आम तौर पर लोग झूठ बोलने में नहीं डरते। छोटे-मोटे झूठ तो हर कोइ बिंदास होकर बोलता है। लेकिन अगर अदालत में झूठ बोल दिया जाए तो इसकी बाकायदा सजा होती है।
जब भी कोइ अदालत में कुछ स्टेटमेंट देता है तो उसे बयान कहते हैं। इसे एफिडेविट पर दिया जाता है। एफिडेविट देने के लिए नोटरी या फिर ओथ कमिश्नर के सामने शपथ ली जाती है। शपथ में कहा जाता है कि उसका स्टेटमेंट यानी बयान सत्य है।
इसके बाद आपके उस स्टेटमेंट या हलफनामे को नोटरी कमिश्नर अटेस्ट करता है। इसके बाद ही इस ऐफिडेविट या शपथ पत्र को प्रयोग किया जाता है।
इसलिए जब भी कहीं स्टेटमेंट या हलफनामा दें तो जांच लें कि जो कुछ भी लिखा है वो सब सही है या नहीं। दी गयी जानकारीयों में कुछ भी गलत नहीं होना चाहिए।
क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?
अगर आपसे शपथ पत्र में गलती चली जाती है या आप जानबूझ कर गलत जानकारी देते हैं तो ये ओथ एक्ट का उल्लंघन होता है। ओथ एक्ट 1969 के अनुसार यह माना जाता है कि बयान देने वाले ने जो कुछ भी कहा है वो सच है। इसलिए इसका जिम्मेदार भी वो खुद होता है।
अगर कोई जानबूझकर झूठा एफिडेविट यानी शपथपत्र देता है तो उसके खिलाफ लीगल एक्शन लिया जाता है।
एक और जरूरी बात अगर कोई शख्स दूसरे किसी व्यक्ति के दिए गए एफिडेविट पर साइन करता है तो इसे धोखाधड़ी माना जाता है। इसके लिए झूठे साइन करने वाले व्यक्ति के ऊपर आईपीसी की धारा-419 के तहत पहचान बदलकर धोखा देने का मुकदमा चलता है।
अगर कोई व्यक्ति अदालत में झूठा एफिडेविट पेश करता है तो उसके खिलाफ सीआरपीसी की धारा 340 के तहत केस होता है। झूठा शपथपत्र देने के मामले में यदि दोष सिद्ध होता है तो 7 साल की सजा होती है।