जब किसी अपराधात्मक मामले में पूछताछ होती है, तो मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जाता है। निम्नलिखित प्रक्रिया में सामान्य रूप से पांच चरण होते हैं:
अभियोग प्रस्तुत करना
पहला चरण है अभियोग का प्रस्तुत करना। अभियोग प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति प्रमाणों, गवाहों और साक्ष्य के साथ मजिस्ट्रेट के सामने जाता है और अपराध के विवरण देता है।
गिरफ्तारी आदेश
अगर मजिस्ट्रेट को अभियोग प्रस्तुत करने के बाद वह यकीनी साक्ष्य और प्रमाणों को मान्यता देता है, तो वह एक गिरफ्तारी आदेश जारी कर सकता है। इस आदेश के आधार पर अभियुक्त को गिरफ्तार किया जा सकता है।
क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?
पूछताछ
तृतीय चरण में, मजिस्ट्रेट अभियुक्त के सामने प्रश्न पूछता है और उसकी पूछताछ करता है। इसमें गवाहों, साक्ष्य और प्रमाणों की जांच और सबूतों के साथ संबंधित तथ्यों की पड़ताल शामिल होती है।
जमानत
यदि मजिस्ट्रेट को अभियुक्त को जमानत देने के बारे में प्राथमिक रूप से संदेह होता है, तो उसे जमानत या बिना जमानत के निर्धारित कर सकता है। जमानत देने की स्थिति में अभियुक्त उपायुक्त राशि जमा करता है जिसे वह निर्धारित समय पर वापस कर सकता है।
निर्णय
पूछताछ के बाद, मजिस्ट्रेट अभियुक्त की पूछताछ और प्रमाणों का समीक्षण करता है। फिर उसे फैसला देना होता है कि क्या अभियुक्त को निर्दोष या दोषी ठहराया जाएगा और क्या उसे मुकदमा चलाने की आवश्यकता है। इस निर्णय के आधार पर मजिस्ट्रेट एक आदेश जारी करता है जिसमें सजा, जमानत, अदालत में उपस्थित होने की आवश्यकता आदि का निर्देश हो सकता है।
कार्यपालक दंडाधिकारी के लिए नियमावली क्या है
कार्यपालक दंडाधिकारी (जो भी इस पद को भारत में शासित व एकीकृत प्रशासनिक भाषा के रूप में जाना जाता है) के लिए नियमावली विभिन्न अधिकारों, कर्तव्यों, शास्त्रीय प्रक्रियाओं और कार्यविधियों को संगठित और नियमित करती है। नियमावली की संदर्भित जानकारी आमतौर पर भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) और अन्य संबंधित कानूनी नियमों के अंतर्गत प्राप्त की जा सकती है।
कार्यपालक दंडाधिकारी की नियमावली कई मुख्य विषयों पर विवरण प्रदान कर सकती है, जैसे कि अपराध और दंड संबंधी विधियों, जाँच और तहकीकात संबंधी प्रक्रियाएं, गिरफ्तारी और जमानत संबंधी नियम, अदालती प्रक्रिया, विधिक संग्रहालय आदि।
यह नियमावली अधिकारियों के कार्यकाल, शक्तियों, प्राधिकारों, सुरक्षा आदि से संबंधित भी हो सकती है।
नियमावली विभिन्न कानून के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा तैयार की जाती है और अधिकारियों के लिए उपयोगी दिशानिर्देश प्रदान करती है। यह नियमावली दंडाधिकारियों की संगठनात्मक और व्यवस्थात्मक क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिए निर्मित की जाती है और उन्हें कानूनी प्रक्रियाओं को सुगम, सुविधाजनक और निष्पक्ष ढंग से नियंत्रित करने में मदद करती है।
ऐसी ही लीगल जानकारी के लिए जुड़े रहिए लीड इंडिया कंपनी से ।