हाल ही में केरल हाईकोर्ट ने स्कूल में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न पर चिंता जाहिर करते हुए शिष्टाचार और उचित नैतिकता सिखाने की समाज की जिम्मेदारी का बोध कराते हुए टिप्पणी किया कि आपस में अच्छे व्यवहार और शिष्टाचार का पाठ हमारे विद्यालयों में सिलेबस का हिस्सा होना चाहिए और कम से कम प्राथमिक स्तर तक के बच्चों को पूर्ण रूप से शिष्टाचार सिखाने की जिम्मेदारी शिक्षकों के साथ-साथ समाज की भी होनी चाहिए।
केरल हाईकोर्ट के जस्टिस रामचंद्रन ने कहा कि वर्तमान समय में पुरुषत्व की परिभाषा बदल चुकी है । पुराने समय में सेक्सिज्म को पुरुषत्व से आंका जाता था लेकिन अब यह बदल रहा है और जहां कहीं भी कभी नहीं बदल रहा है वहां ऐसी परिभाषाओं को बदलने की जरूरत है ।
उन्होंने कहा कि सेक्सिज्म “कूल” नहीं है। किसी भी पुरुष की शक्ति का प्रदर्शन तब माना जाता है जब वह किसी महिला का सम्मान करना प्रारंभ करता है ।
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जस्टिस रामचंद्रन ने कहा कि यह हमारे समाज को और शिक्षकों को बताने की जरूरत है कि जब तक कोई भी महिला या लड़की पूरी तरह से सहमत न हों उसे हाथ भी नहीं लगाया जा सकता है । उन्होंने कहा कि हमें अपने घरों में अपने बच्चों के अंदर स्वार्थ और नीचता की दुर्भावना की जगह विनम्रता का पाठ पढ़ाना चाहिए।
दूषित शिक्षा प्रणाली
न्यायालय ने सामाजिक परिवेश को पूर्णतः स्वच्छ और स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी समाज पर बताने के बाद उन्होंने अपने देश की शिक्षा प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह उठाते हुए कहा कि हमारे देश की शिक्षा प्रणाली शुरूआत से ही चरित्र को निर्माण करने वाली नहीं रही है । हमारे देश में जिस प्रणाली के तहत बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा दी जा रही है उसके अनुसार कोई भी बच्चा पढ़ लिख कर केवल एक रोजगार परक व्यक्ति ही बन सकता है । ऐसी प्रणाली में पढ़े हुए किसी बच्चे से चारित्रिक शुद्धता के उम्मीद नहीं की जा सकती है।
कोर्ट ने कहा कि अपनी संगति और समाज के दुष्प्रभाव द्वारा कुछ बच्चे बहुत कम उम्र में इस तरीके की सेक्सिस्ट एक्टीविटी में शामिल हो जाते हैं । ऐसे लोग न तो आगे स्वयं का अच्छा व्यक्तिगत विकसित कर पाते हैं और न ही वे आगे हमारे देश के भविष्य को संवार सकते हैं ।
जस्टिस देवन रामचंद्रन ने आगे अपनी टिप्पणी में कहा कि हमारे परिवार , समाज और स्कूलों की यह जिम्मेदारी है कि बच्चों को अपने से विपरीत लिंग वाले बच्चों के साथ सद्भाव पूर्ण और शिष्टता का व्यवहार करें । आगे श्री रामचंद्रन ने कहा कि उनके दिमाग में यह बात अच्छे तरीके से बतानी चाहिए कि असली पुरुषत्व विनम्रता में है । असली पुरुष किसी भी महिला को धमकाते नहीं है । समाज में अपने मर्दाना गुणों का बखान करने वाले लोगों को कायर बताते हुए न्यायालय के जस्टिस रामचंद्रन ने कहा कि महिलाओं पर हावी रहने वाले व उन्हें परेशान करने वाले पुरुष हकीकत में कायर होते हैं । इस तरह से महिलाओं के प्रति गलत व्यवहार करने वाले व्यक्ति को पुरुषत्व जैसी चीजों से नवाजना गलत है ।