लोन वसूलने का क्या मतलब है?

लोन वसूलने का क्या मतलब है

किसी भी फाइनेंसियल इंस्टीटूशन या डिपार्टमेंट के द्वारा लिए गए उधार के पैसे को उधार लेने वाले व्यक्ति को वापस चुकाना होता है। उधार लेने वाले व्यक्ति यानि उधारकर्ता को उसे चुकाने की जरूरत होती है। अगर उधारकर्ता द्वारा इस लोन का भुगतान नहीं किया जाता है, तो लोन देने वाला व्यक्ति या इंस्टीटूशन उस अमाउंट की वसूली के लिए कानून की मदद ले सकता है। आइए आगे इस लेख के माध्यम से समझते हैं कि लोन वसूलना क्या है, कर्ज कैसे वसूला जाता है, लोन वापस लेने का कानूनी तरीका क्या है, आदि।

लोन वसूलना क्या है?

लोन की वसूली को उस कानूनी प्रोसेस के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो लोन देने वाले व्यक्ति या इंस्टीटूशन द्वारा उधारकर्ता को उसके द्वारा मंजूर किये गए अमाउंट की वसूली के लिए की जा रही है, हम यह भी कह सकते हैं कि यह उधार लिए गए अमाउंट को वापस लेने का एक वैध तरीका है।

कर्ज कैसे वसूला जाता है?

भारत में लोन की वसूली के कई तरीके हैं लेकिन यहां हम इसे दो अलग-अलग श्रेणियों या या कैटगरीज़ में बांटेंगे, जो कि कानूनी तरीका है और एक अवैध तरीका भी है, अवैध तरीका उस तरीके को संदर्भित करता है जहां लोन देने वाला व्यक्ति एजेंट के माध्यम से ग्राहक को वापस पाने के लिए परेशान करता है। 

लोन वापस लेने का कानूनी तरीका क्या है?

कर्ज की वसूली के लिए सिविल उपाय

लोन वसूलने के इस तरीके को भारत में लोन वसूली की सबसे आम या कॉमन प्रक्रिया में से एक कहा जाता है, इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए व्यक्ति को पैसे वापस करने के लिए या अगर पैसे वापस करने के लिए मुख्य पॉइंट्स पर ध्यान देते हुए सामने वाली पार्टी को कानूनी नोटिस भेजने की जरूरत होती है। 

उसके द्वारा भुगतान नहीं किया जाता है, तो अमाउंट की वसूली के लिए उसके खिलाफ सिविल सूट संस्थित या ऑर्गनाइज़्ड किया जा सकता है, सिविल सूट का प्रोविज़न सिविल प्रक्रिया संहिता के आर्डर IV के तहत फाइल किया जाता है और केस या सूट फाइल करने की लिमिट उस दिन से लेकर 3 साल तक है ऐसी कार्रवाई की जाती है, क्षेत्राधिकार या जूरिस्डिक्शन उस स्थान के अनुसार तय किया जाता है जहां ऐसी कार्रवाई की जाती है या जहां डिफॉल्टर व्यवसाय या काम करता है।

भारतीय दंड संहिता के तहत क्रिमिनल केस 

देश में कर्ज की वसूली के लिए इन तरीकों का बहुत ज्यादा उपयोग किया जाता है, कुछ अपराध हैं और कर्ज चुकाने के लिए भारतीय दंड संहिता के तहत दी गई सजा से पीड़ित व्यक्ति इन सेक्शंस के तहत केस फाइल कर सकता है 

  1. सेक्शन 405 और 406 क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट के बारे में बताती है। 
  2. सेक्शन 403 किसी और की प्रॉपर्टी को बेईमानी से अपना बताना या उसपे हक़ जताने के बारे में बात करता है। 
  3. सेक्शन 415 और 417 धोखाधड़ी की बात करता है। 

ऊपर बताये गए इन अपराधों को संज्ञेय (cognizable) और गैर-संज्ञेय (non-cognizable) अपराधों या जमानती (bailable) और गैर-जमानती (non-bailable) अपराधों के रूप में बांटा गया है जो लोन वापस ना करने वाले को गंभीर परेशानी में डाल सकता है।

अन्य लोन वसूली के एक्ट्स 

इसके अलावा भी अन्य एक्ट्स और प्रोविजन्स है, जो लोन वसूली की प्रक्रिया से संबंधित हैं। जैसे – 

  1. नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (Negotiable Instruments Act) 
  2. भारतीय कॉन्ट्रैक्ट के तहत राहत (Relief under Indian contract) 
  3. बैंक और वित्तीय संस्थान एक्ट के कारण लोन की वसूली (Recovery of Debts Due to Banks and Financial Institutions Act) 
  4. वित्तीय प्रॉपर्टीज़ का प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा हित का प्रवर्तन (SARFAESI ACT 2002) 
  5. दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016
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