दिल्ली हाई कोर्ट में एडवोकेट अमित कुमार की तरफ से एक पिटिशन फाइल की गयी थी। इस पिटिशन को फाइल करने का उनका उद्देशय था कि जब तब भारतीय दंड संहिता का सेक्शन 375 का एक्सेप्शन 2 शादी के बाद हस्बैंड, वाइफ द्वारा बनाये गए सेक्सुअल रिलेशन को रेप के अपराध से छूट देता है। तो धारा 377 के तहत हस्बैंड पर उसकी वाइफ के साथ अप्राकृतिक सेक्सुअल रिलेशन्स बनाने को अपराध ना माना जाए। और ना ही इसके लिए कोई केस चलाया जाये।
हाईकोर्ट ने इस पिटिशन को उन पिटीशंस के पूरे बैच से अलग कर दिया, जिनमे मैरिटल रेप को अपराध मानने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि 11 मार्च को इस केस की अलग से सुनवाई की जाएगी। जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच ने कई दिनों तक चली लंबी सुनवाई के बाद इस केस पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। यह फैसला आईपीसी की धारा 375 के अपवाद (2) के खिलाफ फाइल पिटीशंस पर लिया गया है।
कोर्ट के अनुसार,
“क्योंकि इस पिटीशन का मैटर बाकी रिट पिटीशंस के ग्रुप से अलग है। इसलिए इसे अलग रखा गया है। इसपर अलग से सुनवाई की जाएगी।”
इस पिटीशन में यह सवाल उठा कि क्या सेक्शन 375 में 2013 का बदलाव मैरिड नागरिकों के लिए सेक्शन 377 के साथ गलत है? 2013 के बदलाव के बाद रेप के अपराध के दायरे का विस्तार किया गया था। इसमें कई सारे बदलाव आये है। इसमें लिंग और योनि के अलावा अन्य पेनेट्रेटिव एक्ट्स को भी शामिल किया गया है।
पिटीशनर अमित कुमार का तर्क यह था कि जब धारा 375 का अपवाद 2 मैरिड लोगों के सेक्सुअल रिलेशन को रेप के अपराध के दायरे से बाहर रखता है, तो आईपीसी की धारा 377 के तहत “नॉन वैजिनल पेनेट्रेटिव सेक्सुअल एक्ट” के लिए अपने हस्बैंड पर केस फाइल करना गलत है।
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केस क्या है:-
दरसल, केस यह है की पिटीशनर अमित कुमार पर बिना उसकी वाइफ की सहमति के उसके साथ अनाल सेक्स करने के आरोप में आईपीसी की धारा 377 के अपराध के तहत केस चलाया जा रहा है। इस पर पिटीशनर का तर्क है कि जब अधिनियम की धारा 375 आईपीसी के तहत मैरिटल सेक्स को रेप के अपराध से छूट दी गई है, तो धारा 377 आईपीसी के तहत रेप का मुकदमा चलाना ठीक नहीं है।
पिटीशनर ने यह भी कहा कि धारा 375 में बदलाव के बाद, देश का दंड कानून अनिश्चित हो गया है। इस पिटीशन में मांग की गई है कि अपनी वाइफ के साथ “अप्राकृतिक” सेक्सुअल रिलेशन्स बनाने पर पुरुष पर केस करना असंवैधानिक और कानूनी तौर पर गलत होना चाहिए।