दोबारा रिमांड के आदेश देना केस को लंबा खींचता है।

दोबारा रिमांड के आदेश देना केस को लंबा खींचता है।

हाल ही में यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में दी । उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द करने का आदेश दिया था जिसमें हाईकोर्ट द्वारा रिमांड को लेकर एक आदेश दिया गया था । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रीमांड का आदेश मुकदमे को और अधिक लंबा खींचता है।

अपीलीय अदालत की शक्ति क्या है ?

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता CrPC  1973 के अनुसार किसी भी मामले के पक्षकारों को अपील करने का अधिकार प्राप्त है । कोई भी व्यक्ति जिसे लगता है कि वो आरोपी नहीं है , अदालत में अपील कर सकता है । अपील करने वाले अदालत के पास निम्नलिखित शक्तियां होती हैं –

1- दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील की दशा में अपीलीय न्यायालय के पास शक्तियां 

यदि किसी अभियुक्त पर निचले न्यायालय के द्वारा दोष सिद्ध हो चुका है । तब भी भारत की दंड संहिता उसे यह अधिकार देती है कि वो अग्रिम कोर्ट में अपील कर सकता है ।

ऐसी स्थिति में जिस कोर्ट में अपील याचिका दायर की गई है उसके पास यह अधिकार होता है कि दोष सिद्ध व्यक्ति को जांच और उचित तर्क के आधार पर जांच मुक्त कर दे । न्यायालय के इस अधिकार को धारा 374 के अंतर्गत बताया गया है।

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2- दंड के आदेश को बढ़ाने के लिए की गयी अपील की दशा में अपीलीय न्यायालय को प्राप्त शक्तियां-

यदि कोई पक्ष जिसे लगता है कि न्यायालय ने उसे न्याय तो दिया लेकिन आरोपी द्वारा किए गए अपराधों के आधार पर उचित दंड न देकर कम दंड दिया है तो ऐसी दशा में भी भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता  386 के आधार पर भारत का संविधान उसे अग्रिम कोर्ट में अपील करने का अधिकार देता है जिसके माध्यम से परिवादी व्यक्ति आरोपी के दंड में और अधिक वृद्धि करने की अपील अग्रिम कोर्ट में कर सकता है ।

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ऐसी स्थिति में उच्च न्यायालय अथवा अग्रिम न्यायालय के पास यह अधिकार होता है कि वो निष्कर्ष आदेश को यथास्थिति के आधार पर परिवर्तित कर सकता है। ऐसी स्थिति में न्यायालय निष्कर्ष आदेश में दिए गए दंड को कम  कर सकता है ,पूरी तरह दोष मुक्त कर सकता है तथा उसमें वृद्धि भी कर सकता है । यह पूरी तरह से न्यायालय के स्वविवेक , न्यायालय में प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर निर्भर करता है।

3-दोषमुक्ति के विरुद्ध अपील में प्राप्त अपीलीय न्यायालय को शक्तियां

यदि किसी भी मामले में न्यायालय द्वारा आरोपी को दोष मुक्त सिद्ध कर दिया जाता है तो ऐसी स्थिति में अपीलीय न्यायालय में अपील की जा सकती है तथा न्यायालय उस पर कार्रवाई का आदेश दे सकता है ।

ऐसी स्थिति में दोषमुक्ति के विरुद्ध अपीलीय न्यायालय के पास प्राप्त शक्तियों के आधार पर न्यायालय दोषमुक्त व्यक्ति के खिलाफ जांच का आदेश दे सकता है। उसे दोष सिद्ध घोषित कर सकता तथा उसके दोषों में वृद्धि भी कर सकता है । लेकिन यदि न्यायालय में प्रस्तुत किए गए साक्ष्य उस आरोपी को दोष मुक्त ही करार देते मिलेंगे तो न्यायालय पुनः उसे दोष मुक्त भी शामिल कर सकता है।

रिमांड का आदेश मुकदमे बाजी पर क्या असर डालता है?

इस विषय पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जारी एक टिप्पणी में कहा कि रिमांड का आदेश मुकदमे बाजी को और अधिक लंबा खीचता है।

ट्रायल कोर्ट रिमांड का आदेश कब देती है?

ट्रायल कोर्ट के रिमांड के आदेश को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अपीलीय अदालत द्वारा मामले को वापस भेजने का आदेश तभी पारित किया जा सकता है, जब निचली अदालत किसी मुद्दे पर निष्कर्ष निकालना बंद कर दे या मामले के संबंध में महत्वपूर्ण मुद्दे को खुला छोड़ कर केवल प्रारंभिक मुद्दे पर मुकदमे का फैसला करे।

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