कोर्ट के सामने किसी भी स्पेशल केस की हियरिंग या सुनवाई होने से पहले प्री-ट्रायल प्रोसीजर को फॉलो किया जाता है। प्री-ट्रायल प्रोसीजर में पुलिस इन्वेस्टीगेशन शामित होता है, जो केस से रिलेटीड प्रूफ़ और एविडेंसीस को इकठा करने के लिए की जाती है। एक इन्वेस्टीगेशन के दो जरूरी अस्पेक्ट्स होते है –
पहला, आरोपी को ढूंढ़ना और उसके अगेंस्ट आरोप फाइल करना और दूसरा, केस की इन्वेस्टीगेशन के लिए जरूरी जगहों की तलाशी लेकर चीजों को जब्त करना शामिल है।
पुलिस द्वारा गवाह की एग्जामिनेशन –
- सीआरपीसी के सेक्शन 161 के तहत, इन्वेस्टीगेशन करने वाले पुलिस ऑफ़िसर विटनेस को इग्ज़ामिन कर सकते है और लिखित रूप में बयान दर्ज कर सकते हैं। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इन्वेस्टीगेशन ऑफ़िसर ऐसे बयान दर्ज करने में देरी ना करें।
- बालकृष्ण स्वैन v उड़ीसा राज्य (1971) के केस में, बिना किसी वैलिड रीज़न के 10 दिनों की देरी हुई और बयानों में कुछ विरोध पाए गए थे। इन्वेस्टीगेशन में पाए गए एविडेंस भी शक से भरे हैं। इन्वेस्टीगेशन ऑफ़िसर से इस तरह की देरी के बारे में पूछा जाना चाहिए।
- [रणबीर v पंजाब राज्य (1973] के केस में यह माना गया कि अगर इन्वेस्टीगेशन में देरी क्यों हुई यह एक्सप्लेन नहीं की जाती है, तो ऐसे केस में, सबूतों की सच्चाई पर सवाल उठाया जाना चाहिए। साथ ही [वाशेश्वर नाथ चड्डा के केस में भी) v राज्य (1993)], कोर्ट द्वारा यह देखा गया कि कुछ घंटों की देरी को स्वीकार किया जा सकता है बशर्ते कि यह साबित हो जाए कि इस तरह की देरी जानबूझकर की गई थी ताकि आरोपी को अपना केस बनाने का मौका दिया जा सके।
- किसी केस की इन्वेस्टीगेशन करने वाला पुलिस ऑफ़िसर को विटनेस के बयान को लिखित रूप में फाइल करना जरूरी है, लेकिन यह ऑफ़िसर पर डिपेंड करता है कि वह इस तरह के बयान को फाइल करता है या नहीं। अगर विटनेस का बयान फाइल नहीं किया जाता है, तो इस फैक्ट को कोर्ट द्वारा ध्यान में रखा जाएगा, जैसा कि विक्टिम ने अपने पिछले बयान का विरोध किया था, पीड़ित के ऐसे बयान पर सवाल उठाया जा सकता है।
- साथ ही, एक मजिस्ट्रेट एक विटनेस की इन्वेस्टीगेशन करने एप्लीकेशन से मना नहीं कर सकता, जिसने पहले सीआरपीसी के सेक्शन 161 के तहत अपना बयान फाइल नहीं किया है, बयान तब भी दर्ज किया जा सकता है जब मजिस्ट्रेट को पता चलता है कि रिलेटेड पुलिस ऑफ़िसर ने सेक्शन 173 के तहत अपना जिम्मेदारी पूरी नहीं की है।
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विटनेस की एग्जामिनेशन की प्रोसेस –
- [13] यह माना गया कि अगर विटनेस ने अपने बयान में सुधार करने का आरोप लगाया है क्योंकि उसने सीआरपीसी के सेक्शन 161 के तहत पुलिस को वही बयान नहीं दिया है, तो विटनेस के इस तरह की हरकत को बेहतर बयान की चूक कहा जाएगा। यह एक विरोध तभी हो सकता है जब इसे लीगली प्रूफ़ किया जा सके और आरोपी द्वारा यूज़ किया जा सके।
कंट्राडिक्शन –
- अगर विटनेस कोर्ट के सामने एक निश्चित फैक्ट के बारे में बयान देता है, जबकि केस के सामने उसको मेंशन नहीं करता है, तो कोर्ट और पुलिस के सामने उसका बयान विरोधाभासी/कंट्राडिक्शन हो जाता है। इस प्रकार पुलिस के सामने उनके बयान का यूज़ कोर्ट के सामने उनकी गवाही का विरोध करने के लिए किया जा सकता है।
- अप्पाभाई v गुजरात राज्य के केस में, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सबूतों को ऑब्ज़र्व करते हुए कोर्ट को छोटी-छोटी दिक्कतों को ज्याद अबधावा नहीं देना चाहिए, अगर ऐसे मैटर्स अभियोजन के बेसिक वर्ज़न को एफेक्ट नहीं करते हैं।
पुलिस इन्वेस्टीगेशन के दौरान दिए गए बयान की एविडेंटरी वैल्यू –
- पुलिस को दिया गया स्टेटमेंट शपथ के तहत नहीं है और ना ही क्रॉस-एग्जामिनेशन द्वारा इसको एग्जामिन किया गया है, इसलिए लॉ ऑफ़ एविडेंस के अनुसार, इस तरह के स्टेटमेंट को वास्तविक सबूत/सब्सटांटीवे एविडेंस नहीं माना जाता है।
हियरिंग के दौरान विटनेस की कॉन्ट्रडिक्ट करने के अलावा सेक्शन 161 के तहत दिए गए स्टेटमेंट का कहीं भी यूज़ नहीं किया जा सकता है।
लीड इंडिया एक्सपेरिएंस्ड लॉयर्स प्रदान करता है जिनके पास क्रिमिनल ओफ्फेंसेस, सिविल सूट, फॅमिली लॉ आदि से रिलेटेड केसिस को सॉल्व करने का एक्सपीरियंस है।