भारत के उच्चतम न्यायालय को पूर्ण न्याय प्रदान करने की व्यवस्था सौंपी गई है। और अपने इस कर्तव्य के पालन में, इसे एक राज्य में एक उच्च न्यायालय या किसी अन्य अदालत के समक्ष लंबित मामले को भारत के भीतर दूसरे राज्य के न्यायिक न्यायालय में स्थानांतरित करने का अधिकार भी मिला हुआ है। ऐसे में वैवाहिक मामलों का ट्रांसफर किस आधार पर किया जाता है? यह प्रश्न समझना भी ज़रूरी है। आइये आज इस लेख के माध्यम से समझते हैं कि
वैवाहिक मामलों का ट्रांसफर किस आधार पर किया जाता है?
जब सिविल वैवाहिक विवादों की बात आती है तो सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 25 के तहत याचिका दायर की जाती है। वहीं आपराधिक वैवाहिक विवादों को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 406 के तहत न्यायालय द्वारा स्थानांतरित किया जाता है।
भारत की उच्चतम न्यायालय ने एक केस में सिविल वैवाहिक विवाद के स्थानांतरण के लिए बात कही है। डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी बनाम राधाकृष्ण हेगड़े (1990) 1 एससीसी 4 में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 25 के तहत एक मामले को स्थानांतरित करने के लिए सर्वोपरि विचार न्याय की आवश्यकता होनी चाहिए।
इसी तरह विमी माथुर बनाम विकास माथुर, (2004) 13 एससीसी 435 में उच्चतम न्यायालय ने पति द्वारा गाजियाबाद में दायर वैवाहिक मामले को पटना स्थानांतरित करना उचित इसलिए समझा क्योंकि पक्षकारों के मध्य दो अन्य मामले पहले से ही पटना में लंबित थे।
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न्यायालय द्वारा कुछ आधारों पर विचार करने के पश्चात ही किसी वैवाहिक मामले का स्थानन्तरण किया जाता है। उन आधारों का समझा जाना भी आवश्यक है। आइये जानते हैं कि वे आधार कौन से हैं जिनपर वैवाहिक मामलों का ट्रांसफर किया जाता है?
- यदि पत्नी के पास एक निश्चित आयु से कम के बच्चे की कस्टडी हो तो ऐसे मामले में न्यायालय द्वारा मामले के ट्रांसफर पर विचार किया जाता है। अनुराधा समीर वेन्नांगोट बनाम मोहनदास समीर वेन्नांगोट के मामले में , (2015) 16 एससीसी के मामले में सुप्रीम कोर्ट और मुंबई कोर्ट के समक्ष दायर आवेदन में सुप्रीम कोर्ट को पता चला कि पत्नी एक जानलेवा बीमारी से पीड़ित थी। अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को हैदराबाद स्थानांतरित कर दिया और पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी को उसके इलाज के खर्च को पूरा करने के लिए पांच लाख रुपये का भुगतान करे और पत्नी के ठीक होने के बाद हैदराबाद की अदालत ही तलाक के मामले का फैसला करेगी।
- यदि पत्नी किसी प्रकार की गंभीर बीमारी, दिव्यांगता आदि के कारण यात्रा करने में असमर्थ हो तो न्यायालय द्वारा मामले का स्थानन्तरण करने पर विचार किया जाता है।
- यदि पत्नी ने उस शहर में भी मामले को दर्ज कराया हो जहां वह चाहती है कि मामले का ट्रांसफर हो।
- जब पति या पत्नी में से किसी एक ने इस बात की ओर इशारा करते हुए प्रेरक साक्ष्य दिखाए हों कि जिस स्थान पर मुकदमा होना है वहां गंभीर खतरा है तो न्यायालय द्वारा वैवाहिक मामलों के ट्रांसफर पर विचार किया जाता है।
- जब पार्टियों को इस तरह के हस्तांतरण पर कोई आपत्ति नहीं हो तो न्यायालय द्वारा मामले का स्थानांतरण संभव होता है।
सर्वोच्च न्यायालय को संविधान द्वारा अनुच्छेद 139 ए (2) के तहत मामलों को स्थानांतरित करने की शक्ति भी प्रदान की गई है।और मामलों को स्थानांतरित करने के लिए वैधानिक अधिकार क्षेत्र भी प्रदान किया गया है। न्यायालय को यह भी अधिकार है कि न्यायालय के पास स्थानांतरण की मांग करने वाली याचिका को अनुमति देने या प्रार्थना को अस्वीकार करने की शक्ति है। और निश्चित रूप से, यह मामले की योग्यता और न्यायालय की संतुष्टि पर विचार करने पर ही सम्भव है।
भारत की उच्चतम न्यायालय ने गण सरस्वती बनाम एच. रघु प्रसाद के मामले में न्याय के हित को आगे बढ़ाने के लिए वैवाहिक कार्यवाहियों पर ‘फोरम नॉन कन्वेंशन’ के सिद्धांत को लागू किये जाने की बात कही थी। साथ ही इसमें कहा गया है कि अदालतें आमतौर पर पत्नियों द्वारा दायर स्थानांतरण याचिकाओं की अनुमति देती हैं ताकि उन्हें असमर्थता के कारण न्याय से वंचित न किया जाए।
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