भारत एक ऐसा देश है जहां कई अलग-अलग धर्म और जातियों के लोग एक साथ रहते है और मिलकर एक समाज बनाते है। हमारा भारत देश धार्मिक विविधता को गले लगाता है। देश में कई सारे धर्मों का एक साथ रहना इस बात को साबित करता है कि भारत एक पंथनिरपेक्ष (Secular) देश है। हमारे देश के संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता शामिल है। आसान भाषा में समझे तो पंथनिरपेक्ष शब्द धार्मिक मामलों में इक्वलिटी और अपनी मर्जी से धर्म को अपनाने का अधिकार देता है।
इस बात में कोई शक नहीं है कि हमारे देश में धर्म एक अस्थिर विषय रहा है, और यही वजह है कि संविधान ने इस इक्वलिटी को बनाए रखने के लिए भारत के संविधान में ऐसे प्रावधानों (provisions) को रखा है, जिससे यह इक्वलिटी बनी रही और किसी भी धर्म के लोगों को भेद-भाव महसूस ना हो। भारत के संविधान के आर्टिकल 25-28 में धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार (right to freedom of religion) से संबंधित प्रावधान बताये गए है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 28 क्या है?
भारतीय संविधान का आर्टिकल 28 कुछ शैक्षणिक संस्थानों (educational institutions) में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में उपस्थित रहने की आज़ादी देता है। यह मुख्य रूप से चार प्रकार के एजुकेशनल इंस्टीटूशन्स के बारे में बात करता है
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- संस्थान जो पूरी तरह से राज्य या स्टेट द्वारा बनाए जाते हैं।
- राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त एजुकेशनल इंस्टीटूशन्स।
- राज्य की पूँजी (State Fund) से मदद लेने वाली संस्थाएँ।
- ऐसे संस्थान जो किसी ट्रस्ट या राज्य के किसी एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा प्रशासित होते हैं।
यह समझना जरूरी है कि
- पहली कैटगरी के अंदर आने वाली संस्थाओं को कोई धार्मिक निर्देश नहीं दिया जाएगा।
- दूसरी और तीसरी कैटगरी के संस्थानों में, अगर कोई नाबालिग है तो उसे उसके माता-पिता या अभिभावक की सहमति से ही धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है।
- चौथी कैटगरी में धार्मिक शिक्षा के लिए ऐसा कोई रोक नहीं है।
अनुच्छेद 28 किससे सम्बंधित है – भारत और पंथनिरपेक्षता
“पंथनिरपेक्षता” एक व्यक्ति के धर्म और अन्य विश्वासों को मानने की पूरी आज़ादी की रक्षा करता है। यह एक संतुलित (Balanced) मिक्स है जिसमे एक व्यक्ति को अधिकार है कि वह अपने धर्म को माने और पूजे या अपने धर्म से मुक्त हो जाये। यह अपने धर्म को मानने की आज़ादी का अधिकार तो देता ही पर साथ ही अगर कोई व्यक्ति इससे मुक्त होना चाहता है तो वह अधिकार भी देता है।
हालांकि, यह समझना जरूरी है कि पंथनिरपेक्षता किसी भी तरह से नास्तिकता को बढ़ावा नहीं देती है। यह सिर्फ एक लोकतांत्रिक समाज बनाने की नीव है। पंथनिरपेक्षता केवल देश में सभी धर्मों के बीच इक्वलिटी को दर्शाता है।
सरकारी स्कूलों में धार्मिक शिक्षा पर रोक क्यों है?
सरकारी स्कूल पूरी तरह से सरकारी खर्चे पर चलते हैं। और देश की सरकार किसी एक धर्म के लोगों की नहीं है न ही ऐसा करना संभव है इसीलिए सरकारी स्कूलों में कोई भी धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है। चाहे वह हिन्दू लोगों का धर्म हो, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन या बौद्ध धर्म हो या कोई अन्य हो। अगर कभी भी सरकारी स्कूलों में धार्मिक शिक्षा देने से सम्बंधित कोई फैसला लिया जाता है, तो उससे पहले भारत के संविधान में बदलाव करने की जरूरत होगी, क्योंकि भारत के संविधान में हर एक नागरिक को अपने धर्म को मानने का अधिकार दिया गया है। अगर बदलाव के बिना ऐसा किया जाता है, तो वह फैसला असंवैधानिक माना जा सकता है।
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