हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बताया कि जब डाइवोर्स की पिटीशन फाइल की गई है और वाइफ को हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 24 के तहत मुकदमेबाजी का खर्च मिल रहा है, तो ऐसे मैट्रीमोनिअल केसिस में दूरी और आर्थिक परेशानी के आधार पर केस को दूसरे कोर्ट में ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है।
केस क्या था?
शालिनी दुबे बनाम अभिषेक त्रिपाठी 2021 में, आवेदक वाइफ इटावा जिले में रह रही थी। वाइफ ने क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के सेक्शन 125 के साथ-साथ डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के सेक्शन 12 के तहत मेंटेनेंस का केस फाइल किया था। वाइफ के लॉयर ने तर्क दिया कि विरोधी पक्ष मतलब हस्बैंड ने औरैया के फैमिली कोर्ट में डाइवोर्स की पिटीशन फाइल की थी। औरैया के पास जाते समय आवेदक वाइफ ने दुर्व्यवहार किया और गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी। इन सिचुऎशन्स के आधार पर, आवेदक के लॉयर ने कोर्ट से अपना केस औरैया से इटावा ट्रांसफर करने की रिक्वेस्ट की।
दोनों पार्टनर्स के तर्क:
हस्बैंड के लॉयर ने आवेदक वाइफ द्वारा दिए गए तर्कों का जोरदार विरोध किया और कहा कि डाइवोर्स की पिटीशन पेंडिंग होने पर, आवेदक ने हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 24 के तहत पेन्डेन्ट लाइट मेंटेनेंस और मुकदमेबाजी खर्च के लिए एप्लीकेशन फाइल की है। कोर्ट ने हस्बैंड को वाइफ को मुकदमे के खर्च का भुगतान करने का निर्देश देते हुए वाइफ की एप्लीकेशन को मंजूर कर लिया था।
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हस्बैंड की तरफ से तर्क देते हुए एडवोकेट ने अभिलाषा गुप्ता बनाम हरिमोहन गुप्ता, 2019 के केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया। इस केस में, सुप्रीम कोर्ट ने विचार किया कि जब हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 24 के तहत एक एप्लीकेशन को अनुमति दी गई है और केस सिर्फ फाइनल डिसीज़न के लिए पेंडिंग है, तो किसी अन्य हस्तक्षेप पर विचार नहीं किया जाएगा। इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने हस्बैंड द्वारा फाइल की गयी डाइवोर्स पिटीशन के संबंध में वाइफ द्वारा की गयी ट्रांसफर की पिटीशन में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया।
आवेदक वाइफ के लॉयर इस बात को खारिज करने में विफल रहे कि वाइफ को पहले से ही कोर्ट के आर्डर और निर्देश के तहत हस्बैंड से मुकदमेबाजी का खर्च मिल रहा था। हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 24 के तहत वाइफ को हर महीने मुकदमेबाजी का खर्च प्राप्त होता है। आप लीड इंडिया से ट्रांसफर पिटीशन, डाइवोर्स पिटीशन, आदि को फाइल करने और अच्छे रिजल्ट के लिए भारत के टॉप लॉयर्स प्राप्त कर सकते है।
हस्बैंड के लॉयर ने कहा कि हस्बैंड द्वारा फाइल डाइवोर्स पिटीशन एडवांस स्टेज पर है। इस समय कार्यवाही में किसी भी तरह का हस्तक्षेप केस को प्रभावित करेगा। इस प्रकार हस्बैंड के लॉयर ने एक जवाबी एफिडेविट फाइल किया कि हस्बैंड की तरफ से केस ख़त्म हो गया है और वाइफ ने इस केस में अपने अलावा किसी अन्य गवाह का हवाला नहीं दिया है।
इसके अलावा, हस्बैंड के लॉयर ने कहा कि क्योंकि आवेदक के निवास स्थान और कोर्ट के बीच की दूरी कम है, और हस्बैंड अपनी वाइफ को यात्रा के लिए खर्च देने को तैयार है इसीलिए वाइफ द्वारा दी गयी ट्रांसफर की पिटीशन को मंजूर नहीं दी जानी चाहिए।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्या कहा:
जैसा कि पहले बताया गया है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हस्बैंड द्वारा फाइल डाइवोर्स पिटीशन के एडवांस स्टेज के संबंध में केस ट्रांसफर करने की पिटीशन को अनुमति नहीं दी है। तथापि, हस्बैंड को निर्देश दिया जाता है कि वह सुनवाई की हर डेट पर कोर्ट में उपस्थित होने के लिए वाइफ को 4000/- रुपये दे। अतः ट्रांसफर पिटीशन खारिज की जाती है।
इस केस के संबंध में हाई कोर्ट के फैसले की व्याख्या करके और अभिलाषा गुप्ता के केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा करके, यह माना जा सकता है कि जब हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 24 के तहत एप्लीकेशन फाइल की जाये और मुकदमेबाजी खर्च की अनुमति दी गई हो, तो आवेदक दूरी और आर्थिक परेशानी के आधार पर केस ट्रांसफर नहीं करा सकता है।
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