दूर रहने वाले रिश्तेदारों पर भी वाइफ को परेशान करने का केस फाइल: बॉम्बे हाई कोर्ट

दूर रहने वाले रिश्तेदारों पर भी वाइफ को परेशान करने का केस फाइल: बॉम्बे हाई कोर्ट

जस्टिस सुनील शुक्रे और गोविंद सनप की डिवीज़न बेंच ने, राजेश हिम्मत पुंडकर vs महाराष्ट्र राज्य के केस में फाइल की गयी एक पिटीशन पर सुनवाई करते हुए हस्बैंड के रिश्तेदारों के अगेंस्ट सेक्शन 498 ए के तहत फाइल की हुई एफआईआर को रद्द करने से मना कर दिया। ऐसा यह देखते हुए किया गया कि कई बार दूर-दराज में रहने वाले रिश्तेदार भी हस्बैंड-वाइफ के बीच के मैटर्स में दखल देकर वाइफ को परेशान करते हैं। रिश्तेदारों के अगेंस्ट फाइल की गयी एफआईआर को रद्द करने के लिए हस्बैंड, उनके माता-पिता और भाई-बहनों के द्वारा पिटीशन फाइल की गई थी, जिसे कोर्ट ने रद्द करने से मना कर दिया।

हस्बैंड के रिश्तेदारों ने यह तर्क दिया गया कि हस्बैंड अकोला डिस्ट्रिक्ट में रहता था। लेकिन उसके पेरेंट्स और एक मैरिड बहन अमरावती में रहते थे, जबकि उसका छोटा भाई पुणे शहर में रहता था। इनमे से कोई भी कपल के साथ नहीं रहते थे और इसलिए उन पर लगाए गए आरोप सही नहीं हो सकते है।

फैक्ट्स-

इस कपल ने साल 2007 में शादी की थी और उनके तीन बच्चे है। साल 2017 में वाइफ को अपने हस्बैंड के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के बारे में पता चला, जब उसने अपने हस्बैंड के अफेयर का विरोध किया, तो हस्बैंड ने वाइफ के साथ मारपीट करना शुरू कर दिया। 

वाइफ ने एफआईआर द्वारा रिलेटिव्स के बारे में कोर्ट को बताया कि जब उसने रिलेटिव्स को अपने हस्बैंड के अफेयर के बारे में बताया, तो रिलेटिव्स भी वाइफ के साथ गाली-गलौच करने लगे और उससे 50 हजार रुपये दहेज की भी मांग करने लगे।

कोर्ट का फैसला-

8 जून को पास हुए आर्डर में कोर्ट ने दो पॉइंट्स के बेस पर तर्क को मानने से मना कर दिया-

सबसे पहली बात यह है कि जब तक साबित ना हो जाये तब तक कानून के तहत यह नहीं माना जा सकता कि दूर रहने वाले रिश्तेदार निर्दोष या बेकसूर हैं। कई बार ऐसे रिश्तेदार जो कपल से फिजिकली बहुत दूर रहते है, लेकिन दूर रहते हुए भी वह कपल के मैटर्स में इंटरफेयर करते है। कभी-कभी यह इंटरफेयरेंस इस हद तक बढ़ जाता है कि यह उत्पीड़न/हरस्मेंट की केटेगरी में आ जाता है।

इस प्रकार, फॅमिली मेंबर्स कपल के साथ एक घर में या एक शहर में नहीं रह रहे हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि उनके ऊपर लगाए गए सभी आरोप गलत हैं। कोर्ट ने यह देखा कि ससुराल वालों के अगेंस्ट कोई अस्पष्ट बयान नहीं दिया गया है, लेकिन स्पेसिफिक रोल्स के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया गया है।

इसलिए कोर्ट ने एफआईआर रद्द करने से मना कर दिया।

सेक्शन 498 ए-

साल 1983 में महिलाओं को उनके हस्बैंड और ससुराल वालों द्वारा क्रूरता का शिकार होने से बचाने के लिए सेक्शन 498 ए- इंट्रोडयूस की गई थी।

सेक्शन 498 ए के तहत, किसी महिला के हस्बैंड या हस्बैंड के रिलेटिव्स ने वाइफ के साथ क्रूरता की: 

कोई भी व्यक्ति जो महिला का हस्बैंड या हस्बैंड का कोई रिलेटिव होने के नाते, महिला के साथ क्रूरता करता है, उसे तीन साल तक की जेल की सज़ा और फाइन के द्वारा पनिश किये जाने का प्रोविज़न है।

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क्रूरता का मतलब है:

इस सेक्शन के तहत क्रूरता का मतलब होता है –

कोई भी ऐसा काम या नेचर जो महिला को आत्महत्या/सुसाइड करने के लिए उकसाता है।

कोई ऐसा काम जो महिला के लाइफ, बॉडी पार्ट या हेल्थ (मानसिक/शारीरिक) के लिए गंभीर चोट या खतरा पैदा कर सकता है।

महिला को कोई इल-लीगल डिमांड को पूरी करने के लिए मजबूर करना जैसे – कोई प्रॉपर्टी या कीमती चीज़ की मांग करना। 

गलत डिमांड्स के पूरा ना होने पर महिला को प्रताड़ित करना। 

प्रोविज़न का उद्देश्य:

आईपीसी के सेक्शन 498 ए को महिलाओं के अगेंस्ट होने वाले उत्पीड़न को रोकने के लिए लाया गया था। इस सेक्शन के तहत, ऐसे हस्बैंड और ससुराल वाले जो महिलाओं को दहेज के लिए परेशान करते है, उनके लिए दंड के प्रोविज़न्स है। 

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