. अगर पत्नी ने बिना किसी वैलिड आधार के अपने पति के साथ रहने से मना कर दिया है। 
  3. अगर पत्नी आपसी सहमति से अपने पति से अलग हो गयी है।

यह सीआरपीसी और पर्सनल लॉ के तहत मेंटेनेंस से संबंधित कुछ कानून है, जिनकी जरूरत पड़ने पर आप एक वकील के माध्यम से इनका उपयोग कर सकते है। लीड इंडिया में बहुत से एक्सपर्ट वकील रजिस्टर्ड है। कसी भी कानूनी जरूरत पड़ने पर आप हमसे कांटेक्ट कर सकते है।

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