पिटीशन वापस लेने पर हाईकोर्ट द्वारा 1 लाख रूपए का जुर्माना लगाया गया।

पिटीशन वापस लेने पर हाईकोर्ट द्वारा 1 लाख रूपए का जुर्माना

झारखण्ड में एक रास्ते पर चल रहे विवाद की सुनवाई करते समय झारखण्ड हाई कोर्ट ने पिटीशन फाइल करने वाली महिला पर 1 लाख रूपये का जुर्माना लगा दिया। अब आप सोच रहे होंगे की भला पिटीशन फाइल करने पर जुर्माना क्यों लगाया गया है। दरअसल, यह जुर्मना इसलिए लगाया गया था क्योंकि बसंती कच्छप नाम की एक पिटीशनर ने झारखण्ड हाई कोर्ट से अपने पुराने आदेशों को वापस लेने की बार-बार गुहार की थी।

केस क्या था?

झारखण्ड में हिनू पोखर टोली के अंदर रास्ता ना दिए जाने की शिकायत लेकर, पोखर टोली नाम की बस्ती की तरफ से बसंती कच्छप नाम की महिला ने कोर्ट  में पिटीशन फाइल की थी। इस केस पर झारखंड हाई कोर्ट के जज एसके द्विवेदी द्वारा सुनवाई की जा रही थी। दरअसल, कोर्ट पहले हो चुकी सुनवाई में रांची नगर निगम को बस्ती वालों को रास्ता देने के आदेश जारी कर चुका था और आदेश का पालन करते हुए नगर निगम द्वारा दीवार को तोड़कर एक 10 फीट चौड़ा रास्ता दे दिया गया था। 

इस आदेश का पालन हो जाने और रास्ता मिल जाने के बाद पिटीशनर बसंती कच्छप दोबारा यह मांग की गयी कि हाईकोर्ट के द्वारा दिया गया यह आदेश सही नहीं है और हाई कोर्ट द्वारा अपने इस आदेश को वापस ले लिया जाए। साथ ही, पिटीशनर बसंती कच्छप ने इस केस में हस्तक्षेप/इंटरवेंशन पिटीशन फाइल करते हुए रस्ते वाली उस जमीन पर अपना मालिकाना हक़ होना का दावा भी किया।

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पिटीशनर महिला की तरफ से यह तर्क दिया गया कि यह जमीन पाहन की भूमि है, मतलब उस जमीन पर गांव में रहने वाले लोग पूजा आदि करते हैं और निजी य पर्सनल जमीन से आम रास्ता नहीं निकाला जा सकता है।

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इस बात पर कोर्ट द्वारा तर्क दिया गया था कि इस केस की शुरुवात में ही कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह इस जमीन पर किसका मालिकाना हक है इस बात का फैसला नहीं कर रहे है। इस फैसले के लिए सभी पार्टियों को सक्षम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए। लेकिन फिर भी प्रार्थी बसंती कच्छप द्वारा बार- बार कोर्ट का आदेश वापस लेने का आग्रह किया जा रहा था।

साथ ही साथ कोर्ट ने पिटीशनर बसंती कच्छप के वकील पर भी गंभीर टिप्पणी करते हुए वकील के व्यवहार को अनुचित माना और केस को झारखण्ड बार कॉउंसिल के पास ट्रांसफर करने का आदेश दिया। 

कोर्ट ने कहा कि प्रार्थी बसंती कच्छप 1953 से लगातार इस रास्ते को यूज़ या इस्तेमाल कर रही हैं। एसएआर कोर्ट के अनुसार 20 साल से ज्यादा किसी भी रास्ते का उपयोग किये जाने पर नगर निगम उसे एक गली या आम रास्ता घोषित कर देता है। हालाँकि प्रार्थी बसंती कच्छप ने फिर कहा कि संविधान के नियम के अनुसार अनुसूचित जिले में नगर निगम अवैध या इललीगल संस्था है। साथ ही प्रार्थी ने इस बात पर 2008 में हाई कोर्ट की बेंच के एक आदेश का हवाला भी दिया।

कोर्ट का फैसला 

इस पर कोर्ट ने रांची नगर निगम की बात को ही सही पाया और हस्तक्षेप कर्ता बसंती कच्छप की तरफ से बार- बार आदेश वापस लेने की ज़िद किये जाने पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए उन पर एक लाख रूपये का जुर्माना लगा दिया। इसके साथ साथ प्रार्थी के वकील के व्यवहार को अनुकूल या सही ना समझते हुए कोर्ट ने इस केस को बार काउंसिल में ट्रांसफर भी कर दिया।

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