भारत में दहेज प्रथा एक बुराई बनकर उभर रही है। दहेज़ प्रथा का मतलब, पिता को अपनी बेटी की विदाई के समय उसे पैसे और गिफ्ट्स देने होते है। आजकल, लड़के वाले गाडी, ज्वेल्लरी आदि की मांग करते है। और मांग पूरी ना होने पर लड़की पर क्रूरता करते है। सरकार भी इसी जद्दो-जहत में लगी हुई है कि लड़कियों को इन बुराइयों से छुटकारा दिलाया जा सके।
बेंच का नया आर्डर:-
हालही में दहेज उत्पीड़न को लेकर एक एहम फैसला सुनाया गया था। यह आर्डर जज अशोक भूषण और जज केएम जोसेफ की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट में चल रहे एक केस के दौरान सुनाया था।
कोर्ट के आर्डर में यह कहा कि “भारतीय दंड सहिता की धारा 498A के तहत ये कहीं भी मेन्शन नहीं किया गया है कि अपने ऊपर हो रहे दहेज़ उत्पीड़न की एफआईआर पीड़ित महिला द्वारा ही की जानी चाहिए। इसलिए अब दहेज़ पीड़िता के बिहाल्फ पर उसका कोई भी फैमिली मेंबर या रिश्तेदार पीड़िता के हस्बैंड और ससुराल वालों के खिलाफ एफआईआर फाइल कर सकता है।”
दहेज निषेध अधिनियम, 1961:-
भारत में पहले भी कई बार दहेज़ उत्पीड़न से लड़कियों को बचाने के लिए कानून बनाये गए थे। इसकी सबसे पहली कोशिश “1961 में दहेज़ निषेध अधिनियम” से हुई थी। आईये देखते है इस कानून के तहत दहेज़ के लिए क्या-क्या प्रावधान बनाये गए है।
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दहेज निषेध अधिनियम के प्रावधान:-
(1) आईपीसी के सेक्शन 498-ए के तहत अगर हस्बैंड या ससुराल वाले, वाइफ या उसकी फैमिली से दहेज़ मांगते है, तो उन्हें 3 साल की जेल की सज़ा और जुर्माना भरना पड़ सकता है।
(2) सेक्शन 406 के तहत, अगर हस्बैंड या ससुराल वाले वाइफ का स्त्रीधन उसे नहीं देते है, तो भी उन्हें जेल और जुर्माना हो सकता है।
(3) इस कानून के तहत दहेज़ लेना या देना दोनों कानूनन अपराध है। अगर कोई व्यक्ति दहेज़ का लेन-देन करता है या उसमे सहयोग करता है, तो उसे 5 साल की जेल की सजा और 15,000 रुपए जुर्माना हो सकता है।
(4) अधिनियम के अनुसार, अगर किसी लड़की की उसकी शादी के सात साल के अंदर असामान्य परिस्थितियों में मृत्यु हो जाती है। और जांच में साबित हो जाता है कि मृत्यु से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया है, तो आईपीसी के सेक्शन 304-बी के तहत लड़की के हस्बैंड और ससुराल वालों को सात साल से लेकर जिंदगी भर की जेल हो सकती है।
यह कानून सरकार ने बहुत उम्मीद से बनाया था कि कानूनों के डर से लड़कियों के हस्बैंड और ससुराल वाले उन्हें दहेज़ के लिए परेशान नहीं करेंगे। लेकिन अभी भी हमारे देश में कई महिलाओं के साथ सिर्फ दहेज़ के लिए अत्याचार, मारपीट, और उनकी हत्या तक कर दी जाती है। दहेज प्रथा समाजिक तौर पर एक ऐसी कुरीति बन गयी है, जिसको त्याग देना ही सबके लिए अच्छा है।