भारत में शादी एक सामाजिक और धार्मिक अनुष्ठान के रूप में देखी जाती है। लेकिन जब बात बाल विवाह की आती है, तो यह परंपरा, कानून की नज़र में एक अपराध बन जाती है।
वर्तमान समय में जहां शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की बात हो रही है, वहीं कई जगह आज भी 15-16 साल की लड़कियों की शादी कर दी जाती है, यह सोचकर कि यह उनकी सुरक्षा है। लेकिन सच्चाई यह है कि इस तरह की शादी उनके जीवन और अधिकारों को खतरे में डालती है।
कौन है ‘नाबालिग’? भारतीय कानून की नजर से
कानून के अनुसार:
- लड़की के लिए वैवाहिक उम्र 18 वर्ष और
- लड़के के लिए 21 वर्ष तय की गई है।
अगर कोई व्यक्ति इससे कम उम्र में शादी करता है या करवाई जाती है, तो यह बाल विवाह कहलाता है।
नाबालिग की “सहमति” भी कानूनी रूप से मान्य नहीं होती। इसका मतलब यह है कि अगर लड़की खुद भी इस शादी के लिए हाँ कहे, तब भी वह शादी अवैध हो सकती है।
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (PCMA Act)
यह अधिनियम 2006 में लागू हुआ और इसका मकसद था बाल विवाह को रोकना और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना।
मुख्य प्रावधान:
- अगर कोई नाबालिग की शादी करता है या करवाता है, तो यह दंडनीय अपराध है।
- नाबालिग लड़की 18 वर्ष की उम्र तक पहुँचने के दो साल के भीतर अपनी शादी को अदालत में चुनौती दे सकती है।
- अदालत के आदेश पर उस शादी को रद्द (voidable) किया जा सकता है।
- यदि शादी जबरदस्ती या धोखे से करवाई गई हो, तो वह सीधे अमान्य (void) मानी जाती है।
क्या नाबालिग से विवाह करना अपराध है?
भारतीय न्याय संहिता, 2023:
BNS की 63 और 64 के तहत यदि नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध बनाए जाते हैं, तो वह बलात्कार माना जाएगा – चाहे वह पति ही क्यों न हो।
POCSO (Protection of Children from Sexual Offences Act):
- यह अधिनियम 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के खिलाफ यौन शोषण को अपराध मानता है।
- इस कानून के अंतर्गत नाबालिग लड़की से शादी कर के शारीरिक संबंध बनाना एक गंभीर अपराध है जिसकी सज़ा 7 साल से लेकर उम्रकैद तक हो सकती है।
- यहाँ तक कि शादी की वैधता भी यौन अपराध को बचाने का बहाना नहीं बन सकती।
अपराध के लिए जिम्मेदार कौन? – माता-पिता, पति या पुरोहित?
बाल विवाह में सिर्फ लड़का या पति ही दोषी नहीं होता, बल्कि:
- माता-पिता या अभिभावक
- शादी करवाने वाले पुरोहित / काज़ी
- आयोजन स्थल के मालिक
- गाँव की पंचायत या बुज़ुर्ग जो शादी का समर्थन करें
ये सभी अपराध में सहभागी माने जाते हैं। PCMA 2006 के तहत इन पर 2 साल की जेल या ₹1 लाख तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
नाबालिग लड़की के अधिकार – आवाज़ उठाने की शक्ति
कानून नाबालिग लड़की को सशक्त बनाता है ताकि वह अपने साथ हुए अन्याय को चुनौती दे सके।
- शादी के दो साल के भीतर वह शादी को कोर्ट में चैलेंज कर सकती है।
- अगर वो शारीरिक, मानसिक या यौन शोषण की शिकार है, तो POCSO और IPC के तहत एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है।
- वह बाल कल्याण समिति, महिला आयोग, NGO या चाइल्डलाइन (1098) से मदद ले सकती है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि उसे संरक्षण, पुनर्वास और शिक्षा का पूरा हक है।
बाल विवाह से जुड़े अन्य खतरे – सामाजिक और मानसिक प्रभाव
कानूनी सज़ा तो बाद में होती है, लेकिन बाल विवाह का असर लड़की की पूरी जिंदगी पर पड़ता है:
- शिक्षा अधूरी रह जाती है
- मानसिक दबाव, डर, अवसाद की स्थिति
- घरेलू हिंसा की संभावना
- बालिकाओं की प्रजनन स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव – कम उम्र में माँ बनना बहुत खतरनाक हो सकता है
- आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान की हानि
यदि आप या आपके आसपास कोई पीड़ित है – क्या करें?
- थाने में रिपोर्ट करें (FIR दर्ज करें) – BNS और POCSO के तहत
- 1098 पर कॉल करें – चाइल्डलाइन 24×7 सक्रिय है
- जिला बाल संरक्षण अधिकारी या बाल कल्याण समिति से संपर्क करें
- NGOs, महिला हेल्पलाइन, और फ्री लीगल एड क्लिनिक से सहायता लें
- अगर शादी की योजना हो रही हो, तो बात करने से न डरें – तुरंत रोकने की कोशिश करें
इंडिपेंडेंट थॉट बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया (2017)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के अपवाद 2 को असंवैधानिक घोषित किया, जिसमें 15 से 18 वर्ष की आयु की पत्नी से शारीरिक संबंध को बलात्कार से मुक्त माना गया था। कोर्ट ने कहा कि 18 वर्ष से कम आयु की पत्नी से शारीरिक संबंध बलात्कार माना जाएगा, भले ही वह शादीशुदा हो। यह निर्णय बालिकाओं के शारीरिक अखंडता और संविधानिक अधिकारों की रक्षा करता है।
जगदीप कौर बनाम पंजाब राज्य (2019)
इस मामले में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) की धारा 5(iii) का उल्लंघन करने वाली शादी को अवैध घोषित किया। कोर्ट ने कहा कि यदि दूल्हा 21 वर्ष से कम और दुल्हन 18 वर्ष से कम है, तो ऐसी शादी शून्य मानी जाएगी। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसी शादियों को स्वतः शून्य नहीं माना जाएगा, बल्कि संबंधित पक्षों को अदालत में आवेदन करना होगा।
निष्कर्ष
बाल विवाह केवल एक सामाजिक कुप्रथा नहीं, बल्कि कानूनन अपराध है। नाबालिग लड़की से शादी उसके भविष्य को अंधकार में धकेल सकती है। इसलिए ज़रूरी है कि हम सब इस कानून को जानें, दूसरों को जागरूक करें और ज़रूरत पड़ने पर कदम उठाएँ। आपका एक कदम किसी बच्ची की जिंदगी बचा सकता है।
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FAQs
1. क्या अगर लड़की और लड़का दोनों की सहमति से शादी हो, तो वह मान्य होगी?
नहीं। अगर लड़की की उम्र 18 से कम है, तो उसकी सहमति कानूनन मान्य नहीं है। यह बाल विवाह कहलाएगा।
2. क्या बाल विवाह के बाद भी इसे रद्द किया जा सकता है?
हाँ, लड़की 18 साल की उम्र तक पहुँचने के 2 साल के भीतर कोर्ट में याचिका दायर कर सकती है और शादी को रद्द करवा सकती है।
3. अगर कोई शादी रोकना चाहता है, तो किससे संपर्क करे?
आप चाइल्डलाइन (1098), पुलिस, जिला बाल संरक्षण अधिकारी या नजदीकी NGO से संपर्क कर सकते हैं।
4. क्या माता-पिता को सजा मिल सकती है?
हाँ। अगर वे बाल विवाह करवाते हैं या उसमें सहयोग करते हैं, तो उन्हें 2 साल की सज़ा या ₹1 लाख तक जुर्माना हो सकता है।
5. क्या नाबालिग पत्नी के साथ शारीरिक संबंध वैध है?
नहीं। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यह बलात्कार की श्रेणी में आता है, और इसके लिए कड़ी सजा हो सकती है।