अगर बेटी बालिग़ बेटी मानसिक एवं शारीरिक रूप सक्षम है तो वो गुजारे भत्ते की हकदार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट कहना है कि अगर अविवाहित है लेकिन वो सक्षम है तो सीआरपीसी धारा 125 के अंतर्गत वो अपने पिता से गुजारे भत्ते की मांग नहीं कर सकती।
गौरतलब है कि हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 (3) के अंतर्गत अब तक यह प्रावधान है कि अविवाहित बेटी पिता से अपने गुजारे भत्ते की मांग कर सकती है। लेकिन उसे यह सिद्ध करना होता है कि वो अपनी देखभाल एवं भरण पोषण करने में समर्थ नहीं है। हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 (3) के अनुसार अपने बच्चों और वृद्ध माता-पिता के भरण-पोषण का दायित्व एक पिता का होता है।
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इसी अधिकार के तहत नूर सबा खातून ने अपने पिता मोहम्मद क़ासिम पर गुजारे भत्ते के लिए दावा पेश किया। अपीलकर्ता जब 17 साल की थी तब उसने धारा 125 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट कोर्ट रेवाड़ी में गुजारे भत्ते के लिए आवेदन किया। मजिस्ट्रेट ने मुकदमा यह कर ख़त्म किया कि जब तक अपीलकर्ता बालिग़ नहीं हो जाती तब तक वो गुजारे भत्ते का दावा नहीं कर सकती। इस आदेश को हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। तब तक लड़की बालिग़ हो चुकी थी लेकिन अविवाहित थी।
अत: इस मुद्दे पर जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वली तीन जजों की बेंच ने विचार किया कि गुजारा भत्ता कब तक मिलना चाहिए बेटी के बालिग़ होने तक या फिर अविवाहित रहने तक? पीठ ने व्याख्या करते हुए कहा कि यदि व्यस्क बेटी किसी या चोट या शारीरिक एंव मानसिक अक्षमता से पीड़ित नहीं है तो वो गुजारे भत्ते की हकदार नहीं है भले ही वो अविवाहित हो।