लिव-इन रिलेशनशिप का मतलब “शादी जैसा रिश्ता” होता है। जब एक अनमैरिड लड़का और लड़की मैरिड कपल की तरह एक ही छत्त के नीचे रहते है, तो उसे लिव इन रिलेशनशिप माना जाता है। लेकिन भारत के कानून में लिव इन रिलेशनशिप को ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है। यहाँ लिव इन रिलेशनशिप को दो अनमैरिड लोगों के बीच ”नेचर ऑफ मैरिज” के तौर पर रखा जाता है।
इसीलिए कई बार समस्याएं जन्म लेती है। लेकिन कोर्ट ने काफी हद तक इन समस्याओं का हल निकाल दिया है। अभी तक लिव इन रिलेशनशिप को लेकर कोई कानून तो नहीं बनाया लेकिन कुछ केसिस के दौरान लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल के अधिकारों को जरूर परिभाषित किया गया है। आईये देखते है वो कौनसे अधिकार है।
लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल के अधिकार:-
(1) गुज़ारा भत्ता – लिव इन रिलेशनशिप में रह रही महिला भी घरेलू हिंसा कानून का इस्तेमाल कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार , “अगर कोई महिला किसी आदमी के साथ लिव-इन में रहती है और महिला ये नहीं जानती की आदमी पहले से मैरिड है, तो इस सिचुएशन में दोनों पार्टनर्स के साथ रहने को ‘डोमेस्टिक रिलेशनशिप’ माना जाएगा।” और महिला को घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत गुज़ारा भत्ता लेने का अधिकार दिया गया है।
(2) कपल्स को सुरक्षा जरूर दी जाएगी – राजस्थान हाई कोर्ट ने एक केस में फैसला सुनाया था कि एक मैरिड व्यक्ति का लिव-इन रिलेशनशिप में रहना कानून की नजर में वैध नहीं थी। लेकिन उसे पुलिस प्रोटेक्शन दी जाएगी। कोर्ट का कहना है कि दो लोगों के रिलेशन को सामाज के विरुद्ध और अनैतिक माना जा सकता है, लेकिन फिर भी उन लोगों के जीवन के अधिकार और आजादी को नहीं छीना जा सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सभी नागरिकों को जीवन के अधिकार और आजादी का अधिकार है और राजस्थान पुलिस एक्ट, 2007 के सेक्शन 29 के तहत, सभी नागरिकों की लाइफ और उनकी आजादी की रक्षा करना राज्य के सभी पुलिस अफसरों की ड्यूटी है।
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(3) गुज़ारा भत्ता देना होगा वापस – दिल्ली हाई कोर्ट के अनुसार, एक लम्बे समय से चल रही शादी की तरह ही, लम्बे समय से चल रहे लिव इन रिलेशनशिप में ही महिला गुज़ारा भत्ता मांग सकती है।
मतलब लिव इन में रह रही महिला को उसके पार्टनर से गुज़ारा भत्ता तभी मिलेगा अगर वो बहुत लम्बे समय से एक साथ कपल की तरह रह रहे हो। महिला को कोर्ट में सबूत पेश करने होंगे कि वो और उसका लिव इन पार्टनर लंबे टाइम से साथ रह रहे है। और अगर महिला का दावा झूठा निकला तो उसे लिव-इन पार्टनर से इंटरिम मेंटेनेंस के रूप में मिले हुए सारे पैसे, ब्याज के साथ वापस लौटने होंगे।
(4) टाइम पीरियड – कपल के रिलेशनशिप का टाइम पीरियड बहुत अहमियत रखता है। अगर कपल कुछ दिनों तक साथ रहे फिर किसी कारण से अलग हो गए। फिर कुछ समय बाद साथ में कपल की तरह ही रहने लगे। तो यह सही नहीं माना जायेगा। लगातार एक ही छत्त के नीचे रहना जरूरी है। तभी कपल को लिव-इन पार्टनर्स समजह जायेगा और उसके अधिकार दिए जायेंगे।
हाई कोर्ट के अनुसार, अगर एक मैरिड महिला या पुरुष बिना डाइवोर्स लिए किसी और के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहते है। तो यह सामजिक और नैतिक तौर पर गलत है। साथ ही, कानूनी तौर पर वैध नहीं है।
लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए कंडीशंस:-
(1) बालिग़ – सबसे पहली शर्त है कि लिव-इन में रहने वाले दोनों पार्टनर्स बालिग़ मतलब 18+ होने चाहिए।
(2) अनमैरिड – अगर कोई लड़का और लड़की लिव-इन में रहना चाहते है, तो दोनों का अनमैरिड होना जरूरी है। अगर किसी पार्टनर की पहले शादी हुई है, तो उसकी डाइवोर्स की डिक्री जारी होने के बाद ही वो कानूनी रूप से लिव इन में रह सकते है।
(3) कपल की तरह रहना – लिव इन मे लड़का और लड़की को समाजिक तौर पर एक कपल की तरह ही पेश आना जरूरी है। एक दूसरे की तरफ अपनी जिम्मेदारियां निभाना आवश्यक है। और मैरिड कपल की तरह ही सेक्सुअल रिलेशन में रहना होगा।