लिव-इन-रिलेशनशिप से जन्म लेने वाले बच्चों के अधिकार

लिव-इन-रिलेशनशिप से जन्म लेने वाले बच्चों के अधिकार क्या है?

हमारी भारतीय संस्कृति में, लिव-इन-रिलेशनशिप को अभी तक समाज में पूरी तरह से मान्यता और इज़्ज़त नहीं मिली है। इस रिश्ते को आज भी समाज की नजरों में घृणित और अपमानजनक माना जाता है। वहीं दूसरी तरफ शादी को समाज की नींव माना जाता है। हालाँकि, दोनों रिश्तों में एक लड़का और एक लड़की एक कपल की तरह एक छत के नीचे साथ-साथ रहते है। लिव-इन रिलेशनशिप के इस विदेशी कांसेप्ट ने भारत की नयी और पुरानी जनरेशन की सोंच के बीच में असहमति और अंतर पैदा कर दिया है। भारत में लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को “कानूनी रूप से जायज़, लेकिन समाज की नज़र में नाज़ायज़” माना जाता है।

लिव-इन रिलेशनशिप का स्टेटस – 

लता सिंह V. यू.पी. राज्य और एस खुशबू  V. कन्नियाम्मल केस में यह माना गया था कि लड़का और लड़की बिना शादी किए एक रिश्ते में कपल की तरह  एक साथ रह सकते हैं। शादी और लिव-इन-रिलेशनशिप सही है या गलत, इस बारे में बहस करने से पहले हमें ऐसे यूनियंस के प्रैक्टिकल और कानूनी/लीगल पहलुओं को समझने की जरूरत है। शादी या लिव-इन-रिलेशनशिप जैसे रिश्तों के भविष्य को तय करने में बहुत सारे अलग-अलग सामाजिक और आर्थिक फैक्टर्स शामिल होते हैं। लिव-इन-रिलेशनशिप को आम तौर पर सहवास/सेक्सुअल रिलेशन्स बनाने का आसान ज़रिया कहा जाता है। लिव-इन में रहने पर कपल के बीच सेक्सुअल रिलेशन्स बन भी सकते हैं और नहीं भी। लिव-इन-रिलेशनशिप के लिए रजिस्ट्रशन कराने की जरूरत नहीं होती है। यह शादी का एक ऐसा ऑप्शन है, जहां एक ही या अलग अलग लिंग/जेंडर के लोग एक ही छत के नीचे कपल की तरह एक साथ रह सकते हैं।

बच्चे की जायज़ता/वैलिडिटी :

लिव-इन-रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे के लिए सबसे बड़ा अधिकार ‘जायज़ता या वैलिडिटी का अधिकार’ है। इसके अलावा, यह अधिकार हमारे देश में बच्चों के लिए अवेलेबल अन्य सभी अधिकारों के मिलने या ना मिलने का आधार भी है। बालासुब्रमण्यम वी. श्रुतयान के ऐतिहासिक केस में, यह आयोजित किया गया था “अगर एक लड़का और लड़की एक ही छत के नीचे रह रहे हैं और कुछ सालों से सेक्सुअल रिलेशन्स बना रहे है, तो एविडेंस एक्ट के सेक्शन 114 के तहत यह माना जायेगा कि वह मैरिड कपल की तरह ही साथ रहते है और उनसे पैदा हुए बच्चे नाजायज़ नहीं ठहराए जायेंगे”। 

इस रिश्ते का सबसे जरूरी कॉम्पोनेन्ट यह है कि इसके परिणामस्वरूप पैदा हुए किसी भी बच्चे को नाजायज बच्चा नहीं माना जाएगा।

भारत के कोर्ट्स ने माना है कि दो लोग एक कपल की तरह एक छत के नीचे रह सकते हैं और एक दूसरे के साथ सेक्सुअल रिलेशन्स भी बना सकते हैं, समाज को उन्हें हस्बैंड-वाइफ के रूप में ही मान्यता देनी होगी। कोर्ट्स ने खुद कहा है कि यह एक ऐसा रिश्ता नहीं होगा, जिसे लोग कभी भी बनाये और कभी भी ख़त्म कर दे। हालाँकि, वास्तव में, यह रिलेशन केवल इस प्रकार का ही है।

प्रॉपर्टी के अधिकार:

भारत माता और अन्य V. विजया रंगनाथन एंड एसोसिएट्स के केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, “लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को, पेरेंट्स की प्रॉपर्टी में उत्तराधिकारी माना जा सकता है और बाद में कानून की नजर में वैलिड उत्तराधिकारी माना जा सकता है।” यह स्टेटमेंट संविधान के आर्टिकल 39 (एफ) के अनुसार है, जिसमें कहा गया है कि बच्चे कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में अपने पेरेंट्स की प्रॉपर्टी के हकदार हैं।

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मेंटेनेंस :

मेंटेनेंस किसी व्यक्ति की बेसिक नीड्स को पूरा करने की जिम्मेदारी होती है। मेंटेनेंस कानून लिव-इन-रिलेशनशिप में उसी तरह लागू होता है जैसे कि एक शादी के रिश्ते में होता है। हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956 का सेक्शन 21, लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले कपल्स और ऐसे रिश्तों से पैदा हुए बच्चों पर भी लागू होता है।

चाइल्ड कस्टडी :

लिव-इन-रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे की कस्टडी एक जरूरी लीगल बैरियर/बाधा है। स्पष्ट/क्लियर कानूनों के ना होने की वजह से यह रिश्ता शादी के मुकाबले ज्यादा जटिल/कॉम्प्लिकेटीड़ हो जाता है। लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे के लिए कस्टडी के मैटर्स को उसी तरह से डील किया जाता है जैसे कि शादी के केस में कुछ स्पेसिफिक कानूनों के ना होने पर किया जाता है।

गीता हरिहरन v. भारतीय रिजर्व बैंक, एक प्रसिद्ध केस, ने फैसला किया कि “पिता जायज़ बच्चों के प्राकृतिक गार्डियन हैं।” हालाँकि, क्योंकि यह माँ को नाजायज भागीदारी के परिणामस्वरूप पैदा हुए किसी भी बच्चे की कस्टडी का अधिकार देता है, उसी क़ानून का सेक्शन 6 (बी) इंडायरेक्टली लिव-इन रिलेशनशिप्स से डील करने के लिए सामने आता है।

इस प्रकार, यह एक्सप्लेन किया जा सकता है कि पहली बार में ही पिता को कस्टडी दे दी जाती है। 

लीड इंडिया के लॉयर्स आपके अधिकारों को प्राथमिकता/प्रायोरिटी देते हुए लिव-इन-रिलेशनशिप पर लागू कानूनों की व्याख्या करने में आपकी मदद करते हैं। हमारे लॉयर्स का मानना ​​है कि इन सभी प्रकार के मैटर्स में प्रक्टिसा एप्रोच की जरूरत होती है और हम यहां आपकी जरूरतों को बेहतर तरीके से समझते हैं और आपको सबसे अच्छी सर्विस देने की कोशिश करते हैं।

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