मजिस्ट्रेट द्वारा पूछताछ करने की प्रक्रिया किस प्रकार है?

मजिस्ट्रेट द्वारा पूछताछ करने की प्रक्रिया किस प्रकार है?

किसी भी वाद विवाद को जिसमें दंड दिया जा सकता हो ऐसे मामलों में न्यायालय तब तक कोई सुनवाई नहीं प्रारंभ करता है जब तक कि पुलिस द्वारा उस मामले में अन्वेषण की गई रिपोर्ट को न्यायालय के सामने न प्रस्तुत किया जाए । यदि किसी मामले में पुलिस द्वारा खोज बीन चल रही है तो न्यायालय तब तक अपनी कार्रवाई प्रारंभ नहीं करता है जब तक कि पुलिस का अन्वेषण पूरा न हो जाए।

हालांकि ऐसे किसी भी मामले में पुलिस द्वारा खोज बीन करने के लिए भी भारतीय दंड संहिता 1973 की धारा 167 के अनुसार एक निश्चित समयावधि दी जाती है । जिसके भीतर पुलिस को उस मामले से संबंधित जांच को पूरा करना होता है । पुलिस द्वारा इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष पेश होने के बाद से ही न्यायालय की विधिक कार्यवाही आगे बढ़ती है।

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पूछताछ की क्या प्रक्रिया होती है

मजिस्ट्रेट द्वारा किसी भी आपराधिक मामले को संज्ञान में लेकर आदेशिका जारी की जाती है। इसके बाद शिकायत को अदालत स्वीकार कर लेती है तो संबंधित मामले की सुनवाई शुरू हो जाती है । इसके बाद दोनों पक्षों को सुनवाई और पूछताछ प्रक्रिया में शामिल किया जाता है ।

मजिस्ट्रेट द्वारा पालन की जाने प्रक्रिया पूछताछ में में क्या होती है । 

किसी मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने के बाद अभियुक्त को एक निश्चित समय पर न्यायालय में पेश होने का आदेश जारी किया जाता है । यह आदेशिका मजिस्ट्रेट द्वारा ही जारी की जाती है ‌। आसान भाषा में इसे समन या वारंट भी कह सकते हैं ।

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लेकिन मजिस्ट्रेट को समन या वारंट जारी करने से पहले अपराध को संज्ञान में लेना आवश्यक है । इसका प्रावधान धारा 204 में उल्लेखित है ।  कोई मजिस्ट्रेट मामले को संज्ञान में लिए बिना  किसी भी अभियुक्त को वारंट या समन जारी नहीं कर सकता है । न्याय संहिता के अनुसार मजिस्ट्रेट को दोनों पक्षकारों को सुनना चाहिए । 

क्या मजिस्ट्रेट द्वारा जारी की गई आदेशिका रद्द भी की जा सकती है ?

यदि मामले की सुनवाई करते समय मजिस्ट्रेट को लगता है कि यह मामला सुनवाई योग्य नहीं है तो ऐसे मामलों में आदेशिका को रद्द भी किया जा सकता है। आदेशिका को रद्द करने के पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण हो सकते हैं जैसे –

  • यदि प्रार्थी द्वारा दी गई शिकायत का सच से कोई वास्ता न हो अर्थात बेतुकी हो । 
  •  ऐसा लगे कि पूर्व में जारी की गई आदेशिका में मजिस्ट्रेट ने महज औपचारिकता निभाई है । मामले पर गहन विचार विमर्श नहीं किया गया है ।
  • शिकायत कर्ता तथा साक्ष्य के द्वारा किसी अपराध की पुष्टि न हो पाने की स्थिति में भी आदेशिका को रद्द किया जा सकता है।
  • जहां ऐसा लगे कि मामले की प्रकृति अपराधिक की जगह सिविल हो ।

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