पति के परिवार के आरोपों पर ध्यान ना देना, न्याय का दुरुपयोग है।

पति के परिजनों के आरोपों पर ध्यान ना देना, न्याय का दुरुपयोग है।

तेलंगाना उच्च न्यायालय ने वैवाहिक विवादों के सम्बंध में एक बेहद ही महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। अपने निर्णय में तेलंगाना की उच्च न्यायालय ने कहा है कि परिवार न्यायालय अधिनियम 1984 के तहत वैवाहिक विवादों में परिजनों के द्वारा लगाए गए ग़लत आरोप यदि अनियंत्रित रहे तो यह न्याय के ग़लत इस्तेमाल को प्रेरित करेगा।

तेलंगाना उच्च न्यायालय ने वैवाहिक विवाद से सम्बंधित इस फैसले को देते हुए और भी अन्य महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डाला है। जस्टिस ए संतोष रेड्डी की बेंच ने उच्च न्यायालय में पी राजेश्वरी और अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य की सुनवाई करते हुए यह महत्वपूर्ण बात कही है।

उच्च न्यायालय में सुनवाई करते हुए कहा गया कि यदि ऐसे आरोपों को अनियंत्रित छोड़ दिया जाता है तो कानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग होगा। अब समय है कि केंद्र सरकार को इस ओर हस्तक्षेप करना चाहिए और उचित जांच और संतुलन को प्रारम्भ कर के कानून में तुरंत संशोधन करना चाहिए। उन मामलों में ख़ास तौर पर ध्यान देने की ज़रूरत है जहां पति के परिजनों के आरोप दुर्भावनापूर्ण हैं और गलत तरीके से फंसाने के इरादे से पत्नी पर लगाए गए हों। ऐसा करने पर कम से कम पांच साल की न्यूनतम कारावास की सज़ा और कुछ लाख रुपये पत्नी को मुआवजे के तौर पर दिए जाने चाहिए।

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तेलंगाना उच्च न्यायालय के सामने प्रस्तुत इस मामले में पति द्वारा अपनी पत्नी को अतिरिक्त दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था। यह प्रताड़ना मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूप से दी गयी थी। पति के अतिरिक्त महिला का देवर भी उसके शोषण में आरोपी था। इन के ऊपर भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। इसी मुकदमे को ख़त्म कर देने की याचिका के साथ देवर(A3) ननद(A4) और सास (A2) ने उच्च न्यायालय में गुहार लगाई थी।

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मामले को गंभीरता पूर्वक सुने जाने के बाद माननीय उच्च न्यायालय ने कुछ बातों को महत्वपूर्ण रूप से बताया जाना उचित समझा उन्होंने कहा: 

यह सामान्य अनुभव की बात है कि आईपीसी की धारा 498-ए के तहत अधिकांश शिकायतें बिना उचित विचार-विमर्श के तुच्छ मुद्दों पर पल-पल की गर्मी में दायर की जाती हैं। हमारे पास बड़ी संख्या में ऐसी शिकायतें आती हैं जो प्रामाणिक भी नहीं होती हैं और परोक्ष उद्देश्य से दायर की जाती हैं। साथ ही दहेज प्रताड़ना के वास्तविक मामलों की संख्या में तेजी से हो रही वृद्धि भी हमारे सामने एक गंभीर चिंता का विषय है।

फैमिली कोर्ट क्या है?

फैमिली कोर्ट या पारिवारिक न्यायालय क्या होता है, कोर्ट ने कहा कि कानून द्वारा पूरे प्रावधान पर गंभीरता से पुनर्विचार किया जाना चाहिए। बहुत बड़ी संख्या में मामलों में अति निहितार्थ की प्रवृत्ति भी परिलक्षित होती है। आपराधिक मुकदमे सभी संबंधितों के लिए अत्यधिक पीड़ा का कारण बनते हैं। यहाँ तक कि मुक़दमे में अंतिम रूप से बरी हो जाना भी बदनामी की पीड़ा के गहरे निशानों को मिटाने में सक्षम नहीं हो सकता है। दुर्भाग्य से इन शिकायतों की एक बड़ी संख्या ने न केवल अदालतों में बाढ़ ला दी है बल्कि समाज की शांति, सद्भाव और खुशी को प्रभावित करने वाली भारी सामाजिक अशांति को भी जन्म दिया है। यह उचित समय है कि विधायिका को व्यावहारिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखना चाहिए और मौजूदा कानून में उपयुक्त बदलाव करना चाहिए। 

कोर्ट का विचार है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही जारी रखना निश्चित रूप से कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इसलिए, धारा 482 Cr.PC के तहत इस न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों को लागू करने और याचिकाकर्ताओं/A-2 से A-4 के खिलाफ आगे की कार्यवाही को रद्द करने के लिए उपयुक्त मामलों के रूप में माना जाता है।

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कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए अंत में कहा कि ” परिणामस्वरूप, दोनों आपराधिक याचिकाओं की अनुमति दी जाती है और याचिकाकर्ताओं/ए-2 से ए-4 के खिलाफ क्रमशः 2013 की PRCNo.123 की फ़ाइल पर कार्यवाही की जाती है। IX मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, कुकटपल्ली, मियापुर को एतद द्वारा रद्द किया जाता है। विविध याचिकाएं, यदि कोई हों, लंबित होंगी, बंद हो जाएंगी।”

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